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मौसम, जलवायु तथा जलवायु के अनुरूप जंतुओं द्वारा अनुकूलन


क्या आपको याद है कि जब आप पहाड़ों पर भ्रमण के लिए जा रहे थे, तो आपसे क्या-क्या साज-सामान ले जाने के लिए कहा गया था? जब आकाश में बादल होते हैं, तो आपके माता-पिता आपसे छाता ले जाने के लिए कहते हैं। क्या आपने कभी अपने परिवार के बुज़ुर्गों को पारिवारिक समारोह आयोजित करने से पहले मौसम के बारे में चर्चा करते सुना है? आपने अवश्य ही खेल शुरू होने से पहले विशेषज्ञों को मौसम के बारे में चर्चा करते हुए सुना होगा। क्या आपने कभी सोचा है कि एेसा क्यों होता है? मौसम का किसी खेल पर अत्यधिक प्रभाव पड़ सकता है। इसका हमारे जीवन पर भी अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। हमारे अनेक दैनिक क्रियाकलाप, उस दिन के मौसम के पूर्वानुमान पर आधारित होते हैं। दूरदर्शन, रेडियो और दैनिक समाचारपत्रों में भी प्रतिदिन मौसम के बारे में जानकारी दी जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वास्तव में मौसम है क्या?

इस अध्याय में हम मौसम और जलवायु के बारे में पढ़ेंगे। हम यह भी जानेंगे, कि विभिन्न जीव किस प्रकार अपने आवास की जलवायु के लिए अनुकूलित होते हैं।

7.1 मौसम


चित्र 7.1 में किसी दैनिक समाचारपत्र में प्रकाशित मौसम की जानकारी का एक नमूना दिया गया है।

हम देखते हैं, कि दैनिक मौसम की रिपोर्ट में पिछले 24 घंटों के ताप, आर्द्रता और वर्षा (यदि वर्षा हुई हो) के बारे में जानकारी होती है। मौसम रिपोर्ट में अगले दिन के मौसम के बारे में पूर्वानुमान भी प्रकाशित किया जाता है।


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                          चित्र 7.1 समाचारपत्र से मौसम की रिपोर्ट का एक नमूना




मुझे आश्चर्य है, कि इस रिपोर्ट को कौन तैयार करता होगा?boojho_01



मौसम की रिपोर्ट भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा तैयार की जाती हैं। यह विभाग प्रतिदिन विभिन्न स्थानों से वहाँ के ताप, पवन वेग आदि पर आँकड़े एकत्रित करता है और मौसम के बारे में पूर्वानुमान लगाता है।


क्रियाकलाप 7.1

किसी भी समाचारपत्र से पिछले एक सप्ताह के सभी दिनों की मौसम की रिपोर्ट काट लीजिए। यदि आपके घर में समाचारपत्र नहीं आता है, तो अपने किसी पड़ोसी अथवा मित्र से माँगकर रिपोर्ट को अपनी पुस्तिका में लिख लीजिए। आप पुस्तकालय से भी मौसम की रिपोर्ट एकत्रित कर सकते हैं। सभी कतरनों को कागज़ की एक शीट अथवा चार्ट पेपर पर चिपका लीजिए।

अब सारणी 7.1 में अपने द्वारा एकत्रित की गई मौसम संबंधी जानकारी को नोट कीजिए। आपकी सहायता के लिए पहली पंक्ति में एक नमूना दिया गया है। सारणी के सभी कॉलमों में अपने चार्ट के अनुसार आँकड़े लिखिए

सारणी 7.1

किसी एक सप्ताह के मौसम का आँकड़ा

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*(वर्षा की रिपोर्ट प्रतिदिन नहीं लिखी जाती है, क्योंकि प्रतिदिन वर्षा नहीं होती है। यदि आँकड़े उपलब्ध न हों, तो वर्षा के स्थान को रिक्त छोड़ दें।)

वर्षा को वर्षामापी नामक यंत्र से मापा जाता है। यह मूल रूप से एक मापक सिलिंडर होता है, जिसके ऊपर वर्षा जल को एकत्रित करने के लिए एक कीप लगी रहती है।


क्या आपके द्वारा बनाई गई सारणी के अनुसार सभी सात दिन अधिकतम और न्यूनतम तापमान, आर्दता और वर्षा के माप समान रहे? आपकी सारणी में नोट किए गए अधिकतम और न्यूनतम तापमान कुछ दिनों के लिए समान हो सकते हैं। परन्तु, सभी प्राचल (जैसे कि तापमान, आर्दता, वर्षा) किन्हीं दो दिनों के लिए भी समान नहीं होते। सप्ताह भर में इनमें काफ़ी परिवर्तन हो सकते हैं। किसी स्थान पर तापमान, आर्द्रता, वर्षा, वायु वेग आदि के संदर्भ में वायुमंडल की प्रतिदिन की परिस्थिति उस स्थान का मौसम कहलाती है। तापमान, आर्द्रता और अन्य कारक मौसम के घटक कहलाते हैं। किसी स्थान का मौसम दिन-प्रतिदिन और सप्ताह दर सप्ताह परिवर्तित होता रहता है। इसलिए हम अकसर कहते हैं, ‘‘आज का मौसम अत्यधिक आर्द्र है अथवा पिछले सप्ताह मौसम गर्म था’’।

मौसम एक अत्यन्त जटिल परिघटना है। यह क्षण भर में भी परिवर्तित हो सकता है। कभी-कभी यह हो सकता है कि सुबह के समय धूप निकली हो, लेकिन अचानक ही बादल आ जाएँ और तेज़ वर्षा होने लगे अथवा तेज़ वर्षा अचानक से बंद हो जाए और चटख धूप निकल आए। आपको अवश्य ही अनेक एेसे अनुभव हुए होंगे। एेसे किसी अनुभव को याद करने का प्रयास कीजिए और अपने मित्रों को इसके बारे में बताइए। चूँकि मौसम इतनी जटिल परिघटना है, अतः इसका पूर्वानुमान लगाना आसान कार्य नहीं है।


मुझे आश्चर्य है, कि मौसम इतनी तेजी से क्यों बदलता है?boojho_011मैं जानना चाहती हूँ, कि आखिर मौसम का स्रोत क्या है?paheli_2



चित्र 7.2 में दिए गए ग्राफ़ को देखिए। इसमें 3 अगस्त 2006 से 9 अगस्त 2006 तक, शिलांग, मेघालय में रिकॉर्ड किए गए अधिकतम तापमान को दिखाया गया है।
                   चित्र 7.2 3 से 9 अगस्त 2006 की समयावधि में अधिकतम तापमान में परिवर्तन को दर्शाता ग्राफ़

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जैसा किसी भी मौसम की रिपोर्ट से स्पष्ट होता है, कि अधिकतम और न्यूनतम तापमान को प्रतिदिन रिकॉर्ड किया जाता है। क्या आप जानते हैं कि इस तापमान को कैसे रिकॉर्ड किया जाता है। अध्याय 4 में आपने पढ़ा था, कि इस कार्य के लिए विशेष तापमापी होते हैं, जिन्हें अधिकतम-न्यूनतम तापमापी कहते हैं। क्या आप अनुमान लगा सकते हैं, कि दिन भर में किस समय तापमान अधिकतम और किस समय न्यूनतम होता है?


दिन का अधिकतम तापमान सामान्यतः अपराह्न में अर्थात् दोपहर के बाद होता है, जबकि न्यूनतम तापमान सामान्यतः प्रातः (भोर) में होता है। क्या अब आप समझ गए हैं, कि गर्मियों में दोपहर के बाद हम गर्मी से इतने बेहाल क्यों हो जाते हैं, जबकि सुबह के समय अपेक्षाकृत मौसम सुहावना लगता है।

क्या आपने कभी सूर्योदय और सूर्यास्त के समय के बारे में सोचा है? आप जानते हैं कि सर्दियों में सायंकाल अंधेरा जल्दी क्यों हो जाता है और आपको खेलने के लिए अधिक समय नहीं मिल पाता। क्या सर्दियों में दिन की अवधि गर्मियों की अपेक्षा कम होती है? अध्याय के अंत में दिए गए परियोजना कार्य को पूरा करके इसका स्वयं पता लगाने का प्रयास कीजिए

7.2 जलवायु

मौसमविज्ञानी प्रतिदिन मौसम संबंधी आँकड़ों को रिकॉर्ड करते हैं। पिछले अनेक दशकों के मौसम के रिकॉर्ड सुरक्षित रखे गए हैं। इनसे हमें किसी स्थान के मौसम के पैटर्न (प्रतिरूप) का निर्धारण करने में सहायता मिलती है। किसी स्थान के मौसम की लंबी अवधि, जैसे 25 वर्ष, में एकत्रित आँकड़ों के आधार पर बना मौसम का पैटर्न, उस स्थान की जलवायु कहलाता है। यदि हम पाते हैं कि किसी स्थान का तापमान अधिकांश समय उच्च रहता है, तो हम कहते हैं कि उस स्थान की जलवायु गर्म है। यदि इसके अतिरिक्त उस स्थान पर अधिकांश दिनों में भारी वर्षा भी होती है, तो हम कह सकते हैं कि उस स्थान की जलवायु गर्म और आर्द है।

मौसम में सभी परिवर्तन सूर्य के कारण होते हैं। सूर्य अत्यधिक उच्च ताप पर गरम गैसों का विशाल गोला है। सूर्य की हमसे दूरी बहुत अधिक है, परंतु सूर्य द्वारा उत्सर्जित ऊर्जा इतनी अधिक है, कि पृथ्वी से इतनी दूरी होने के बावजूद सूर्य हमारे लिए समस्त ऊष्मा और प्रकाश का स्रोत है। अतः सूर्य ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत  है, जो मौसम में परिवर्तन लाता है। पृथ्वी के थल क्षेत्र, समुद्रों और वायुमंडल द्वारा अवशोषित और परावर्तित की जाने वाली ऊर्जा भी किसी स्थान पर मौसम को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण होती है। यदि आप समुद्र के समीप रहते हैं, तो आपने यह अनुभव किया होगा कि आपके स्थान का मौसम रेगिस्तान अथवा पहाड़ी क्षेत्र के आस-पास के मौसम से काफ़ी भिन्न है।

सारणी 7.2 और 7.3 में हमने भारत के दो शहरों की जलवायवी परिस्थितियों का विवरण दिया है। प्रत्येक माह के लिए औसत तापमान की गणना दो चरणों में की जाती है। हम पहले माह के प्रत्येक दिन के लिए रिकॉर्ड किए गए तापमान का औसत निकालते हैं। उसके बाद हम पिछले कई वर्षों में उसी माह के लिए अनेक वर्षों के औसत तापमानों की गणना करते हैं। इससे हमें औसत (मध्यमान) तापमान मिल जाता है। दो स्थान हैं -- जम्मू और कश्मीर में श्रीनगर और केरल में तिरुअनंतपुरम।

सारणी 7.2 और 7.3 देखने पर हम आसानी से जम्मू-कश्मीर और केरल के औसत तापमान में अंतर को देख सकते हैं। हम देख सकते हैं कि केरल, जम्मू और कश्मीर की तुलना में बहुत गर्म और आर्द्र हैं, जिसमें वर्ष के कुछ भाग में मध्यम गर्म और मध्यम आर्द्र जलवायु होती है।

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इसी प्रकार के आँकड़े भारत के पश्चिमी क्षेत्रों, जैसे राजस्थान के लिए वर्ष के अधिकांश समय औसत तापमान को उच् दिखाते हैं। लेकिन सर्दियों में जो सिर्फ़ कुछ माह के लिए होती है, तापमान काफ़ी कम होता है। इस क्षेत्र में बहुत कम वर्षा होती है। ये किसी मरुस्थली जलवायु के लक्षण हैं। यहाँ जलवायु गर्म और शुष्क होती है। उत्तर-पूर्वी भारत में वर्ष के अधिकांश भाग में वर्षा होती है। इसलिए हम यह कह सकते हैं कि उत्तर-पूर्व की जलवायु आर्दΡ है।

7.3 जलवायु और अनुकूलन

जलवायु का सभी जीवों पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

जंतु उन स्थितियों में जीने के लिए अनुकूलित होते हैं, जिनमें वे रहते हैं। अत्यधिक सर्द और गर्म जलवायु में जीवित रहने वाले जंतुओं में स्वयं को चरम शीत अथवा ताप से बचाने के लिए कुछ विशेष गुण होते होंगे। अपनी कक्षा 6 की विज्ञान की पुस्तक के अध्याय 9 में दी गई अनुकूलन की परिभाषा को याद कीजिए। वे सभी गुण और लक्षण, जो जंतुओं को उनके परिवेश से अनुकूलन में सहायक होते हैं, विकास की प्रक्रिया का परिणाम है।

स पुस्तक के अध्याय 9 में आप मौसम और जलवायु के मृदा पर प्रभाव के बारे में पढ़ेंगे। यहाँ हम केवल जंतुओं पर जलवायु के प्रभाव के बारे में पढ़ेंगे। छठी कक्षा में आपने कुछ आवासों (वास स्थानों) के लिए जंतुओं के अनुकूलन के विषय में पढ़ा था। जंतुओं के जलवायवी परिस्थितियों के लिए अनुकूलन के उदाहरण के रूप में हम केवल ध्रुवीय क्षेत्र और उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में रहने वाले कुछ जंतुओं की चर्चा करेंगे।

जैसा कि नाम से स्पष्ट है- ध्रुवीय क्षेत्र, ध्रुवों के समीप स्थित होते हैं जैसे उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव।

ध्रुवीय क्षेत्र के कुछ परिचित देश कनाडा, ग्रीनलैंड, आइसलैंड, नार्वे, स्वीडन, फिनलैंड तथा अमेरिका में अलास्का और रूस के साइबेरियाई क्षेत्र हैं।

भारत, मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्राजील, काँगो गणतंत्र, केन्या, यूगान्डा और नाइजीरिया कुछ एेसे देश हैं, जहाँ उष्णकटिबंधीय वर्षावन पाए जाते हैं।

क्रियाकलाप 7.2

विश्व का मानचित्र लीजिए। ध्रुवीय क्षेत्रों को नीले रंग से दिखाइए। इसी प्रकार उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों को लाल रंग से दिखाइए।

ध्रुवीय क्षेत्र

ध्रुवीय क्षेत्रों में चरम जलवायु पाई जाती है। ये क्षेत्र सदैव बर्फ़ से ढके रहते हैं और यहाँ वर्ष के अधिकांश भाग में अत्यधिक सर्दी रहती है। ध्रुवों पर छह महीने तक सूर्यास्त नहीं होता, और बाकी छह महीनों तक यहाँ सूर्योदय नहीं होता है। सर्दियों में तापमान -37 °C तक हो जाता है। यहाँ रहने वाले जंतु इन चरम स्थितियों के लिए अनुकूलित हो गए हैं। आइए, हम ध्रुवीय भालू (पोलर बियर) और पैंग्विन के उदाहरण से यह जानने का प्रयास करें कि वे किस प्रकार वहाँ की जलवायु के लिए अनुकूलित हैं।

ध्रुवीय  भालू के सारे शरीर पर  सफ़ेद बाल (फर) होते हैं, जिससे वे बर्फ़ की सफ़ेद (श्वेत) पृष्ठभूमि में आसानी से दिखाई नहीं देते। इससे उन्हें अपने परभक्षियों (शत्रुओं) से बचाव में सहायता मिलती है। साथ ही इससे उन्हें अपने शिकार को पकड़ने में भी सहायता मिलती है। इन्हें चरम शीत से बचाने के लिए इनमें बालों (फर) की दो मोटी परतें होती हैं। इनकी त्वचा के नीचे वसा की एक परत होती है। वास्तव में, ध्रुवीय भालू का शरीर इतनी अच्छी तरह से शीतरोधी होता है कि वे धीमे-धीमे चलते हैं ताकि उनके शरीर का ताप आवश्यकता से अधिक न हो जाए। ये अपने शरीर को बहुत अधिक गर्म हो जाने से बचाने के लिए अकसर विश्राम करते हैं।

गर्म मौसम में भौतिक क्रियाकलापों के बाद ध्रुवीय भालुओं को अपने शरीर को ठंडा करना पड़ता है। अतः ध्रुवीय भालू समुद्री जल में तैरते रहते हैं। ये अच्छे तैराक होते हैं। इनके पंजे चौड़े और बड़े होते हैं, जो न केवल अच्छी तरह से तैरने में इनकी सहायता करते हैं बल्कि उन्हें बर्फ़ में चलने में भी सहायक होते हैं। तैरते समय ये अपने नथुनों को बंद करके लंबे समय तक पानी के अंदर रह सकते हैं। ध्रुवीय भालू की सूँघने की शक्ति (घ्राण शक्ति) तीव्र होती है, जिससे ये भोजन के लिए अपने शिकार को आसानी से खोज व पकड़ सकता है। हम ध्रुवीय भालू के अनुकूलनों को चित्र 7.3 में दिखाए गए प्रवाह चित्र द्वारा आसानी से समझ सकते हैं।

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ध्रुवीय क्षेत्र का एक अन्य परिचित जंतु पैंग्विन है (चित्र 7.4)। ये भी सफ़ेद (श्वेत) होते हैं और आसानी से बर्फ़ की सफ़ेद पृष्ठभूमि में मिल जाते हैं। इनके शरीर में भी स्वयं को सर्दी से बचाने के लिए मोटी त्वचा और अत्यधिक वसा होती है। आपने पैंग्विनों के झुंड के चित्र देखे होंगे। स्वयं को गरम रखने के लिए वे एेसा करते हैं। याद कीजिए कि जब आप खचाखच भरे किसी कमरे या हॉल में होते हैं, तो आप कितना गर्म महसूस करते हैं। ध्रुवीय भालू की तरह ही पैंग्विन भी अच्छे तैराक होते हैं। इनका शरीर धारारेखित होता है, और इनके पैरों में जाल जैसा बना होता है, जिससे ये अच्छे तैराक होते हैं (चित्र 7.5)।

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                                      चित्र 7.4 पैंग्विनों का झुंड

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                                             चित्र 7.5 पैंग्विन के पैर

ध्रुवीय क्षेत्र में रहने वाले अन्य जंतुओं में अनेक प्रकार की मछलियाँ, कस्तूरी मृग, रेनडियर, लोमड़ी, सील, व्हेल तथा अन्य कई प्रकार के पक्षी सम्मिलित हैं।


क्या मछलियाँ और तितलियाँ भी पक्षियों की तरह प्रवास करती हैं?paheli_1


 नोट कीजिए कि जहाँ मछली ठंडे जल में लंबे समय तक रह सकती हैं, वहीं पक्षियों को जीवित रहने के लिए अपने शरीर को गर्म रखना आवश्यक होता है। इसी कारण अनेक प्रकार के पक्षी सर्दियों के आते ही अपेक्षाकृत गर्म स्थानों पर प्रवास के लिए चले जाते हैं। सर्दियाँ समाप्त हो जाने पर, वे पुनः अपने आवास पर वापस लौट आते हैं। शायद आप जानते होंगे कि भारत एेसे अनेक पक्षियों का प्रवास स्थान है। आपने साइबेरियाई क्रेनों के बारे में सुना होगा, जो साइबेरिया से राजस्थान में भरतपुर और हरियाणा में सुल्तानपुर जैसे स्थानों पर सर्दियों में प्रवास के लिए आते हैं। कुछ पक्षी उत्तर-पूर्व के कुछ आर्द स्थानों और भारत के कुछ अन्य स्थानों में भी प्रवास के लिए आ जाते हैं (चित्र 7.6)।

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                         चित्र 7.6 प्रवासी पक्षी अपने आवास तथा उड़ान में


उष्णकटिबंधीय वर्षावन


उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की जलवायु सामान्यतः गर्म होती है, क्योंकि ये क्षेत्र भूमध्यरेखा के आस-पास स्थित होते हैं। सबसे सर्द महीनों में भी तापमान सामान्यतः 15°C से अधिक रहता है। गर्मियों में तापमान 40°C से अधिक हो जाता है। वर्षभर दिन और रात की लंबाई लगभग बराबर होती है। इन क्षेत्रों में प्रचुर मात्रा में वर्षा होती है। इस क्षेत्र की एक प्रमुख विशेषता उष्णकटिबंधीय वर्षावन है। उष्णकटिबंधीय वर्षावन, भारत में पश्चिमी घाटों और असम में पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त एेसे वन दक्षिण-पूर्व एशिया,  मध्य  अमेरिका और मध्य अफ्रीका में भी पाए जाते हैं। सतत् गर्मी और वर्षा के कारण इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के पादप और जंतु पाए जाते हैं। वर्षावनों में पाए जाने वाले प्रमुख प्रकार के जंतुओं में बंदर, कपि (एेप्स),  गुरिल्ला, चीता, हाथी, तेंदुआ, छिपकली, सर्प, पक्षी और कीट हैं।

आइए, अब हम गर्म-आर्द्र जलवायु के लिए इन जंतुओं के अनुकूलनों के बारे में अध्ययन करें।

वर्षावनों में जलवायवी परिस्थितियाँ अनेक किस्मों के जंतुओं की विशाल जनसंख्या के जीवनयापन के लिए अत्यधिक उपयुक्त हैं।

क्या आप जानते हैं?

कुछ प्रवासी पक्षी अपने आवास की चरम जलवायवी परिस्थितियों से बचने के लिए 15000 km तक की यात्रा करते हैं। सामान्यतः ये अधिक ऊँचाई पर उड़ान भरते हैं, जहाँ वायु प्रवाह उड़ान में सहायक होता है। इस ऊँचाई की शीत स्थितियाँ उनकी उड़ान पेशियों द्वारा उत्पन्न ऊष्मा का विसरण आसान कर देती हैं। लेकिन आश्चर्य की बात है कि प्रवासी पक्षी वर्ष दर वर्ष एक ही स्थान पर कैसे आते रहते हैं, यह एक रहस्य है। एेसा लगता है कि इन पक्षियों में दिशा का सहजबोध होता है और ये जानते हैं कि किस दिशा में उड़ना है। मार्गदर्शन के लिए संभवतः कुछ भू-चिह्नों (लैंडमार्क) का उपयोग करते हैं। संभवतः अनेक पक्षियों को दिन में सूर्य और रात्रि में तारों से मार्गदर्शन मिलता है। इसके भी कुछ प्रमाण हैं कि पक्षी दिशा का पता लगाने के लिए पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग करते हैं। केवल पक्षी ही एेसे जंतु नहीं है, जो प्रवास करते हैं। अनेक स्तनधारी जीव, अनेक प्रकार की मछलियाँ और कीट भी अधिक अनुकूल जलवायु की तलाश के लिए मौसमी रूप से प्रवास करते हैं।

चूँकि जंतुओं की जनसंख्या अधिक होती है, अतः उनमें भोजन और आश्रय के लिए सघन प्रतिस्पर्धा  होती है। अनेक जंतु वृक्षों पर रहने के लिए अनुकूलित होते हैं। लाल-नेत्रों वाले मेंढक के पैर के तलवे चिपचिपे होते हैं, जो उन्हें उन वृक्षों पर चढ़ने में सहायता करते हैं, जिन पर वे रहते हैं (चित्र 7.7)। वृक्षों पर रहने में सहायता के लिए बंदरों की लंबी पूँछ होती है, जो शाखाओं को पकड़ने में सहायक होती है (चित्र 7.8)। इनके हाथ पैर एेसे होते हैं, जिससे ये आसानी से शाखाओं को थामे रहते हैं।

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                                       चित्र 7.7 लाल नेत्र वाला मेढक

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चित्र 7.8 न्यूवर्ल्ड मंकी (बंदर)


क्योंकि इन वनों में आवास करने वाले जंतुओं में भोजन के लिए परस्पर स्पर्धा होती है, कुछ जंतु एेसे भोजन को  प्राप्त करने के लिए अनुकूलित होते हैं, जहाँ अन्य जंतु आसानी से नहीं पहुँच सकते। उदाहरण के लिए, टूकन नामक पक्षी की लंबी, बड़ी चोंच होती है, जिसकी सहायता से वह एेसी शाखाओं में लगे फलों तक पहुँच सकता है, जो बहुत कमज़ोर होती हैं और उसका भार नहीं सह सकती हैं (चित्र 7.9)।

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चित्र 7.9 टूकन पक्षी

उष्णकटिबंधीय वनों में पाए जाने वाले अनेक जंतुओं में सुनने की संवेदनशील शक्ति, तीव्र दृष्टि, मोटी त्वचा और एेसे वर्ण (रंग) की त्वचा होती है, जो उन्हें आस-पास के क्षेत्र के साथ मिलकर छद्मावरण करने  में  सहायक होती है और उनकी परभक्षियों से रक्षा करती है। उदाहरण के लिए, बिलाव परिवार के जंतुओं (शेर और चीता) में मोटी खाल होती है तथा उनकी सुनने की शक्ति संवेदनशील होती है।

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चित्र 7.10 लॉयन टेल्ड लँगूर (मंकी)

लॉयन टेल्ड लँगूर (जिसे दाढ़ी वाला एेप भी कहते हैं) पश्चिमी घाट के वर्षावनों में पाया जाता है (चित्र 7.10)। इसकी सबसे प्रमुख विशेषता इसकी चाँदी जैसी सफ़ेद (श्वेत) अयाल है, जो सिर के चारों ओर, गालों और चिबुक (ठोड़ी) तक रहती है। यह वृक्षों पर आसानी से चढ़ जाता है और अपने जीवन का अधिकांश समय वृक्षों पर ही व्यतीत करता है। यह मुख्यतः फल खाता है। बीज, कोमल पत्तियाँ, तने, पुष्प और कलियाँ भी खाता है। लॉयन टेल्ड लँगूर वृक्षों की छाल में वास करने वाले कीटों की तलाश में रहता है। चूँकि ये लँगूर वृक्षों पर पर्याप्त भोजन जुटा पाने में समर्थ होते हैं, अतः वे भूमि पर यदा-कदा ही आते हैं।


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                                      चित्र 7.11 भारतीय हाथी

भारतीय उष्णकटिबंधीय वर्षावन का एक अन्य परिचित जंतु हाथी है (चित्र 7.11)। हाथी अनेक प्रकार से वर्षावनों की परिस्थितियों के लिए अनुकूलित हो गए हैं। इसकी सूँड को ध्यान से देखिए, जिसका उपयोग वह नाक के रूप में करता है। लंबी सूँड से इसकी सूँघने की शक्ति बहुत अच्छी हो जाती है। हाथी द्वारा सूँड का उपयोग भोजन को उठाने के लिए भी किया जाता है। यद्यपि इसके बाह्य दंत, जिन्हें रद कहते हैं, वास्तव में रूपांतरित दंत होते हैं। इन दाँतों से हाथी अपनी पसंद के वृक्षों की छाल को आसानी से छील सकते हैं। अतः भोजन के लिए स्पर्धा के बावजूद हाथी आसानी से अपना भोजन जुटाने में समर्थ होता है। हाथी के लंबे बड़े कान, बहुत हल्की ध्वनि को भी सुनने में सहायक होते हैं। वर्षावनों की गर्म और आर्द्र जलवायु में हाथी को ठंडा रखने में भी उसके कान सहायक होते हैं।


प्रमुख शब्द

अनुकूलन

जलवायु

मौसम के घटक

आर्द्रता

अधिकतम तापमान

प्रवास

न्यूनतम तापमान

ध्रुवीय क्षेत्र

उष्णकटिबंधीय वर्षावन

उष्णकटिबंधीय क्षेत्र

मौसम

आपने क्या सीखा

  • किसी स्थान पर तापमान, आर्दता, वर्षा, पवन वेग आदि के संदर्भ में वायुमंडल की दिन-प्रतिदिन की स्थिति उस स्थान का मौसम कहलाती है।
  • मौसम सामान्यतः किन्हीं दो दिन अथवा सप्ताह दर सप्ताह समान नहीं होता है।
  • दिन का अधिकतम तापमान सामान्यतः अपराह्न (दोपहर बाद) में जबकि न्यूनतम तापमान प्रातः (भोर) होता है।
  • वर्षभर सूर्योदय और  सूर्यास्त  का समय भी परिवर्तित होता रहता है।
  • मौसम के सभी परिवर्तन सूर्य से संचालित होते हैं।
  • दीर्घ अवधि, जैसे 25 वर्ष, में लिए गए मौसम के प्राचलों के आधार पर तैयार किए गए प्रतिरूप (पैटर्न), उस स्थान की जलवायु निर्धारित करते हैं।
  • उष्णकटिबंधीय और ध्रुवीय क्षेत्र पृथ्वी के दो एेसे क्षेत्र हैं, जहाँ की चरम जलवायवी परिस्थितियाँ होती हैं।
  • जंतु उन परिस्थितियों के लिए अनुकूलित होते हैं, जिनमें वह वास करते हैं।
  • ध्रुवीय क्षेत्रों में वर्षभर बहुत सर्दी रहती है। ध्रुवों में वर्ष के छह महीने तक सूर्यास्त नहीं होता है और शेष छह महीनों में सूर्योदय नहीं होता है।
  • ध्रुवीय क्षेत्र के जंतु कुछ विशेष गुणों के कारण जैसे, शरीर पर श्वेत (सफेद) फर, सूँघने की तीव्र शक्ति, त्वचा के नीचे वसा की परत, तैरने और चलने के लिए चौड़े और लंबे नखरों आदि के कारण अत्यधिक सर्द जलवायु के लिए अनुकूलित होते हैं।
  • अतिशीत मौसम से बचने के लिए प्रवास एक अन्य साधन है।
  • अनुकूल जलवायवी परिस्थितियों के कारण उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में पादपों और जंतुओं की विशाल जनसंख्या पाई जाती है।
  • उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में जंतु इस प्रकार अनुकूलित होते हैं कि उन्हें अन्य प्रकार के जंतुओं से भिन्न भोजन और आश्रय की आवश्यकता होती है, ताकि उनमें परस्पर स्पर्धा कम से कम हो।
  • उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में रहने वाले जंतुओं के कुछ अनुकूलनों में वृक्षों पर आवास, मजबूत पूँछ का विकास, लंबी और विशाल चोंच, चटख रंग, तीखे पैटर्न/प्रतिरूप, तीव्र स्वर ध्वनि (तेज आवाज़), फलों का आहार, सुनने की संवेदनशील शक्ति, तीव्र दृष्टि, मोटी त्वचा (खाल), परभक्षियों से बचने के लिए छद्मावरण की क्षमता आदि सम्मिलित हैं।

अभ्यास

1. उन घटकों के नाम बताइए, जो किसी स्थान के मौसम को निर्धारित करते हैं।

2. दिन में किस समय ताप के अधिकतम और न्यूनतम होने की संभावना होती है।

3. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिएः

(i) दीर्घ अवधि के मौसम का औसत --------------- कहलाता है।

(ii) किसी स्थान पर बहुत कम वर्षा होती है और उस स्थान का तापमान वर्ष भर उच्च रहता है, उस स्थान की जलवायु --------------- और --------------- होगी।

(iii) चरम जलवायवी  परिस्थितियों  वाले पृथ्वी के दो क्षेत्र --------------- और --------------- हैं।

4. निम्नलिखित क्षेत्रों की जलवायु का प्रकार बताइएः

(क) जम्मू एवं कश्मीर ---------------

(ख) केरल ---------------

(ग) राजस्थान ---------------

(घ) उत्तर-पूर्व भारत ---------------

5. मौसम और जलवायु में से किसमें तेज़ी से परिवर्तन होता है?

6. जंतुओं की कुछ विशेषताओं की सूची नीचे दी गई हैं।

(क) आहार मुख्यतः फल हैं               (ख) सफेद बाल/फर

(ग) प्रवास की आवश्यकता               (घ) तीव्र स्वर-ध्वनि (तेज आवाज)

(च) पैरों के चिपचिपे तलवे              (छ) त्वचा के नीचे वसा की मोटी परत

(ज) चौड़े और बड़े नखर                  (झ) चटख रंग

(ट) मजबूत पूँछ                             (ठ) लंबी और बड़ी चोंच

उपरोक्त प्रत्येक विशेषता के लिए यह बताइए कि वह उष्णकटिबंधीय वर्षावन अथवा ध्रुवीय क्षेत्र में से किसके लिए अनुकूलित है। क्या आप समझते हैं कि इनमें से कुछ विशेषताएँ दोनों क्षेत्रों के लिए अनुकूलित हो सकती हैं?

7. उष्णकटिबंधीय वर्षावन जंतुओं की विशाल जनसंख्या को आवास प्रदान करते हैं। यह समझाइए कि एेसा क्यों है।

8. उदाहरण सहित समझाइए कि किसी विशेष जलवायवी परिस्थिति में कुुछ विशिष्ट जंतु ही जीवनयापन करते क्यों पाए जाते हैं।

9. उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में रहने वाला हाथी किस प्रकार अनुकूलित है?

निम्नलिखित प्रश्नों में सही विकल्प चुनिएः

10. कोई मांसाहारी जंतु, जिनके शरीर पर धारियाँ होती हैं, अपने शिकार को पकड़ते समय बहुत तेजी से भागता है। इसके पाए जाने की संभावना है किसी

(क) ध्रुवीय क्षेत्र में।

(ख) मरूस्थल में।

(ग) महासागर में।

(घ) उष्णकटिबंधीय वर्षावन में।

11. ध्रुवीय भालू को अत्यधिक ठंडी जलवायु में रहने के लिए कौन-सी विशेषताएँ अनुकूलित करती हैं।

(क) श्वेत बाल/फर, त्वचा के नीचे वसा, तीव्र सूँघने की क्षमता।

(ख) पतली त्वचा, बड़े नेत्र, श्वेत फर/बाल।

(ग)लंबी  पूँछ, मज़बूत नखर, सफ़ेद बड़े पंजे।

(घ) श्वेत (सफ़ेद) शरीर, तैरने के लिए पंजे, श्वसन के लिए क्लोम (गिल)।

12. निम्न में से कौन-सा विकल्प उष्णकटिबंधीय क्षेत्र का सर्वश्रेष्ठ (सबसे अच्छा) वर्णन करता है?

(क) गर्म और आर्द्र।

(ख) मध्यम तापमान-अत्यधिक वर्षा।

(ग) सर्द और आर्द।

(घ) गर्म और शुष्क।

विस्तारित अधिगम - क्रियाकलाप और परियोजना कार्य

1. शीत ऋतु के किसी महीने (उदाहरणार्थ दिसंबर) में लगातार सात दिन की मौसम की रिपोर्ट नोट कीजिए। एेसी ही रिपोर्ट ग्रीष्म ऋतु के किसी महीने (उदाहरणार्थ जून) के सात दिनों के लिए बनाइए। अब अपने रिकॉर्ड के आधार पर सूर्योदय और सूर्यास्त के समय की सारणी बनाइए।

                                            सारणी

C18

  • क्या गर्मियों और सर्दियों में सूर्योदय के समय में कोई अंतर होता है?
  • सूर्योदय कब जल्दी होता है?
  • क्या आपको जून और दिसंबर के महीनों में सूर्यास्त के समय में कोई अंतर दिखाई देता है?
  • दिन की अवधि कब अधिक होती है?
  • रातें कब अधिक लंबी होती हैं?
  • दिन कभी लंबे और कभी छोटे क्यों होते हैं?
  • जून और दिसंबर में चुने गए दिनों के लिए दिन की अवधि का ग्राफ खींचिए।

(ग्राफ बनाने के लिए निर्देश अध्याय 13 में दिए गए हैं)।

2. भारत मौसम विज्ञान विभाग के बारे में जानकारी एकत्रित कीजिए। यदि संभव हो, तो http//www.imd.gov.in पर इसकी वेबसाइट देखिए।

इस विभाग द्वारा किए जाने वाले कार्यों पर एक संक्षिप्त रिपोर्ट लिखिए।

क्या आप जानते हैं?

वर्षावन पृथ्वी की सतह के लगभग 6% भाग को घेरे हैं, फिर भी इनमें पृथ्वी के आधे से अधिक जंतुओं, पादपों और लगभग दो-तिहाई पुष्पीय पादपों की किस्में पाई जाती हैं। हालाँकि, इस क्षेत्र के जीवों के बारे में हमें अभी भी पूर्ण जानकारी नहीं है।