
प्रबंध की प्रकृति एवं महत्त्व 1 अध्याय एच. सी. एल. में प्रबंध जिस समय भारत के पास केवल 250 वंफप्यूटर थे, उस समय श्िाव नाडार के पास नौजवानों की एक ऐसी टीम थी जो स्वदेशीआइर्. टी. उद्योग के विकास में उत्कृष्ट रूप से योगदान दे रही थी। उन्होंने जो स्वप्न 1976 में दिल्ली में एक बरसाती में देखा गया था, तीन दशक पश्चात् यह 3.5 अरब डाॅलर का भू - मंडलीय उद्यम बन गया है। एच. सी. एल. आज आइर्. टी. उद्योग में अग्रणी है जिसमें 41,000 पेशेवर लोग कायर्रत हैं जिसके पूरे विश्व में अमरीका, यूरोप, जापान, एश्िायन एवं पैसिपिफक रिम सहित 16 देशों में कायर् स्थल हैं। आज एच. सी. एल. आइर्. टी. हाडर्वेयर निमार्ण एवं वितरण,तकनीकी एवं साॅफ्रटवेयर सेवाएँ, व्यावसायिक प्रिया का बाह्यड्डोतीकरण एवं ढाँचागत प्रबंधन में व्यवसाय कर रही है। एच. सीएल. उद्यम वैश्िवक तकनीकी आइर्. टी. सेवाओं में अग्रणी है। एच. सी. एल. की स्वदेशी माइक्रो वंफप्यूटर विकसित करने की मूल योजना 1978 में एप्पल के साथ - साथ तथा आइर्. बी. एम. से तीन वषर् पहले लाइर्। उद्योग में रुचि रखने वाले कइर् लोगों का तो मानना था कि यह भारतीय वंफप्यूटर उद्योग का जन्म है। इसकी स्थापना के जनक के सुयोग्य निदेर्शन में इसने 1988 में, अमरीका में अपने वैश्िवक परिचालन प्रारंभ किया। श्िाव नाडार की जोख्िाम उठाने की योग्यता अदभुत है एवं भविष्य के प्रति उसकी प्रतिब(ता के आधार पर उसने अनेक बार साहसिक कदम उठाए हैं। जब हाडर्वेयर का बोलबाला था, उस समय नाडार को आइर्. टी. श्िाक्षा एवं ज्ञान के क्षेत्रा में भारी संभावनाएँ दिखाइर् दी जिसके कारण एन. आइर्. आइर्. टी. काजन्म हुआ। इसके बाद भी जब साॅफ्रटवेयर अभी अपनी श्िाशु अवस्था में ही था, नाडार इसमें भी अग्रणी रहा तथा एच. सी. एल. आज विश्व बाशार में एक गवर् करने योग्य शक्ित बन चुका है। एच. सी. एलएन्टरप्राइजिस के संगठन ढाँचे में भारत में सूचिब( दो वंफपनियाँ हैं - एच. सी. एल. टेक्नोलाॅजीस एवं एच. सी. एल. इन्पफो सिस्टम्स। इसके चेयरमैन एवं मुख्य कायर्कारी अिाकारी भी नाडार के अनुसार इस समूह की सपफलता का श्रेय इसकी प्रबंधन टीम एवं उनकी उद्यमी भावना को जाता है जिससे कि मिलकर तेजी से बदलते पयार्वरण एवं तकनीकी का मुकाबला कर सके एवं जोख्िामों को अवसर में बदल सके। सपफलता का मूल कारण उन अद्वितीय परिस्िथतियों के नये माॅडल का विकास है जिनमें इस समूह ने व्यवसाय किया है। ये नए संगठन हैं इसके व्यवसाय अध्ययनपुनगर्ठन, दिशानिदेर्श, बाशार का निमार्ण, तकनीकी उत्तलन एवं व्यवसाय का उच्च पैमाना। अन्य किसी भी व्यावसायिक उद्यम के समान एच. सी. एल. के लिए भी अपने आपको एक व्यवसाय के रूप में बनाए रखनेएवं विकास के लिए लाभ कमाना महत्त्वपूणर् है। एच. सी. एल. के प्रबंध का यह विश्वास है कि एक संतुष्ट कमर्चारी एक संतुष्ट ग्राहक को जन्म देता है जिससे लाभ मिलता है जिससे पिफर आगे अंशधारी संतुष्ट होते हैं। अिागम उद्देश्य इस अध्याय के अध्ययन के पश्चात् आपμ ऽ प्रबंध की प्रकृति एवं संगठन में इसके महत्त्व को समझा सकेंगेऋ ऽ प्रबंध की प्रकृति को कला, विज्ञान एवं पेशे के रूप में समझा सवेंफगेऋ ऽ प्रबंध के विभ्िान्न कायो± का वणर्न कर सवेंफगे एवं ऽ समन्वय की प्रकृति एवं इसके महत्त्व को समझ सवेंफगे। एच. सी. एल. समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्वों पर दृढ़ है। इसने प्रबंध, इंजीनियरिंग एवं वंफप्यूटर श्िाक्षण के क्षेत्रा में कइर् श्िाक्षा संस्थानों की स्थापना की है। जिनमें एक तिहाइर् विद्याथीर् लड़कियाँ हैं। श्िाव नाडार का यह मानना है कि भविष्य वैश्िवक उद्यम का है जो अपने आपको वैश्िवक अथर्व्यवस्था की चुनौतियों के अनुरूप ढालने में सक्षम है। ड्डोतदृूूूण्ीबसण्पद विषय प्रवेश उपरोक्त वस्तुस्िथति एक ऐसे सपफल संगठन का उदाहरण है जो देश की शीषर्स्थ वंफपनियों में सेएक है। यह अपनी प्रबंध की गुणवत्ता के परिणामस्वरूप शीषर् पर पहुँची है। प्रबंध की आवश्यकता हर प्रकार के संगठनों में होती है पिफर भले ही वह वंफप्यूटर के विनिमार्ता हैं अथवा हस्तश्िाल्प के उपभोक्ता की वस्तुओं में व्यापार करते हैं या पिफर केश सज्जा सेवाएँ प्रदान करते हैं एवं वह गैर व्यावसायिक संगठन भी हो सकते हैं। आइए एक उदाहरण और लेंμ सुहासिनी, पैफबमाटर् की शाखा प्रबंधक हैं। यह एक ऐसा संगठन है जो भारतीय हथकघार् एवं हस्तश्िाल्प उत्पादों की बिक्री का प्रवतर्न करती है तथा परंपरागत दस्तकारों को न्यायोचित रोशगार देती है। पैफबमाटर् पूरे भारत में से 7,500 श्िाल्पकार एवं दस्तकारों द्वारा उत्पाद प्राप्त करते हैं। उत्पादों का नियोजन एक कठिन कायर् है। उत्पाद को बाशार की माँग के अनुरूप सुनिश्िचत करने के लिए इस कायर् को विपणन एवं डिजाइन विशेषज्ञों की एक टीम पूरा करती है। इस योजना को सुहासिनी ग्रामीण दस्तकारों को भेज देती है जो पिफर इसे मूतर् रूप प्रदान करते हैं। पैफबमाटर् एक निजी वंफपनी है जिसकी पूरे देश में अनेक शाखाएँ हैं। इसका एक जटिल संगठनात्मक ढाँचा है जिसमें उत्पादन का कायर् अनेक वुफशल हस्तकार करते हैं एवं विपणन का कायर् शाखाओं के कमर्चारी करते हैं जिनका प्रबंध सुहासिनी जैसों के हाथ में है। वह अपने कमर्चारियों को निरंतर निदेर्श देती रहती है एवं उन्हें प्रोत्साहित करती रहती है। वह यह भी सुनिश्िचत करती है कि उत्पादन योजनाओं के अनुसार है जिससे कि बिक्री की नियमितता बनी रहे। सुहासिनी जीवन के प्रत्येक दिन अनेक पारस्परिक संबंिात कायर् करती हैं। वह दीपावली एवं िसमस जैसे त्यौहारों के लिए विशेष वस्तुओं की योजना बनाती है। इसका अथर् है और अिाक धन की व्यवस्था करना तथा, और अिाक दस्तकारों की भतीर् करना। माल की सुपुदर्गी समय पर हो यह सुनिश्िचत करने के लिए वह अपने आपूतिर्कतार्ओं से नियमित रूप से संवाद बनाए रखती हैं। पूरे दिन में वह ग्राहकों से मिलती है जिनसे उसे प्रतिपुष्िट प्राप्त होती है तथा सुझाव मिलते हैं। सुहासिनी पैफबमाटर् की प्रबंधक हैं। उसी प्रकार से नुसली वाडिया बाम्बे डाइंग, बिलगेट्स माइक्रोसाॅफ्रट, श्िाव नाडार एच. सी. एलएन्टरप्राइजिस, इंदीरा नुइर् पैप्सीको एवं आपके विद्यालय के प्रधानाचायर् भी प्रबंधक हंै। यह सभी संगठनों का प्रबंध करते हैं। विद्यालय, अस्पताल, दुकानें एवं बड़े निगम सभी तो संगठन हैं जिनके अलग - अलग उद्देश्य हैं जिन्हें वह पाना चाहते हैं। कोइर् भी संगठन हो तथा उसके वुफछ भी उद्देश्य हों उन सब में एक चीज समान है और वह है प्रबंध एवं प्रबंधक। आपने देखा कि प्रबंधक के रूप में सुहासिनी संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए प्रबंधक के रूप विभ्िान्न ियाएँ एवं कायर् करती हंै। पारस्परिक रूप से संबंिात एवं एक दूसरे पर निभर्र यह कायर् प्रबंध कहलाते हैं। सपफल संगठन अपने उद्देश्यों को मात्रा संयोग से ही नहीं प्राप्त कर लेते बल्िक यह एक पूवर् निधार्रित/सोची समझी प्रिया को अपनाते हैं जिसे प्रबंध कहते हैं। संगठन भले ही बड़ा हो या छोटा, लाभ के लिए हो अथवा गैर - लाभ वाला, सेवा प्रदान करता हो अथवा विनिमार्णकतार्, प्रबंध सभी के लिए आवश्यक है। प्रबंध इसलिए आवश्यक है कि व्यक्ित सामूहिक उद्देश्यों की पूतिर् में अपना श्रेष्ठतम योगदान दे सवेंफ। प्रबंध में पारस्परिक रूप से संबंिात वह कायर् सम्िमलित हैं जिन्हें सभी प्रबंधक करते हैं। एच. सी. एल एन्टरप्राइजिस का मुख्य कायर्कारी अिाकारी श्िाव नाडार एवं पैफबमाटर् की सुहासिनी भी इन सभी कायो± का निष्पादन करते हैं। इस अध्याय में आगे आप समझ पायेंगे कि यद्यपि दोनों ही प्रबंधक हैं लेकिन यह संगठन के अलग - अलग स्तर पर कायर् करते हैं। प्रबंधक अलग - अलग कायो± पर भ्िान्न समय लगाते हैं। संगठन के उच्चस्तर पर बैठे प्रबंधक नियोजन एवं संगठन पर नीचे स्तर के प्रबंधकों की तुलना में अिाक समय लगाते हैं। प्रबंध की परिभाषाएँ फ्प्रबंध एक ऐसा पयार्वरण तैयार करने एवं उसे बनाए रखने की प्रिया है जिसमें लोग समूह में कायर् करते हुए चुनीदा लक्ष्यों को वुफशलता से प्राप्त करते हैं।य् हैरल्ड वूफन्ट्ज एवं हींज व्हरिक फ्प्रबंध को परिभाष्िात किया गया है कि यह संगठन के परिचालन के नियोजन संगठन एवं नियंत्राण की प्रिया है जो उद्देश्यों को प्रभावी एवं वुफशलता से पूरा करने के लिए मानव एवं भौतिक संसाधनों में समन्वय के लिए की जाती है।य् राॅबटर् एल टिªवैली एवं एम. जैनी न्यूपोटर् फ्प्रबंध परिवतर्नशील पयार्वरण में सीमित संसाधनों का वुफशलतापूवर्क उपयोग करते हुए संगठन के उद्देश्यों को, प्रभावी ढंग से प्राप्त करने, के लिए दूसरों से मिलकर एवं उनके माध्यम से कायर् करने की प्रिया है।य् अवधारणा कइर् लेखकों ने प्रबंध की परिभाषा दी है। प्रबंध शब्द एक बहुप्रचलित शब्द है जिसे सभी प्रकार की ियाओं के लिए व्यापक रूप से प्रयुक्त किया गया है। वैसे यह किसी भी उद्यम की विभ्िान्न ियाओं के लिए मुख्य रूप से प्रयुक्त हुआ है। उपरोक्त उदाहरण एवं वस्तुस्िथति के अध्ययन से यह स्पष्ट हो गया होगा कि प्रबंध वह िया है जो हर उस संगठन में आवश्यक है जिसमें लोग समूह के रूप में कायर् कर रहे हैं। संगठन में लोग अलग - अलग प्रकार के कायर् करते हैं लेकिन वह अभी समान उद्देश्य को पाने के लिए कायर् करते हैं। प्रबंध लोगों के प्रयत्नों एवं समान उद्देश्य को प्राप्त करने में दिशा प्रदान करता है। इस प्रकार से प्रबंध यह देखता है कि कायर् पूरे हों एवं लक्ष्य प्राप्त किए जाएँ ;अथार्त् प्रभाव पूणर्ताद्ध कम - से - कम साधन एवं न्यूनतम लागत ;अथार्त् कायर् क्षमताद्ध पर हो। अतः प्रबंध को परिभाष्िात किया जा सकता है कि यह उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से एवं दक्षता से प्राप्त करने के उद्देश्य से कायो± को पूरा कराने की प्रिया है। हमे इस परिभाषा के विश्लेषण की आवश्यकता है। वुफछ शब्द ऐसे हैं जिनका विस्तार से वणर्न करना आवश्यक है। ये शब्द हैंμ;कद्ध प्रिया ;खद्ध प्रभावी ढंग से एवं ;गद्ध पूणर् क्षमता से। क्रीटनर परिभाषा में प्रयुक्त प्रिया से अभ्िाप्राय है प्राथमिक कायर् अथवा ियाएँ जिन्हें प्रबंध कायो± को पूरा कराने के लिए करता है। ये कायर् हैंμ नियोजन, संगठन, नियुक्ितकरण, निदेर्शन एवं नियंत्राण जिन पर चचार् इस अध्याय में एवं पुस्तक में आगे की जाएगी। प्रभावी अथवा कायर् को प्रभावी ढंग से करने का वास्तव में अभ्िाप्रायः दिए गए कायर् को संपन्न करना है। प्रभावी प्रबंध का संबंध सही कायर् को करने, ियाओं को पूरा करने एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने से है। दूसरे शब्दों में, इसका कायर् अंतिम परिणाम प्राप्त करना है। लेकिन मात्रा कायर् को संपन्न करना ही पयार्प्त नहीं है इसका एक और पहलू भी है और वह है कायर्वुफशलता अथार्त् कायर् को वुफशलतापूवर्क करना। वुफशलता का अथर् है कायर् को सही ढंग से न्यूनतम लागत पर करना। इसमें एक प्रकार का लागत - लाभ विश्लेषण एवं आगत तथा निगर्त के बीच संबंध होता है। यदि कम साधनों ;आगतद्ध का उपयोग कर अिाक लाभ ;निगर्तद्ध प्राप्त करते हैं तो हम कहेंगे कि क्षमता में वृि हुइर् है। क्षमता में वृि होगी यदि उसी लाभ के लिए अथवा निगर्त के लिए कम साधनों का उपयोग किया जाता है एवं कम लागत व्यय की जाती है। आगत साधन वे हैं जो किसी कायर् विशेष को करने के लिए आवश्यक धन, माल उपकरण एवं मानव संसाधन हों। स्वभाविक है कि प्रबंध का संबंध इन संसाधनों के वुफशल प्रयोग से है क्योंकि इनसे लागत कम होती है एवं अन्त में इनसे लाभ में वृि होती है। प्रभावपूणर्ता बनाम वुफशलता यह दोनों शब्द अलग - अलग होते हुए भी एक दूसरे से संबंिात हैं। प्रबंध के लिए प्रभावी एवंक्षमतावान दोनों का होना महत्त्वपूणर् है। प्रभावपूणर्ता एवं कौशल दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। लेकिन इन दोनों पक्षों में संतुलन आवश्यक है तथा कभी - कभी प्रबंध को वुफशलता से समझौता करना होता है। उदाहरण के लिए प्रभावपूणर् होना एवं वुफशलता की अनदेखी करना सरल है जिसकाअथर् है कायर् को पूरा करना लेकिन ऊँची लागत पर। उदाहरण के लिए, माना एक वंफपनी का लक्ष्य वषर् में 8,000 इकाइयों का उत्पादन करना है। इस लक्ष्य को पाने के लिए अिाकांश समय बिजली न मिलने पर प्रबंधक प्रभावोत्पादक तो था लेकिन क्षमतावान नहीं था क्योंकि, उसी निगर्त के लिए अिाक आगत ;श्रम की लागत, बिजली की लागतद्ध का उपयोग किया गया। कभी - कभी व्यवसाय कम संसाधनों से माल के उत्पादन पर अिाक ध्यान वेंफित करता है अथार्त् लागत तो कम कर दी लेकिन निधार्रित उत्पादन नहीं कर पाए। परिणामस्वरूप माल बाशार में नहीं पहुँच पाया इसलिए इसकी माँग कम हो गइर् तथा इसका स्थान प्रतियोगियों ने ले लिया। यह कायर्वुफशलता लेकिन प्रभावपूणर्ता की कमी की स्िथति है क्योंकि माल बाशार में नहीं पहुँच पाया। इसलिए न्यूनतम लागत पर ;वुफशलतापूवर्कद्ध प्रबंधक लिए लक्ष्यों को प्राप्त करना ;प्रभावोत्पादकताद्धअिाक महत्त्वपूणर् है। इसके लिए प्रभावपूणर्ता एवं वुफशलता में संतुलन रखना होता है। साधारणतया उच्च कायर् वुफशलता के साथ उच्च प्रभावपूणर्ता होती है जो कि सभी प्रबंधकों का लक्ष्य होता है। लेकिन बगैर प्रभावपूणर्ता के उच्च कायर् वुफशलता पर अनावश्यक रूप से जोर देना भी अवांछनीय है। कमजोर प्रबंधन प्रभावपूणर्ता एवं कायर्वुफशल दोनांे की कमी के कारण होता है। जी. इर्. का प्रबंध मंत्रा जैक वैल्श को 1981 में जी. इर्. का सी. इर्. ओ. नियुक्त किया गया। उस समय पफमर् की बाशारी पूँजी 13 अरब डाॅलर थी। 2000 में जब वह अपने पद से हटा उस समय तक पफमर् का आवतर् बढ़कर 500 अरब डाॅलर हो चुका था। वैल्श की सपफलता का राज क्या था? उसने प्रबंधकों की सपफलता के लिए निम्न संकेत दिए हैं। ऽ स्वप्न देखो और पिफर इस स्वप्न को वास्तविकता में बदलने के लिए अपने संगठन में ऊजार् भर दोμलोगों को अपने कायर् के प्रति इतना आतुर बना दो कि वह इस योजना के ियान्वयन के लिए भी इंतजारन करें। ऊजार्वान बनो, प्रतियोगी बनो एवं लोगों में उत्तेजना पैदा करने एवं परिणाम प्राप्त करने की योग्यता रखो। ऽ सामरिक महत्त्व के मामलों पर ध्यान वेंफित करोμतुम्हारा कायर् अपने प्रत्येक व्यवसाय की महत्त्वपूणर् समस्याओं को समझना है। उन क्षेत्रों में विजय प्राप्त करने के लिए आवश्यक प्रतिभाओं की पहचान करो। ऽ मुख्य समस्या पर ध्यान वेंफित करोμतुम्हारा काम व्यापक स्वरूप को देखना है। प्रत्येक पक्ष का प्रबंध मत करो। छोटी - छोटी बातों में मत उलझो। इसके स्थान पर दूसरों को उत्साहित करो कि वह तुम्हारे वुफछ न वुफछ स्वप्नों को साकार करे। स्वयं बड़े लोगों के बीच रहो एवं विश्वास रखो कि वह अपना कायर् करेंगे एवं संगठन में अपना श्रेष्ठतम योगदान देंगे। ऽ प्रत्येक का योगदान लो एवं उच्च विचार जहाँ से भी मिलें उनका स्वागत करोμकोइर् भी व्यक्ित नेता हो सकता है यदि उसका कोइर् योगदान है और कोइर् भी व्यक्ित यदि नए विचार लाता है तो यही उसका सवार्िाक सारगभ्िार्त योगदान होगा। प्रत्येक से सवर्श्रेष्ठ विचार प्राप्त करना ही व्यवसाय है। किसी भी संगठन के लिए नए विचार जीवन दायनी रक्त के समान होते हैं। यह इसे चलाने वाला ईंधन है। जिस व्यक्ित के पास नवीन विचारहैं वही हीरा है। किसी भी संगठन के लिए सवार्िाक महत्त्वपूणर् विचारों को व्यक्त करना एवं दूरदृष्िट है। ऽ उदाहरण प्रस्तुत कर नेतृत्व प्रदान करेंμआप स्वयं दूसरों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करें तभी आप उनमेंवुफछ कर दिखाने की चिंगारी पैदा कर पायेंगे। जैक वैल्श में नेतृत्व के चार इर् - ऊजार्, ऊजार् प्रदान करना,वुफछ हटकर करना एवं ियान्वयन पर अिाकार - सदा दिखाइर् दिए। उसमें कमाल की ऊजार् थी, दूसरों में जोश भर देता था, उसमें अद्भुत प्रतियोगिता की भावना थी तथा अद्वितीय ियान्वयन का इतिहास था। वैल्श के कीतिर्मान की यही वुंफजी है। उसकी चाहत की इन सभी विशेषताओं में से यदि एक में भी कम होती तो उसे यह प्रशंसा नहीं मिलती। प्रबंध की विशेषताएँ वुफछ परिभाषाओं के अध्ययन के पश्चात् हमें वुफछ तत्वों का पता लगता है जिन्हें हम प्रबंध की आधारभूत विशेषताएँ कहते हैं। ;कद्ध प्रबंध एक उद्देश्यपूणर् प्रिया हैμकिसी भी संगठन के वुफछ मूलाधार उद्देश्य होेते हैं जिनके कारण उसका अस्ितत्व है। यह उद्देश्य सरल एवं स्पष्ट होने चाहिएँ। प्रत्येक संगठन के उद्देश्य भ्िान्न होते हैं। उदाहरण के लिए एक पुफटकर दुकान का उद्देश्य बिक्री बढ़ाना हो सकता है लेकिन ‘दि स्पास्िटकस सोसाइटी आॅपफ इंडिया’ का उद्देश्य विश्िाष्ट आवश्यकता वाले बच्चों को श्िाक्षा प्रदान करना है। प्रबंध संगठन के विभ्िान्न लोगों के प्रयत्नों को इन उद्देश्यों की प्राप्ित हेतु एक सूत्रा में बाँधता है। ;खद्ध प्रबंध सवर्व्यापी हैμसंगठन चाहे आथ्िार्क हो या सामाजिक या पिफर राजनैतिक, प्रबंध की ियाएँ सभी में समान हैं। एक पेट्रोल पंप के प्रबंध की भी उतनी ही आवश्यकता है जितनी की एक अस्पताल अथवा एक विद्यालय की है। भारत में प्रबंधकों का जो कायर् है वह यू. एस. ए, जमर्नी अथवा जापान में भी होगा। वह इन्हें वैफसे करते हैं यह भ्िान्न हो सकताहै। यह भ्िान्नता भी उनकी संस्कृति, रीति - रिवाज एवं इतिहास की भ्िान्नता के कारण हो सकती है। ;गद्ध प्रबंध बहुआयामी हैμप्रबंध एक जटिल िया है जिसके तीन प्रमुख परिमाण हैं, जो इस प्रकार हैंμ ;कद्ध कायर् का प्रबंधμसभी संगठन किसी न किसी कायर् को करने के लिए होते हैं। कारखाने में किसी उत्पादक का विनिमार्ण होता है तो एक वस्त्रा भंडार में ग्राहक के किसी आवश्यकता की पूतिर् की जाती है जबकि अस्पताल में एक मरीज का इलाज किया जाता है। प्रबंध इन कायो± को प्राप्य उद्देश्यों में परिवतिर्त कर देता है तथा इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के मागर् निधार्रित करता है। इनमें सम्मलित हंैμसमस्याओं का समाधान, निणर्य लेना, योजनाएँ बनाना, बजट बनाना, दायित्व निश्िचत करना एवं अिाकारों का प्रत्यायोजन करना। ;खद्ध लोगों का प्रबंधμमानव संसाधन अथार्त् लोग किसी भी संगठन की सबसे बड़ीसंपिा होते हैं। तकनीक में सुधारों के बाद भी लोगों से काम करा लेना आज भी प्रबंधक का प्रमुख कायर् है। लोगों के प्रबंधन के दो पहलू हैं - ;पद्ध प्रथम तो यह कमर्चारियों को अलग - अलग आवश्यकताओं एवं व्यवहार वाले व्यक्ितयों के रूप में मानकर व्यवहार करता है। ;पपद्ध दूसरे यह लोगों के साथ उन्हें एक समूह मानकर व्यवहार करता है। प्रबंध लोगों की ताकत को प्रभावी बनाकर एवं उनकी कमजोरी को अप्रसांगिक बनाकर उनसे संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ित के लिए काम कराता है। ;गद्ध परिचालन का प्रबंधμसंगठन कोइर् भी क्यों न हो इसका आस्ितत्व किसी न किसी मूल उत्पाद अथवा सेवा को प्रदान करने पर टिका होता है। इसके लिए एक ऐसी उत्पादन प्रिया की आवश्यकता होती है जो आगत माल को उपभोग के लिए आवश्यक निगर्त में बदलने के लिए आगत माल एवं तकनीक के प्रवाह को व्यवस्िथत करती है। यह कायर् के प्रबंध एवं लोगों के प्रबंध दोनांे से जुड़ी होती है। ;घद्ध प्रबंध एक निरंतर चलने वाली प्रिया हैμप्रबंध प्रिया निरंतर, एकजुट लेकिन पृथक - पृथक कायो± ;नियोजन संगठन, निदेर्शन नियुक्ितकरण एवं नियंत्राणद्ध की एक शृंखला है। इन कायो± को सभी प्रबंधक सदा साथ - साथ ही निष्पादित करते हैं। तुमने ध्यान दिया होगा पैफबमाटर् में सुहासिनी एक ही दिन में कइर् अलग - अलग कायर् करती हैं। किसी दिन तो वह भविष्य में प्रदशर्नी की योजना बनाने पर अिाक समय लगाती हंै तो दूसरे दिन वह कमर्चारियों की समस्याओं को सुलझाने में लगी होती हैं। प्रबंधक के कायो± में कायो± की शृंखला समंवित है जो निरंतर सिय रहती है। ;घद्ध प्रबंध एक सामूहिक िया हैμसंगठन भ्िान्न - भ्िान्न आवश्यकता वाले अलग - अलग प्रकार के लोगों का समूह होता है। समूह का प्रत्येक व्यक्ित संगठन में किसी न किसी अलग उद्देश्य को लेकर सम्िमलित होता है लेकिन संगठन के सदस्य के रूप में वह संगठन के समान उद्देश्यों की पूतिर् के लिए कायर् करते हैं। इसके लिए एक टीम के रूप में कायर् करना होता है एवं व्यक्ितगत प्रयत्नों में समान दिशा में समन्वय की चित्रा 1.2μप्रबंध - एक बहुआयामी िया। आवश्यकता होती है। इसके साथ ही आवश्यकताओं एवं अवसरों में परिवतर्न के अनुसार प्रबंध सदस्यों को बढ़ने एवं उनके विकास को संभव बनाता है। ;चद्ध प्रबंध एक गतिशील कायर् हैμप्रबंध एक गतिशील कायर् होता है एवं इसे बदलते पयार्वरण में अपने अनुरूप ढालना होता है। संगठन बाह्य पयार्वरण के संपवर्फ में आता है जिसमें विभ्िान्न सामाजिक, आथ्िार्क एवं राजनैतिक तत्व सम्िमलित होते हैं सामान्यता के लिए संगठन को, अपने आपको एवं अपने उद्देश्यों को पयार्वरण के अनुरूप बदलना होता है। शायद आप जानते हैं कि पफास्टपूफड क्षेत्रा के विशालकाय संगठन मैकडोनल्स ने भारतीय बाशार में टिके रहने के लिए अपनी खान - पान सूची में भारी परिवतर्न किए। ;छद्ध प्रबंध एक अमूतर् शक्ित हैμप्रबंध एक अमूतर् शक्ित है जो दिखाइर् नहीं पड़ती लेकिन संगठन के कायो± के रूप में जिसकी उपस्िथति को अनुभव किया जा सकता है। संगठन में प्रबंध के प्रभाव का भान योजनाओं के अनुसार लक्ष्यों की प्राप्ित, प्रसन्न एवं संतुष्ट कमर्चारी के स्थान पर व्यवस्था के रूप में होता है। प्रबंध के उद्देश्य प्रबंध वुफछ उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कायर् करता है। उद्देश्य किसी भी िया के अपेक्ष्िात परिणाम होते हैं। इन्हें व्यवसाय के मूल प्रयोजन से प्राप्त किया जाना चाहिए। किसी भी संगठन के भ्िान्न - भ्िान्न उद्देश्य होते हैं तथा प्रबंध को इन सभी उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से एवं दक्षता से पाना होता है। उद्देश्यों को संगठनात्मक उद्देश्य,सामाजिक उद्देश्य एवं व्यक्ितगत उद्देश्यों में वगीर्कृत किया जा सकता है। ;कद्ध संगठनात्मक उद्देश्यμप्रबंध, संगठन के लिए उद्देश्यों के निधार्रण एवं उनकोपूरा करने के लिए उत्तरदायी होता है। इसे सभी क्षेत्रों के अनेक प्रकार के उद्देश्यों को प्राप्त करना होता है तथा सभी हिताथ्िार्यों जैसेμअंशधारी, कमर्चारी, ग्राहक, सरकार आदि के हितों को ध्यान में रखना होता है। किसी भी संगठन का मुख्य उद्देश्य मानव एवं भौतिक संसाधनों के अिाकतम संभव लाभ के लिए उपयोग होना चाहिए। जिसका तात्पयर् है व्यवसाय के आथ्िार्क उद्देश्यों को पूरा करना। ये उद्देश्य हंै - अपने आपको जीवित रखना, लाभ अजिर्त करना एवं बढ़ोतरी। जीवित रहनाμकिसी भी व्यवसाय का आधारभूत उद्देश्य अपने अस्ितत्व को बनाए रखना होता है। प्रबंध को संगठन के बने रहने की दिशा में प्रयत्न करना चाहिए। इसके लिए संगठन को पयार्प्त धन कमाना चाहिए जिससे कि लागतों को पूरा किया जा सके। लाभμव्यवसाय के लिए इसका बने रहना ही पयार्प्त नहीं है। प्रबंध को यह सुनिश्िचत करना होता है कि संगठन लाभ कमाए। लाभ उद्यम के निरंतर सपफल परिचालन के लिए एक महत्त्वपूणर् प्रोत्साहन का कायर् करता है। लाभ व्यवसाय की लागत एवं जोख्िामों को पूरा करने के लिए आवश्यक होता है। बढ़ोतरीμदीघर् अविा में अपनी संभावनाओं में वृि व्यवसाय के लिए बहुत आवश्यक है। इसके लिए व्यवसायका बढ़ना बहुत महत्त्व रखता है। उद्योग में बने रहने के लिए प्रबंध को संगठन विकास की संभावना का पूरा लाभ उठाना चाहिए। व्यवसाय के विकास को विक्रय आवतर्, कमर्चारियों की संख्या में वृि या पिफर उत्पादों की संख्या या पूँजी के निवेश में वृि आदि के रूप में मापा जा सकता है। ;खद्ध सामाजिक उद्देश्यμसमाज के लिए लाभों की रचना करना है। संगठन चाहे व्यावसायिक है अथवा गैर व्यावसायिक, आइर्. टी. सी. ग्रामीण भारत का सशक्ितकरण भारत के दूर दराज के गाँवों में डिजीटल क्रांति किसानों के जीवन को एक नया ही स्वरूप प्रदान कर रही है। इन गाँवों में किसान जमीन के छोटे - छोटे टुकड़ों पर सोयाबीन, गेहूँ एवं काॅपफी उगा रहे हैं जो कि वह हजारों वषो± से करते आ रहे हैं। एक ठेठ गाँव में बिजली का भरोसा नहीं है और टेलीपफोन की लाइन भी बड़ी पुरानी हैं। अिाकांश किसान अनपढ़ हैं तथा उन्होंने वंफप्यूटर देखा तक नहीं है। लेकिन इन गाँवों के किसान भारत की सबसे बड़ी उपभोक्ता उत्पाद एवं कृष्िाजन्य व्यावसायिक वंफपनियों में से एक आइर्. टी. सी. द्वारा रचित इर् - चैपाल की पहल पर इर् - व्यवसाय कर रहे हैं। आइर्. टी. सी. द्वारा इर् - चैपाल की पहल किसी भी व्यावसायिक संगठन द्वारा निगमित सामाजिक दायित्वों को पूरा करने का एक सुंदर उदाहरण है। इस कायर्क्रम का मूल उद्देश्य ग्रामीण भारत के किसानों को प्रत्यक्ष विपणन माध्यमों के प्रयोग समझाना तथा, बहु - मध्यस्थ व्यवस्था एवं बेकार आहार प्रदान तथा अनावश्यक लेन - देन की लागत को समाप्त करने के अवसर प्रदान करना है। ग्रामीण भारत में किसी निगमित इकाइर् की एक मात्रा सबसे बड़ी सूचना - तकनीक आधारित हस्तक्षेप है जिसने भारतीय किसान को एक प्रगतिशील जिज्ञासु नागरिक बना दिया है, उसे ज्ञान से माला - माल कर दिया है तथा एक नयी शक्ित प्रदान की है। इर् - चैपाल, किसान को निणर्य लेने की योग्यता में सुधार के लिए सामयिक सूचना एवं व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करती है जिससे कृष्िा उत्पाद बाशार की माँग के अिाक अनुरूप होते हैं, वह श्रेष्ठ गुणवत्ता उत्पादकता एवं, और अिाक मूल्य प्राप्त कर सकते हैं। क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रा में, साक्षरता का स्तर निम्न कोटी का होता है इसलिए वंफप्यूटर टमिर्नल तथा किसानों के बीच व्यक्ितगत संवाद को संभव बनाने में गाँव के अग्रणी किसान की चैपाल संचालक की भूमिका इस परियोजना का वेंफद्र बिंदु होता है। इर् - चैपाल स्माटर् काडर् के द्वारा इर् - चैपाल काम, वैब साइट पर व्यावहारिक सूचना प्रदान करने के लिए किसान की पहचान संभव हो पाती है। लाइन पर लेन - देन करने से किसानों को बड़ी मात्रा में लाभ एवं माल के बाशार मूल्य का लाभ भी मिलता है। इर् - चैपाल की पहल को हावर्ड बिजनेस स्वूफल में प्रमुख घटना अध्ययन के रूप में स्थान प्राप्त हुआ है जिसमें किसी प्रमुख व्यावसायिक संस्थान द्वारा गरीब ग्रामीणों के लाभ के लिए आधुनिक तकनीकी के उपयोग को उ(रित किया गया है। ड्डोतμमोहनबीर साहनी, मैक काॅरमिक ट्रीब्यून प्रोपेफसर आॅपफ टेक्नोलाॅजी, केलोग स्वूफल आॅपफ मैनेजमेंट, यू. एस. ए समाज के अंग होने के कारण उसे वुफछ सामाजिक दायित्वों को पूरा करना होता है। इसका अथर् है समाज के विभ्िान्न अंगों के लिए अनुवूफल आथ्िार्क मूल्यों की रचना करना। इसमें सम्िमलित हैं - उत्पादन के पयार्वरण भ्िान्न प(ति अपनाना, समाज के लोगों से वंचित वगो± को रोशगार के अवसर प्रदान करना एवं कमर्चारियों के लिए विद्यालय, श्िाशुगृह जैसी सुविधाएँ प्रदान करना। आगे बाॅक्स में एक निगमित सामाजिक दायित्व को पूरा करने वाले संगठन का उदाहरण दिया गया है। ;गद्ध व्यक्ितगत उद्देश्यμसंगठन उन लोगों से मिलकर बनता है जिनसे उनका व्यक्ितत्व, पृष्ठभूमि, अनुभव एवं उद्देश्य अलग - अलग होते हैं। ये सभी अपनी विविध आवश्यकताओं को संतुष्िट हेतु संगठन का अंग बनते हैं। यह प्रतियोगी वेतन एवंअन्य लाभ जैसी वित्तीय आवश्यकताओं से लेकर साथ्िायों द्वारा मान्यता जैसी सामाजिक आवश्यकताओं एवं व्यक्ितगत बढ़ोतरी एवं विकास जैसी उच्च स्तरीय आवश्यकताओं के रूप में अलग - अलग होती हैं। प्रबंध को संगठन में तालमेल के लिए व्यक्ितगत उद्देश्यों का संगठनात्मक उद्देश्यों के साथ मिलान करना होता है। प्रबंध का महत्त्व अब तक हम समझ चुके हैं कि प्रबंध एक सावर्भौमिक िया है जो किसी भी संगठन का अभ्िान्न अंग है। अब हम उन वुफछ कारणों का अध्ययन करेंगे जिसके कारण प्रबंध इतना महत्त्वपूणर् हो गया हैμ ;कद्ध प्रबंध सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होता हैμप्रबंध की आवश्यकता प्रबंध के लिए नहीं बल्िक संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ित के लिए होती है। प्रबंध का कायर् संगठन के वुफल उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए व्यक्ितगत प्रयत्न को समान दिशा देना है। ;खद्ध प्रबंध क्षमता में वृि करता हैμप्रबंधक का लक्ष्य संगठन की ियाओं के श्रेष्ठ नियोजन, संगठन, निदेशन, नियुक्ितकरण एवं नियंत्राण के माध्यम से लागत को कम करना एवं उत्पादकता को बढ़ाना है। ;गद्ध प्रबंध गतिशील संगठन का निमार्ण करता हैμप्रत्येक संगठन का प्रबंध् निरंतर बदल रहे पयार्वरण के अंतगर्त करना होता है। सामान्यतः देखा गया है कि किसी भी संगठन में कायर्रत लोग परिवतर्न का विरोध करते हैं क्योंकि इसका अथर् होता है परिचित, सुरक्ष्िात पयार्वरण से नवीन एवं अिाक चुनौतीपूणर् पयार्वरण की ओर जाना। प्रबंध लोगों को इन परिवतर्नों को अपनाने में सहायक होता है जिससे कि संगठन अपनी प्रतियोगी श्रेष्ठता को बनाए रखने में सपफल रहता है। ;घद्ध प्रबंध व्यक्ितगत उद्देश्यों की प्राप्ित में सहायक होता हैμप्रबंधक अपनी टीम को इस प्रकार से प्रोत्साहित करता है एवं उसका नेतृत्व करता है कि प्रत्येक सदस्य संगठन के वुफल उद्देश्यों में योगदान देते हुए व्यक्ितगत उद्देश्यों को प्राप्त करता है। अभ्िाप्रेरणा एवं नेतृत्व के माध्यम से प्रबंध व्यक्ितयों को टीम - भावना, सहयोग एवं सामूहिक सपफलता के प्रति प्रतिब(ता के विकास में सहायता प्रदान करता है। ;घद्ध प्रबंध समाज के विकास में सहायक होता हैμसंगठन बहुउद्देश्यीय होता है जो इसके विभ्िान्न घटकों के उद्देश्यों को पूरा करता है। इन सबको पूरा करने की प्रिया में प्रबंध संगठन के विकास में सहायक होता है तथा इसके माध्यम से समाज के विकास में सहायकहोता है। यह श्रेष्ठ गुणवत्ता वाली वस्तु एवं सेवाओं को उपलब्ध कराने, रोशगार के अवसरों को पैदा करने, लोगों के भले के लिए नयी तकनीकों को अपनाने, बुि एवं विकास के रास्ते पर चलने में सहायक होता है। प्रबंध की प्रकृति प्रबंध इतना ही पुराना है जितनी की सभ्यता। यद्यपि आधुनिक संगठन का उद्गम नया ही है लेकिन संगठित कायर् तो सभ्यता के प्राचीन समय से ही होते रहे हैं। वास्तव में संगठन को विश्िाष्ट लक्षण माना जा सकता है जो सभ्य समाज को असभ्य समाज से अलग करता है। प्रबंध के प्रारंभ के व्यवहार वे नियम एवं कानून थे जो सरकारी एवं वाण्िाज्ियक ियाओं के अनुभव से पनपे। व्यापार एवं वाण्िाज्य के विकास से क्रमशः प्रबंध के सि(ांत एवं व्यवहारों का विकास हुआ। ‘प्रबंध’ शब्द आज कइर् अथो± में प्रयुक्त होताहै जो इसकी प्रकृति के विभ्िान्न पहलुओं को उजागर करते हैं। प्रबंध के अध्ययन का विकास बीते समय में आधुनिक संगठनों के साथ - साथ हुआ है। यह प्रबंधकों के अनुभव एवं आचरण तथा सि(ांतों के संबध समूह दोनों पर आधारित रहा है। बीते समय में इसका एक गतिशील विषय के रूप में विकास हुआ है। जिसकी अपनी विश्िाष्ट विशेषताएँ हैं। लेकिन प्रबंध कीप्रकृति से संबंिात एक प्रश्न का उत्तर देना आवश्यक है कि प्रबंध विज्ञान है या कला है यापिफर दोनों है? इसका उत्तर देने के लिए आइए विज्ञान एवं कला दोनों की विशेषताओं का अध्ययन करें तथा देखें कि प्रबंध कहाँ तक इनकी पूतिर् करता है। प्रबंध एक कला कला क्या है? कला इच्िछत परिणामों को पाने के लिए वतर्मान ज्ञान का व्यक्ितगत एवं दक्षतापूणर् उपयोग है। इसे अध्ययन, अवलोकन एवं अनुभव से प्राप्त किया जा सकता है। अब क्योंकि कला का संबंध ज्ञान के व्यक्ितगत उपयोग से है इसलिए अध्ययन किए गए मूलभूत सि(ांतों को व्यवहार में लाने के लिए एक प्रकार की मौलिकता एवं रचनात्मकता की आवश्यकता होती है। कला के आधारभूत लक्षण इस प्रकार हैंμ ;कद्ध सै(ांतिक ज्ञान का होनाμकला यह मानकर चलती है कि वुफछ सै(ांतिक ज्ञान पहले से है। विशेषज्ञों ने अपने - अपने क्षेत्रों में वुफछ मूलभूत सि(ांतों का प्रतिपादन किया है जो एक विशेष प्रकार की कला में प्रयुक्त होता है। उदाहरण के लिए नृत्य, जन संबोधन/भाषण, कला अथवा संगीत पर साहित्य सवर्मान्य है। ;खद्ध व्यक्ितगत योग्यतानुसार उपयोगμइस मूलभूत ज्ञान का उपयोग व्यक्ित, व्यक्ित के अनुसार अलग - अलग होता है। कला, इसीलिए अत्यंत व्यक्ितगत अवधारणा है। उदाहरण के लिए दो नतर्क, दो वक्ता, दो कलाकार अथवा दो लेखकों की अपनी कला के प्रदशर्न में भ्िान्नता होगी। ;गद्ध व्यवहार एवं रचनात्मकता पर आधारितμसभी कला व्यवहारिक होती हैं। कला वतर्मान सि(ांतों को ज्ञान का रचनात्मक उपयोग है। हम जानते हैं कि संगीत सात सुरों पर आधारित है। लेकिन किसी संगीतकार की संगीत रचना विश्िाष्ट अथवा भ्िान्न होती है यह इस बात पर निभर्र करती है कि इन सुरों का किस प्रकार से संगीत सृजन में प्रयोग किया गया है, जो कि उसकी अपनी व्याख्या होती है। प्रबंध एक कला है क्योंकि, यह निम्न विशेषताओं को पूरा करती हैμ ;कद्ध एक सपफल प्रबंधक, प्रबंध कला का उद्यम के दिन प्रतिदिन के प्रबंध में उपयोग करता है जो कि अध्ययन, अवलोकन एवं अनुभव पर आधारित होती है। प्रबंध के विभ्िान्न क्षेत्रा हैं जिनसे संबंिात पयार्प्त साहित्य उपलब्ध है। ये क्षेत्रा हैं - विपणन, वित्त एवं मानव संसाधन जिनमें प्रबंधक को विश्िाष्टता प्राप्त करनी होती है। इनके सि(ांत पहले से ही विद्यमान हैं। ;खद्ध प्रबंध के विभ्िान्न सि(ांत हैं जिनका प्रतिपादन कइर् प्रबंध विचारकों ने दिया है तथा जो वुफछ सवर्व्यापी सि(ांतों को अिाकृत करते हैं। कोइर् भी प्रबंधक इन वैज्ञानिक प(तियों एवं ज्ञान को दी गइर् परिस्िथति मामले अथवा समस्या के अनुसार अपने विश्िाष्ट तरीके से प्रयोग करता है। एक अच्छा प्रबंधक वह है जो व्यवहार, रचनात्मकता, कल्पना शक्ित, पहल क्षमता आदि को मिलाकर कायर् करता है। एक प्रबंधक एक लंबे अभ्यास के पश्चात् संपूणर्ता को प्राप्त करता है। प्रबंध के विद्याथीर् भी अपनी सृजनात्मकता के आधार पर इन सि(ांतों को अलग - अलग ढंग से प्रयुक्त करते हैं। ;गद्ध एक प्रबंध इस प्राप्त ज्ञान का परिस्िथतिजन्य वास्तविकता के परिदृश्य में व्यक्ितनुसार एवं दक्षतानुसार उपयोग करता है। वह संगठन की गतिवििायों में लिप्त रहता है, नाजुक परिस्िथतियों का अध्ययन करता है एवं अपने सि(ांतों का निमार्ण करता है जिन्हें दी गइर् परिस्िथतियों के अनुसार उपयोग में लाया जा सकता है। इससे प्रबंध की विभ्िान्न शैलियों का जन्म होता है। सवर्श्रेष्ठ प्रबंधक वह होते हैं जो समपिर्त हैं, जिन्हें उच्च प्रश्िाक्षण एवं श्िाक्षा प्राप्त हैं, उनमें उत्कट आकांक्षा, स्वयं प्रोत्साहन सृजनात्मकता एवं कल्पनाशीलता जैसे व्यक्ितगत गुण हैं तथा वह स्वयं एवं संगठन के विकास की इच्छा रखता है। प्रबंध एक विज्ञान के रूप में प्रबंधक एक क्रमब( ज्ञान - समूह है किन्हीं सामान्य सत्य अथवा सामान्य सि(ांतों को स्पष्ट करता है विज्ञान की मूलभूत विशेषताएँ निम्न हैंμ ;कद्ध क्रमब( ज्ञान - समूहμविज्ञान, ज्ञान का क्रमब( समूह है। इसके सि(ांत कारण एवं परिणाम के बीच में संबंध आधारित हैं। उदाहरण के लिए, पेड़ से सेब का टूटकर पृथ्वी पर आने की घटना गुरुत्वाकषर्ण के सि(ांत को जन्म देती है। ;गद्ध परीक्षण पर आधारित सि(ांतμ वैज्ञानिक सि(ांतों को पहले अवलोकन के माध्यम से विकसित किया जाता है और पिफर नियंत्रिात परिस्िथतियों में बार - बार परीक्षण कर उसकी जांच की जाती है। ;घद्ध व्यापक वैधताμवैज्ञानिक सि(ांत, वैधता एवं उपयोग के लिए सावर्भौमिक होते हैं। उपयुर्क्त विशेषताओं के आधार पर हम कह सकते हैं प्रबंध विज्ञान के रूप में वुफछ विशेषताओं को धारण करता हैμ ;कद्ध प्रबंध भी क्रमब( ज्ञान - समूह है। इसके अपने सि(ांत एवं नियम हैं जो समय - समय पर विकसित हुए हैं। लेकिन ये अन्य विषय जैसे - अथर्शास्त्रा, समाज शास्त्रा, मनोविज्ञान शास्त्रा एवं गण्िात से भी प्रेरित होता है। अन्य किसी भी संगठित िया के समान प्रबंध की भी अपनी शब्दावली एवं अवधारणाओं का शब्दकोष है। उदाहरण के लिए हम िकेट अथवा पुफटबाॅल जैसे खेलों पर चचार् के समय समान शब्दावली का उपयोग करते हैं। ख्िालाड़ी भी एक दूसरे से बातचीत करने में इन्हीं शब्दों का प्रयोग करते हैं। इसी प्रकार से प्रबंधकों को भी एक दूसरे से संवाद करते समय समान शब्दावली का प्रयोग करना चाहिए तभी वह अपने कायर् की स्िथति को सही रूप में समझ पाएंगे। ;खद्ध प्रबंध के सि(ांत, विभ्िान्न संगठनों में बार - बार के परीक्षण एवं अवलोकन के आधार पर विकसित हुए हैं। अब क्योंकि प्रबंध का संबंध मनुष्य एवं मानवीय व्यवहार से है, इसलिए इन परीक्षणों के परिणामों की न तो सही भविष्यवाणी की जा सकती है और न ही यह प्रतिध्वनित होते हैं। इन सीमाओं के होते हुए भी प्रबंध के विद्वान प्रबंध के सामान्य सि(ांतों की पहचान करने में सपफल रहे हैं। एपफ. डब्ल्यू. टेलर के वैज्ञानिक प्रबंध के सि(ांत एवं वुफछ रोचक भ्िान्न - संकाययी स्वरूप मानव शास्त्राμमानव शास्त्रा भ्िान्न - भ्िान्न समाजों का अध्ययन है जो हमें लोगों एवं उनकी ियाओं के अध्ययनमें सहायता करता है। उदाहरण के लिए मानवशास्ित्रायों ने विभ्िान्न संस्कृतियों एवं पयार्वरण पर कायर्, प्रबंधकोंको विभ्िान्न देशों के नागरिकों के बीच एवं विभ्िान्न संगठनों के अंदर आधारभूत मूल्य प्रवृिा एवं व्यवहार में अंतर को और अिाक समझने में सहायता किया है। अथर्शास्त्राμअथर्शास्त्रा का संबंध सीमित साधनों के आवंटन एवं वितरण से है। इससे हम अथर्व्यवस्था में हो रहे परिवतर्नों एवं भूमंडल के संदभर् में प्रतियोगिता एवं स्वतंत्रा बाशार की भूमिका को समझ सकते हैं। वैश्िवक बाशार में कायर्रत किसी भी प्रबंधक के लिए स्वतंत्रा व्यापार एवं सुरक्षात्मक नीतियों को समझना अत्यंत आवश्यक है और यह विषय अथर्शास्त्रा के माध्यम से ही समझे जा सकते हैं। दशर्नशास्त्राμदशर्नशास्त्रा की विषयवस्तु, वस्तुओं की प्रकृति को समझाती हैं विशेषतः मूल्य एवं नैतिकता को। नैतिकता न्यायोचित अिाकार को आधार प्रदान करती है, प्रतिपफल को निष्पादन से जोड़ती है एवं व्यवसाय के अस्ितत्व एवं निगमित स्वरूप का औचित्य निश्िचत करती है। इसने सेवा संगठनों को आधुनिक स्वरूप प्रदान किया है। राजनीतिक शास्त्राμराजनीतिक शास्त्रा निश्िचत राजनैतिक पयार्वरण में व्यक्ित एवं समूह का अध्ययन है।प्रबंध, देश की सरकार के स्वरूप से प्रभावित होता है, अथार्त् क्या यह अपने नागरिकों को संपिा रखने का अिाकार देती है? इसके नागरिक अनुबंध करने एवं इनके पालन कराने में कितने सक्षम हैं तथा श्िाकायतों कोदूर करने के लिए अपील तंत्रा क्या हैं। किसी देश की संपिा, अनुबंध एवं न्याय के संबंध में नीति संगठनों के प्रकार, स्वरूप एवं राजनीति को निधार्रित करती है। मनोविज्ञान शास्त्राμमनोविज्ञान शास्त्रा वह है जो मनुष्य एवं अन्य जीवों के व्यवहार का मापन करता है और समझाता है तथा कभी - कभी उसमें परिवतर्न भी ला देता है। आज के समय में प्रबंधकों का सामना विभ्िान्न प्रकारके उपभोक्ताओं एवं अलग - अलग प्रवृिा के कमर्चारियों से पड़ता है। मनौवैज्ञानिक लिंग - भेद एवं संस्कृति में अनेकता को समझने का प्रयत्न करते हैं जिससे प्रबंधकों को अपने बदलते ग्राहक एवं कमर्चारियों की आवश्यकताओं का और अच्छा ज्ञान हो जाता है। मनौविज्ञान विषय प्रबंधकों के लिए उपयोगी हैं, क्योंकि इसकी सहायता से यह प्रोत्साहन, नेतृत्व, विश्वास कमर्चारियों का चयन, निष्पादन मूल्यांकन एवं प्रश्िाक्षण तकनीकों को भली - भाँति समझ सकते हैं। समाज शास्त्राμसमाज शास्त्रा लोगों का अन्य व्यक्ितयों से संबंधों का अध्ययन है। वह कौन - सी सामाजिक समस्याएँ हैं जो प्रबंधकों के लिए प्रासंगिक हैं? इनमें से वुफछ इस प्रकार हैं। वुफछ सामाजिक परिवतर्न जैसेμवैश्वीकरण, बढ़ती हुइर् सांस्कृतिक विविधता, बदलती लिंग भूमिका एवं गृहस्थ जीवन के विभ्िान्न स्वरूप, आदि।किस प्रकार से संगठन की कायर् प्रणाली को प्रभावित कर रहे हैं, विद्यालयी प(ति एवं शैक्षण्िाक प्रवृिा का कलके कमर्चारियों के कौशल एवं योग्यताओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा, आदि जैसे प्रश्नों का उत्तर प्रबंधकों द्वारा व्यवसाय के प्रचालन को प्रभावित करते हैं। ड्डोतμपंफडामेंटल्स आॅपफ मैनेजमेंट स्टीपफन पी. राॅबिन्स डेविड ए. डीसेनजो हैनरी पेफयाॅल के कायार्त्मक प्रबंध के सि(ांत इसके उदाहरण हैं। इन्हें हम अगले अध्याय में पढ़ेंगे। ;गद्ध प्रबंध के सि(ांत, विज्ञान के सि(ातों के समान विशु( नहीं होते हैं और न ही उनका उपयोग सावर्भौमिक होता है। इनमें परिस्िथतियों के अनुसार संशोधन किया जाता है। लेकिन यह प्रबंधकों को मानक तकनीक प्रदान करते हैं जिन्हें भ्िान्न - भ्िान्न परिस्िथतियों में प्रयोग में लाया जा सकता है। इन सि(ांतों का प्रबंधकों को प्रश्िाक्षण एवं उनके विकास के लिए भी उपयोग किया जाता है। अब तक की चचार् से आप समझ चुके होंगे कि प्रबंध विज्ञान एवं कला दोनों की विशेषताएँ लिए हुए है। प्रबंध का उपयोग कला है। लेकिन प्रबंधक और अिाक श्रेष्ठ कायर् कर सकते हैं यदि वह प्रबंध के सि(ांतों का उपयोग करें। कला एवं विज्ञान के रूप में प्रबंध एक दूसरे से भ्िान्न नहीं हैं बल्िक पूरक हैं। प्रबंध एक पेशे के रूप में अब तक आप समझ चुके हैं कि सभी प्रकार की संगठन प्रियाओं का प्रबंधन आवश्यक है। आपने यह भी अवलोकन किया होगा कि संगठनों को उनका प्रबंध करने के लिए वुफछ विश्िाष्ट योग्यताओं एवं अनुभव की आवश्यकता होती है। आपने यह भी पाया होगा कि एक ओर तो व्यवसाय निगमित स्वरूप में वृि हुइर् है तो दूसरी ओर व्यवसाय के प्रबंध पर अिाक जोर दिया जा रहा है। क्या इसका अथर् यह हुआ कि प्रबंध एक पेशा है? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए आइए पेशे की प्रमुख विशेषताओं का अध्ययन करें एवं देखें कि क्या प्रबंध इनको पूरा करता है। पेशे की निम्न विशेषताएँ हैं ;कद्ध भली - भाँति परिभाष्िात ज्ञान का समूहμसभी पेशे भली - भाँति परिभाष्िात ज्ञान के समूह पर आधारित होते हैं जिसे श्िाक्षा से अजिर्त किया जा सकता है। ;खद्ध अवरोिात प्रवेशμपेशे में प्रवेश, परीक्षा अथवा शैक्षण्िाक योग्यता के द्वारा सीमित होती है। उदाहरण के लिए भारत में यदि किसी को चाटर्डर् एकाउंटेंट बनना है तो उसे भारतीय चाटर्डर् एकाउंटेंट संस्थान द्वारा आयोजित की जाने वाली एक विशेष परीक्षा को पास करना होगा। ;गद्ध पेशागत परिषद्μसभी पेशे किसी न किसी परिषद् सभा से जुड़े होते हैं जो इनमें प्रवेश का नियमन करते हैं कायर् करने के लिए प्रमाण पत्रा जारी करते हैं एवं आधार संहिता तैयार करते हंै तथा उसको लागू करते हंै। भारत में वकालत करने के लिए वकीलों को बार काउंसिल का सदस्य बनना होता है जो उनके कायो± का नियमन एवं नियंत्राण करता है। ;घद्ध नैतिक आचार संहिताμसभी पेशे आचार संहिता से बंधे हैं जो उनके सदस्यों के व्यवहार को दिशा देते हैं। उदाहरण के लिए जब डाॅक्टर अपने पेशे में प्रवेश करते हैं तो वह अपने कायर् नैतिकता की शपथ लेते हैं ;घद्ध सेवा का उद्देश्यμपेशे का मूल उद्देश्य निष्ठा एवं प्रतिब(ता है तथा अपने ग्राहकों के हितों की साधना है। एक वकील यह सुनिश्िचत करता है कि उसके मुवक्िकल को न्याय मिले। प्रबंध, पेशे के सि(ांतों को पूरी तरह से पूरा नहीं करता है। वैसे इसमें वुफछ विशेषताएँ होती हैं जो निम्न हैंμ ;कद्ध पूरे विश्व में प्रबंध विशेष रूप से एक संकाय के रूप में विकसित हुआ है। यह ज्ञान के व्यवस्िथत समूह पर आधारित है जिसके भली - भाँति परिभाष्िात सि(ांत हैं जो व्यवसाय की विभ्िान्न स्िथतियों पर आधारित हैं। इसका ज्ञान विभ्िान्न महाविद्यालय एवं पेशेवर संस्थानों में पुस्तकों एवं पत्रिाकाओं के माध्यम से अजिर्त किया जा सकता है। प्रबंध को विषय के रूप में विभ्िान्न संस्थानों में पढ़ाया जाता है। इनमें से वुफछ संस्थानों की स्थापना केवल प्रबंध की श्िाक्षा प्रदान करने के लिए की गइर् है जैसे भारत में भारतीय प्रबंध संस्थान ;आइर्आइर्. एम. एम.द्ध। इन संस्थानों में प्रवेश साधारणायतः प्रवेश परीक्षा के माध्यम से होता है। ;खद्ध किसी भी व्यावसायिक इकाइर् में किसी भी व्यक्ित को प्रबंधक मनोनीत अथवा नियुक्त किया जा सकता है। व्यक्ित की कोइर् भी शैक्षण्िाक योग्यता हो उसे प्रबंधक कहा जा सकता है। चिकित्सा अथवा कानून के पेशे में डाॅक्टर अथवा वकील के पास वैध डिग्री का होना आवश्यक है लेकिन विश्व में भी प्रबंधक के लिए कोइर् डिग्री विशेष, कानूनी रूप से अनिवायर् नहीं है। लेकिन यदि इस पेशे का ज्ञान अथवा प्रश्िाक्षण है तो यह उचित योग्यता मानी जाती है। जिन लोगों के पास प्रतिष्िठत संस्थानों की डिग्री अथवा डिप्लोमा हैं उनकी माँग बहुत अिाक है इस प्रकार से दूसरी आवश्यकता की पूरी तरह से पूतिर् नहीं होती है। ;गद्ध भारत में प्रबंध में लगे प्रबंधकों के कइर् संगठन हैं जैसे ए. आइर्. एम. ए. ;आॅल इंडिया मैनेजमेंट एसोश्िाएसनद्ध। जिसने अपने सदस्यों के कायो± के नियमन के लिए आचार संहिता बनाइर् है। लेकिनप्रबंधकों के ऊपर इस प्रकार के संगठनों का सदस्य बनने के लिए कोइर् दवाब नहीं है और न ही इनकी कोइर् वैधानिक मान्यता है। ;घद्ध प्रबंध का मूल उद्देश्य संगठन को अपने उद्देश्यों की प्राप्ित में सहायता करना है। यह उद्देश्य अिाकतम लाभ कमाना हो सकता है या पिफर अस्पताल में सेवा। वैसे प्रबंध का अिाकतम लाभ कमाने का उद्देश्य सही नहीं है तथा यह तेजी से बदल रहा है। इसलिए यदि किसी संगठन के पास एक अच्छे प्रबंधकों की टीम है जो क्षमतावान एवं प्रभावी है, तो वह स्वयं वही उचित मूल्य परगुणवत्तापूणर् उत्पाद उपलब्ध करा कर समाज की सेवा कर रहा है। प्रबंध के स्तर श्िाव नाडार एवं सुहासिनी दोनों ही एक उद्यम के प्रबंधक हैं। श्िाव नाडार, एच. सी. एल. का सीइर्. ओ. ;मुख्य कायर्कारी अिाकारीद्ध है एवं सुहासिनी लैबमाटर् में शाखा प्रबंधक। ये दोनों ही अपनी - अपनी व्यावसायिक इकाइयों में विभ्िान्न स्तरों पर सेवारत हैं। प्रबंध एक सावर्भौमिक शब्द है जिसे, किसी उद्यम में संबंधों के समूह में एक दूसरे से जुड़े लोगों द्वारा वुफछ कायो± को करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। प्रत्येक - व्यक्ित का संबंधों की इस शृंखला में किसी न किसीकायर् विशेष को पूरा करने का उत्तरदायित्व होताहै। इस उत्तरदायित्व को पूरा करने के लिए उसे वुफछ अिाकार दिए जाते हैं अथार्त् निणर्य लेनेका अिाकार। अिाकार एवं उत्तरदायित्व का यह संबंध व्यक्ितयों को अिाकारी एवं अधीनस्थ के रूप में एक दूसरे को बाँधते हैं। इससे संगठन में विभ्िान्न स्तरों का निमार्ण होता है। किसी संगठन के अिाकार शृंखला में तीन स्तर होते हैंμ ;कद्ध उच्च स्तरीय प्रबंधμयह संगठन के वरिष्ठतम कायर्कारी अिाकारी होते हैं जिन्हें कइर् नामों से पुकारा जाता है। यह सामान्यतः चेयरमैन, मुख्य कायर्कारी अिाकारी, मुख्य प्रचालन अिाकारी, प्रधान, उपप्रधान आदि के नाम से जाने जाते हैं। उच्च प्रबंध, विभ्िान्न कायार्त्मक स्तर के प्रबंधकों की टीम होती है। उनका मूल कायर् संगठन के वुफल उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए विभ्िान्न तत्वों में एकता एवं विभ्िान्न विभागों के कायो± में सामंजस्य स्थापित करना है। उच्च स्तर के ये प्रबंधक संगठन के कल्याणएवं निरंतरता के लिए उत्तरदायी होते हैं। पफमर् के जीवन के लिए ये व्यवसाय के पयार्वरण एवं उसके प्रभाव का विश्लेषण करते हैं। ये अपनी उपलब्िध के नए संगठन के लक्ष्य एवं व्यूह - रचना को तैयार करते हैं। व्यवसाय के सभी कायो± एवं उनके समाज पर प्रभाव केलिए ये ही उत्तरदायी होते हैं। उच्च प्रबंध का कायर् जटिल एवं तनावपूणर् होता है। इसमें लंबा समय लगता है तो संगठन के प्रति पूणर्प्रतिब(ता की आवश्यकता होती है। ;खद्ध मध्य स्तरीय प्रबंधμये उच्च प्रबंधकों एवं नीचे स्तर के बीच की कड़ी होते हैं, ये उच्च प्रबंधकों के अधीनस्थ एवं प्रथम रेखीय प्रबंधकों के प्रधान होते हैं। इन्हें सामान्यतः विभाग प्रमुख, परिचालन प्रबंधक अथवा संयंत्रा अधीक्षक कहते हैं। मध्य स्तरीय प्रबंधक, उच्च प्रबंध द्वारा विकसित नियंत्राण योजनाएँ एवं व्यूह - रचना के ियान्वयन के लिएउत्तरदायी होते हैं। इसके साथ - साथ ये प्रथम रेखीय प्रबंधकों के सभी कायो±के लिए उत्तरदायी होते हैं। इनका मुख्य कायर् उच्च स्तरीय प्रबंधकों द्वारा तैयार चित्रा 1.3μआप सिपर्फ किताबें पढ़कर प्रबंधन नहीं सीख सकते। योजनाओं को पूरा करना होता है। इसके लिए ;कद्ध उच्च प्रबंधकों द्वारा बनाइर् गइर् योजना की व्याख्या करते हैंऋ ;खद्ध अपने विभाग के लिए पयार्प्त संख्या में कमर्चारियों को सुनिश्िचत करते हैंऋ ;गद्ध उन्हें आवश्यक कायर् एवं दायित्व सौंपते हैंऋ ;घद्ध इच्िछत उद्देश्यों की प्राप्ित हेतु अन्य विभागों से सहयोग करते हैं। इसके साथ - साथ वे प्रथम पंक्ित के प्रबंधकों के कायो± के लिए उत्तरदायी होते हैं। ;गद्ध पयर्वेक्षीय अथवा प्रचालन प्रबंधकμ संगठन की अिाकार पंक्ित में पफोरमैन एवं पयर्वेक्षक निम्न स्तर पर आते हैं। पयर्वेक्षक कायर्बल के कायो± का प्रत्यक्ष रूप से अवलोकन करते हैं। इनके अिाकार एवं कत्तर्व्य उच्च प्रबंधकों चित्रा 1.4μप्रबंधकीय स्तर। करते हैं एवं मध्य स्तरीय प्रबंधकों के दिशानिदेर्शों को कमर्चारियों तक पहुँचाते हैं। इन्हीं के प्रयत्नों से उत्पाद कीगुणवत्ता को बनाए रखा जाता है, माल की हानि को न्यूनतम रखा जाता है एवं सुरक्षा के स्तर बनाए रखा जाता है।कारीगरी की गुणवत्ता, एवं उत्पादन की मात्रा कमर्चारियों के परिश्रम, अनुशासन एवं स्वामीभक्ित पर निभर्र करती है। प्रबंध के कायर् प्रबंध को संगठन से सदस्यों से कायो± के नियोजन, संगठन, निदेशन एवं नियंत्राण एवं निधार्रित उद्देश्यों की प्राप्ित के लिए संगठन के संसाधनों के प्रयोग की प्रिया माना गया है। नियोजनμयह पहले से ही यह निधार्रित करने का कायर् है कि क्या करना है, किस प्रकार तथा किसको करना है। इसका अथर् है उद्देश्यों को पहले से ही निश्िचत करना एवं दक्षता से एवं प्रभावी ढंग से प्राप्त करने के लिए मागर् निधार्रित करना। सुहासिनी के संगठन का उद्देश्य है परंपरागत भारतीय हथकरघा एवं हस्तश्िाल्प की वस्तुओं को खरीदकर उन्हें बेचना। वह बुने हुए वस्त्रा, सजावट का सामान, परंपरागत भारतीय कपड़े से तैयार वस्त्रा एवं घरेलू सामान को बेचते हैं। सुहासिनी इनकी मात्रा, इनके विभ्िान्न प्रकार, रंग एवं बनावट के संबंध में निणर्य लेती है पिफर विभ्िान्न आपूतिर्कतार्ओं से उनके क्रय अथवा उनके घर में तैयार कराने पर संसाधनों का आवंटन करती है। नियोजन समस्याओें के पैदा होने सेे कोइर् रोक नहीं सकता लेकिन इनका पूवार्नुमान लगाया जा सकता है तथा यह जब भी पैदा होते हैं तो इनको हल करने के लिए आकस्िमक योजनाएँ बना सकती हंै। संगठनμयह निधार्रित योजना के ियान्वयन के लिए कायर् सौंपने, कायो± को समूहों में बांटने, अिाकार निश्िचत करने एवं संसाधनों के आवंटन के कायर् का प्रबंधन करता है। एक बार संगठन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए विश्िाष्ट योजना तैयार कर ली जाती है तो पिफर संगठन योजना के ियान्वयन के लिए आवश्यक ियाओं एवं संसाधनों की जांच करेगा। यह आवश्यक कायो± एवं संसाधनों का निधार्रण करेगा। यह निणर्य लेता है कि किस कायर् को कौन करेगा, इन्हें कहाँ किया जाएगा तथा कब किया जाएगा। संगठन में आवश्यक कायो± को प्रबंध के योग्य विभाग एवं कायर् इकाइर्यों में विभाजित किया जाता है एवं संगठन की अिाकार शृंखला में अिाकार एवं विवरण देने के संबंधों का निधार्रण किया जाता है। संगठन के उचित तकनीक कायर् के पूरा करने एवं प्रचालन की कायर् क्षमता एवं परिणामों की प्रभाव पूणर्ता के संवधर्न में सहायता करते हैं। विभ्िान्न प्रकार के व्यवसायों को कायर्की प्रकृति के अनुसार भ्िान्न - भ्िान्न ढाँचों की आवश्यकता होती है। इसके संबंध में आप आगे के अध्यायों में और अिाक पढ़ेंगे। कमर्चारी नियुक्ितकरणμसरल शब्दों में इसका अथर् है सही कायर् के लिए उचित व्यक्ित कोढूँढ़ना। प्रबंध का एक महत्त्वपूणर् पहलू संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ित के लिए सही योग्यता वाले सही व्यक्ितयों को, सही स्थान एवं समय पर उपलब्ध कराने को सुनिश्िचत करना है। इसे मानव संसाधन कायर् भी कहते हैं तथा इसमें कमर्चारियों की भतीर्, चयन, कायर् पर नियुक्ित एवं प्रश्िाक्षण सम्िमलित हैं। इनपफोसिस टेक्नोलाॅजी,जो साॅफ्रटवेयर विकसित करती है, को प्रणालीविश्लेषणकत्तार् एवं कायर्क्रम तैयार करने वाले व्यक्ितयों की आवश्यकता होती है जबकि लैबमाटर्को डिजाइनकत्तार् एवं श्िाल्पकारों के टीम की आवश्यकता होती है। निदेशनμनिदेशन का कायर् कमर्चारियों को नेतृत्व प्रदान करना, प्रभावित करना एवं अभ्िाप्रेरित करना है जिससे कि वह सुपुदर् कायर् को पूरा कर सवेंफ। इसके लिए एक ऐसा वातावरण तैयार करने की आवश्यकता है जो कमर्चारियों को सवर्श्रेष्ठ ढंग से कायर् करने के लिए प्रेरित करे। अभ्िाप्रेरणा एवं नेतृत्व - निदर्ेशन के दो मूल तत्व हैं। कमर्चारियों को अभ्िाप्रेरित करने का अथर् केवल एक ऐसा वातावरण तैयार करना है जो उन्हें कायर् के लिए प्रेरित करे। नेतृत्व का अथर् है दूसरों को इस प्रकार से प्रभावित करना, कि वह अपने नेता के इच्िछत कायर् संपन्न करें। एक अच्छा प्रबंधक प्रशंसा एवं आलोचना की सहायता से इस प्रकार से निदर्ेशन करता है कि कमर्चारी अपना श्रेष्ठतम योगदान दे सवेंफ। सुहासिनी के डिजाइनकतार्ओं की टीम ने पलंग की चादरों के लिए सिल्क पर भड़कीले रंगों के छापे विकसित किए। यद्यपि यह बहुत लुभावने लगते थे लेकिन सिल्क के प्रयोग के कारण आम आदमी के लिए यह बहुत अिाक महँगे थे। उनके कायर् की प्रशंसा करते हुए सुहासिनी ने उन्हें सुझाव दिया कि इन सिल्क की चादरों को वह दीपावली, िसमस जैसे विशेष अवसरों के लिए सहेज कर रखें तथा उन्हें नियमित रूप से सूती वस्त्रों पर छापें। नियंत्राणμनियंत्राण को प्रबंध के कायर् के उस रूप में परिभाष्िात किया है जिसमें वह संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए संगठन कायर् के निष्पादन को निदेर्श्िात करता है। नियंत्राण कायर् में निष्पादन के स्तर निधार्रित किए जाते हैं, वतर्मान निष्पादन को मापा जाता है। इसका पूवर्निधार्रित स्तरों से मिलान किया जाता है और विचलन की स्िथति में सुधारात्मक कदम उठाए जाते हैं। इसके लिए प्रबंधकों को यह निधार्रित करना होगा कि सपफलता के लिए क्या कायर् एवंउत्पादन महत्त्वपूणर् हैं, उसका वैफसे और कहाँ मापन किया जा सकता है तथा सुधारात्मक कदमउठाने के लिए कौन अिाकृत है। सुहासिनी ने जब पाया कि उसके डिजाइनकतार्ओं की टीम ने पलंग की वह चादर बनाइर् जो उनकी विक्रय के लिए निश्िचत मूल्य से अिाक महँगी थी तब उसने लागत पर नियंत्राण के लिए चादर हेतु कपड़ा ही बदल दिया। प्रबंधक के विभ्िान्न कायो± पर साधारणतया उपरोक्त क्रम में ही चचार् की जाती है जिसके अनुसार एक प्रबंधक पहले योजना तैयार करता है पिफर संगठन बनाता है तत्पश्चात् निदर्ेशन करता है और अंत में नियंत्राण करता है। वास्तव में प्रबंधक शायद ही इन कायो± को एक - एक करके करता है। प्रबंधक के कायर् एक दूसरे से जुड़े हैं तथा यह निश्िचत करना कठिन हो जाता है कौन - सा कायर् कहाँ समाप्त हुआ तथा कौन - सा कायर् कहाँ से प्रारंभ हुआ। समन्वय - प्रबंध का सार है अब तक आप समझ चुके होंगे कि किसी संगठन के प्रबंधन की प्रिया में एक प्रबंधक को पाँच एक दूसरे से संबंिात कायर् करने होते हैं। संगठन एक ऐसी प(ति है जो एक दूसरे से जुड़े एवं एक दूसरे पर आधारित उपप(तियों से बनी है। प्रबंधक को इन भ्िान्न समूहों को समान उद्देश्यों की प्राप्ित के लिए एक दूसरे से जोड़ना होता है। विभ्िान्न विभागों की गतिवििायों की एकात्मकता की प्रिया को समन्वय कहते हैं। समन्वय वह शक्ित है जो, प्रबंध के अन्य सभी कायो± को एक दूसरे से बांधती है। यह ऐसा धागा है जो संगठन के कायर् में निरंतरता बनाएरखने के लिए क्रय, उत्पादन, विक्रय एवं वित्त जैसे सभी कायो± को पिरोए रखता है। समन्वय कोकभी - कभी प्रबंध का एक अलग से कायर् माना व्यवसाय अध्ययन जाता है। लेकिन यह प्रबंध का सार है क्योंकि यहसामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किए गएव्यक्ितगत प्रयत्नों में एकता लाता है। प्रत्येकप्रबंधकीय कायर् एक ऐसी गतिवििा है जो स्वयंअकेली समन्वय में सहयोग करती है। समन्वयकिसी भी संगठन के सभी कायो± में लक्ष्िात एवंअन्तनिर्हित हैं। संगठन की ियाओं के समन्वय की प्रिया,नियोजन से ही प्रारंभ हो जाती है। उच्च प्रबंध पूरेसंगठन के लिए योजना बनाता है। इन योजनाओंके अनुसार संगठन ढाँचों को विकसित कियाजाता है एवं कमर्चारियों की नियुक्ित की जाती है।योजनाओं का ियान्वयन योजना के अनुसार हीयह सुनिश्िचत करने के लिए निदर्ेशन कीआवश्यकता होती है। वास्तविक ियाओं एवंउनकी उपलब्िधयों में यदि कोइर् मतभेद है तोइसका निराकरण नियंत्राण के समय किया जाताहै। समन्वय की िया के माध्यम से प्रबंध कासमान उद्देश्यों की प्राप्ित के लिए उठाए गए कदमों में एकता को सुनिश्िचत करने के लिएव्यक्ितगत एवं सामूहिक प्रयत्नों की सही व्यवस्थाकरता है, समन्वय संगठन की विभ्िान्न इकाइयोंके भ्िान्न - भ्िान्न कायो± एवं प्रयत्नों में एकता स्थापित करता है। यह प्रयत्नों की आवश्यकता राश्िा, मात्रा,समय एवं क्रमब(ता उपलब्ध कराता है जो नियोजितउद्देश्यों को न्यूनतम विरोधाभास, प्राप्त करने को सुनिश्िचत करता है। समन्वय की प्रकृति उपरोक्त परिभाषाओं से समन्वय की निम्न विशेषताएँ स्पष्ट होती हैंμ ;कद्ध समन्वय सामूहिक कायो± में एकात्मकता लाता हैμसमन्वय ऐसे हितों को जो समन्वय की परिभाषाएँ फ्समन्वय कायर्दल में संतुलन बनाने तथा उसे एक जुट बनाए रखने की प्रिया है, जिसमें भ्िान्न - भ्िान्न व्यक्ितयों के बीच कायर् का सही - सही विभाजन किया जाता है तथा यह देखा जाता है कि ये व्यक्ित मिलकर तथा एकता के साथ अपना - अपना कायर् कर सवेंफ।य् μइर्. एपफ. एल. ब्रैच फ्समन्वय एक प्रिया है जिसके द्वारा एक अिाकारी अपने अधीनस्थों के सामूहिक प्रयासों को एक व्यवस्िथत ताने - बाने में बाँधता है तथा समान उद्देश्य की प्राप्ित के लिए कायर् में एकता लाता हैय् μमैक पफरलैंड फ्समन्वय अधीनस्थ कमर्चारियों के कायो± का इस प्रकार परस्पर मिलान करता है कि प्रत्येक कमर्चारी के कायर् की गति, प्रगति और श्रेणी दूसरे कमर्चारी के कायर् की गति, प्रगति तथा श्रेणी से मेल खाये तथा आपस में मिलकर संस्था के समान उद्देश्यों की प्राप्ित में सहायक है।य् μथ्िायो हेमैन एक दूसरे से संबंिात नहीं हैं या एक दूसरे से भ्िान्न हैं उद्देश्य पूणर् कायर् गतिवििा में एकता लाता है। यह समूह के कायो± को एक केन्द्र बिंदु प्रदान करता है जो यह सुनिश्िचत करता है कि निष्पादन योजना एवं निधार्रित कायर्क्रम के अनुसार हो। ;खद्ध समन्वय कायर्वाही में एकता लाता हैμसमन्वय का उद्देश्य समान उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कायर्वाही में एकता लाना है। यह विभ्िान्न विभागों को जोड़ने की शक्ित का कायर् करता है तथा यह सुनिश्िचत करता है कि सभी ियाएँ संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए की जाएँ। आपने पाया कि लैबमाटर् के उत्पादन एवं विक्रय विभागों को अपने कायो± में समन्वय करना होता है जिससे कि बाशार की माँग के अनुसार उत्पादन किया जा सके। ;गद्ध समन्वय निरंतर चलने वाली प्रिया हैμसमन्वय कोइर् एक बार का कायर् नहीं है बल्िक एक निरंतर चलने वाली प्रिया है। यह नियोजन से प्रारंभ होता है एवं नियंत्राण तक चलती है। सुहासिनी ठंड के समय के लिए वस्त्रों के संबंध में जून के महीने में ही योजना बना लेती है। तत्पश्चात् वह पयार्प्त कायर्बल की व्यवस्था करती है। उत्पादन योजना के अनुसार ही इसके लिए लगातार निगरानी रखती है उसे अपने विपणन विभाग को समय रहते बताना होगा कि वह विक्रय प्रवतर्न एवं विज्ञापन के प्रचार के लिए तैयार करें। ;घद्ध समन्वय सवर्व्यापी कायर् हैμविभ्िान्न विभागों की ियाएँ प्रकृति से एक दूसरे पर निभर्र करती हैं इसीलिए समन्वय की आवश्यकता प्रबंध के सभी स्तरों पर होती है। यह विभ्िान्न विभागों एवं विभ्िान्न स्तरों के कायो± में एकता स्थापित करता है। संगठन के उद्देश्य बना विरोध आ सके, प्राप्त करने के लिए सुहासिनी को क्रय, उत्पादन एवं विक्रय विभागों के कायो± में समन्वय करना होता है। क्रय विभाग का कायर् कपड़ा खरीदना है। यह उत्पादन विभाग की ियाओं के लिए आधार बन जाता है और अन्त में विक्रय संभव हो पाता है। यदि कपड़ा घटियागुणवत्ता वाला है या पिफर उत्पादन विभाग द्वारा निधार्रित विश्िाष्टताएँ लिए हुए नहीं है तो इससे आगे की बिक्री कम हो जाएगी। यदि समन्वय नहीं है तो ियाओं में एकता एवं एकीकरण के स्थान परपुनरावृिा एवं अव्यवस्था होगी। ;घद्ध समन्वय सभी प्रबंधकों काउत्तरदायित्व हैμकिसी भी संगठन में समन्वय प्रत्येक प्रबंधक का कायर् है उच्च स्तर के प्रबंधक यह सुनिश्िचत करने के लिए कि संगठन की नीतियों का ियान्वयन हो, अपने अधीनस्थों के साथ समन्वय करते हैं। मध्यस्तर के प्रबंधक, उच्चस्तर के प्रबंधकों एवं प्रथम पंक्ित के प्रबंधकों, दोनों के साथ समन्वय करते हैं। यह सुनिश्िचत करने के लिए कि कायर् योजनाओं के अनुसार किया जाए, प्रचालन स्तर के प्रबंधक अपने कमर्चारियों के कायो± में समन्वय करते हैं। ;चद्ध समन्वय सोचा समझा कायर् हैμएक प्रबंधक को विभ्िान्न लोगों के कायो± का ध्यानपूवर्क एवं सोच समझकर समन्वय करना होता है। किसी विभाग में सदस्य स्वेच्छा से एक दूसरे से सहयोग करते हुए कायर् करते हैं, समन्वय इस सहयोग की भावना को दिशानिदेर्श देता है। समन्वय के न होने पर सहयोग भी निरथर्क सि( होगा और बिना सहयोग के समन्वय कमर्चारियों में असंतोष को ही जन्म देगा। इसलिए हम कह सकते हैं कि समन्वय, प्रबंध का पृथक से एक कायर् नहीं है बल्िक यह उसका सार है। यदि कोइर् संगठन अपने उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से एवं वुफशलता से प्राप्त करना चाहता है तो उसे समन्वय की आवश्यकता होगी। माला में धागे के समान ही समन्वय प्रबंध के सभी कायो± का अभ्िान्न अंग है। समन्वय का महत्व विभ्िान्न प्रबंधकीय कायो± को एकीकृत करना व्यक्ितयों एवं विभागों में पयार्प्त मात्रा में समन्वय को सुनिश्िचत करता है। जैसे समन्वय की समस्या के पैदा होने के कारण बड़े पैमाने के संगठन में अंतनिर्हित निरंतर परिवतर्न कमजोर अथवा निष्िक्रय नेतृत्व एवं जटिलताएं हैं। बड़े संगठनों में इस प्रकार की जटिलताओं के समन्वय के लिए विशेष प्रयत्नों की आवश्यकता होती है। दृृष्िटकोण तथा लक्ष्य संगठन के समान उद्देश्य की प्राप्ित के तकनीक हैं। ;कद्ध संगठन का आकारμबड़े संगठनों में लगे बड़ी संख्या में लोग समन्वय की समस्या को जटिल बना देते हैं। प्रत्येक व्यक्ित अपने आप में विश्िाष्ट है। तथा अपनी एवं संगठन की आवश्यकताओं को महसूस करता है। प्रत्येक की अपनी कायर् करने की आदतें हैं, अपनी पृष्ठभूमि हैं, परिस्िथतियों से निपटने के प्रस्ताव/तरीके हैं तथा दूसरों से संबंध् हैं। वैसे एक अकेला व्यक्ित सदा बुिमानी से कायर् नहीं करता है। उसके व्यवहार को न तो सदा ठीक से समझा जाता है और न ही पूरी तरह से उसका पूवार्नुमान लगाया जा सकता है। इसलिए संगठन की कायर् वुफशलता के लिए यह अनिवायर् है कि का मागर् अपनाते हैं। ऐसे मामलों में व्यक्ित एवं समूह के उद्देश्यों को समन्वयसंगठन में प्रभावी ढंग से कायर् करने केद्वारा एकीकृत कर दिया जाए। लिए समन्वय आवश्यक है। ;खद्ध कायार्त्मक विभेदीकरणμसंगठन के ;गद्ध विश्िाष्टीकरणμआधुनिक संगठनों मेंकायो± को बार - बार विभागों, प्रभागों, वगो± उच्च स्तर का विश्िाष्टीकरण है।आदि में बाँटा जाता है। समन्वय की विश्िाष्टीकरण का जन्म आधुनिक तकनीकोंसमस्या इसलिए पैदा होती है क्योंकि की जटिलताओं तथा कायो± एवं इन्हेंअिाकार क्षेत्रों का दृढ़ीकरण हो जाता है करने वालों की विविधता के कारण होताऔर उनके बीच के अवरोधक और भी है। विशेषज्ञ सोचते हैं कि वे एक दूसरेअिाक मजबूत हो जाते हैं। कइर् बार यह को पेशे के आधार पर जाँचने के योग्यइसलिए होता है क्योंकि कायो± का वगीर्करण हैं लेकिन दूसरे लोगों के पास इस प्रकारयुक्ित संगत नहीं होता या पिफर प्रबंधक के निणर्य का कोइर् पयार्प्त आधार नहींतवर्फ संगत मागर् न अपना कर अनुभव हो सकता। यदि विशेषज्ञों को बिना समन्वय डब्बा वाले - समन्वय के माध्यम से श्रेष्ठता मुंबइर् के डब्बा वाले ‘सिक्स सिगमा’ व्यावसायिक उद्यम की कहानी है। इस व्यवसाय की सपफलता जटिल लेकिन भली - भाँति समन्िवत कायर् प(ति पर निभर्र करती है जिसे प्रतिदिन मुंबइर् की गलियों में अपनाया जाता है। उनके व्यवसाय के परिचालन की कायर्क्षमता का राज क्या है? डब्बा वालों की कहानी मुंबइर् के रसोइर् घरों से प्रारंभ होती है। जैसे ही वह अपने घरों से चलते हैं तो उनको ताजा घर का खाना बनाकर देने की प्रिया शुरू हो जाती है जिसमें कापफी समय लगता है। इसके पश्चात् जो भी होता है वह डब्बावालों की प(ति में समन्वय को दशार्ता है। पहला डब्बा वाला घर से टिपिफन को लेता है और पिफर उसे सबसे नशदीक के रेलवे स्टेशन तक ले जाता है। दूसरा डब्बा वाला उन्हें गन्तव्य स्थलों के अनुसार अलग - अलग कर माल वाहक डब्बे में रख देता है। तीसरा डब्बा वाला गन्तव्य स्थल के सबसे समीप स्टेशन तक साथ - साथ जाता है। चैथा व्यक्ित रेलवे स्टेशन से डब्बोंको लेकर दफ्रतरों में दे देता है। दोपहर तक मुंबइर् की सड़कों पर हजारों डब्बे वाले साइर्कलों पर घर का बना गमर् - गमर् खाना ग्राहकों तक पहुँचा देते हैं। टिपिफन वितरण के पूरे कायर् के लिए कम - से - कम तकनीक की आवश्यकता होती है। डब्बा वाले कम पूँजी से कायर् करते हैं एवं अपने कायर् के लिए साइर्कल, ठेलियाँ एवं स्थानीय रेलगाडि़यों का प्रयोग करते हैं। कइर् समूह हैं जो स्वतंत्रा रूप से कायर् करते हैं तथा एक दूसरे से ताल - मेल कर अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। प्रत्येक क्षेत्रा कइर् छोटी - छोटी वितरण इकाइयों में बंटा होता है जिसका उत्तरदायित्व एक व्यक्ित विशेष पर होता है। यह व्यक्ित उस क्षेत्रा के पतों से भली - भाँति परिचित होता है। पिफर पूणर्ता कायर् को करते रहने पर आ जाती है, नए कमर्चारी महीनों तक अपने वरिष्ट कमर्चारियों की निगरानी में कायर् करते हैं। समय की पाबंदी एवं समय प्रबंधन डब्बा वालों की कायर् सूची में सवोर्च्च स्थान पर होता है। परिस्िथतियाँ वैफसी भी हों डब्बा वाले वुफछ मिनट की भी देरी नहीं करते हैं। के कायर् करने की अनुमति दे दी जाए इक्कीसवीं शताब्दी में प्रबंध तो परिणाम कापफी मंहगे होंगे। इसीलिए संगठन में लगे विभ्िान्न विशेषज्ञों के अभी आप इस अध्याय को पढ़ ही रहे होंगे कि कायो± में समन्वय हेतु एक रचना तंत्रा की संगठन एवं इनके प्रबंध में परिवतर्न आ रहा है। आवश्यकता है। जैसे - जैसे विभ्िान्न संस्कृतियों एवं देशों की सीमाएँ समन्वय प्रबंध का सार है। यह धुंधली पड़ रही हैं एवं संप्रेषण की नयी - नयी वुफछ ऐसा नहीं है तकि जिसके लिए तकनीकों के कारण विश्व को एक वैश्िवकएक प्रबंधक आदेश दे। बल्िक यह तो गाँव समझा जा सकता है अंतरार्ष्ट्रीय एवं अंतरवह चीज है जिसे एक प्रबंधक नियोजन, संस्कृति संबंध भी तेजी से बढ़ रहे हैं। आजसंगठन, नियुक्ितकरण, निदेर्शन नियंत्राण का संगठन एक वैश्िवक संगठन है जिसका कायो± को करते हुए प्राप्त करने का प्रयास करता है। अतः प्रत्येक कायर् प्रबंध भूमंडलीय परिदृश्य में किया जाता है। समन्वय का अभ्यास है। इससे क्या अभ्िाप्राय है? एक भूमंडलीय प्रबंधक के सामने चुनौती रजत लाल एक पफमर् का निदेशक है जो एक पयर्टन उद्योग के लिए विश्वस्तर पर साॅफ्रटवेयर समाधान विकसितकरता है। वह अमरीका की एक साॅफ्रटवेयर सेवा पफमर् का प्रतिनििात्व करता है जो, उत्तरी भारत के साॅफ्रटवेयरगुड़गाँव में अपने सुपुदर्गी साझीदार से कायर् योजना का बाह्य ड्डोतीकरण कराती है। यह पूरे विश्व की टेक्नोलाॅजी,परिवहन एवं आराम की सुविधा के क्षेत्रा की वंफपनियों के लिए साॅफ्रटवेयर विकसित करती है। रजत अपने वैश्िवक ग्राहक एवं घरेलू तकनीकी दल के बीच है। इसके कारण उसका कायर्, एक प्रबंधक जो कि पूरी तरह से घरेलू वातावरण में कायर् करता है, की तुलना में अिाक चुनौतीपूणर् होता है। उसके कायर् में चुनौतियाँ कौन - कौन सी हैं इसके संबंध में रजत का कहना है किμ देश में प्रबंधक के रूप मेंμएक भूमंडलीय प्रबंधक को स्थानीय कायार्लय अथवा व्यवसाय में साझीदार के रूप में अपने देश की वििायक एवं व्यावसायिक उपस्िथति की स्थापना करनी होती है। वह ग्राहक, वकील एवं अप्रवास अिाकारियों सहित वििायक इकाइर् के साथ संपकर् साधता है एवं उनसे सौदेबाजी करता है क्योंकि सेवाओं में यू. एस. ए./यूरोप में कायर् करने के लिए भारत से टेक्नीकल कमर्चारियों की नियुक्ित की जाती है। वह भतीर् की सेवाएँ प्रदान करने वाली स्थानीय कंपनियों से भी बातचीत करता है। वह एक और अहम भूमिकानिभाता है। वह बाह्य ड्डोतीकरण एवं वैश्िवक सुपुदर्गी के कारण विपरीत सांस्कृतिक एवं बहु सांस्कृतिक अवसरों के सकारात्मक प्रभाव पर शोर देकर अपने भावी ग्राहकों में सहजता की भावना पैदा करता है। इनके कारण उत्पन्न किसी भी शंका का समाधान भी करता है। एक कायार्त्मक प्रबंधक के रूप मेंμवैश्िवक प्रबंधक को यह सुनिश्िचत करना होता है कि वह सही तकनीकी कौशल की भतीर् कर सकता है, इस कौशल से एक दृढ़ संसाधन के आधार का निमार्ण कर सकताहै एवं बहुत समय - क्षेत्रा के रूप में भूमंडलीय कायर्वातावरण में इन दक्ष कमर्चारियों से काम लेकर साॅफ्रटवेयर की कायर् योजनाओं को पूरा कर सकता है, इसके लिए वह उन व्यावसायिक चक्र, जिसके अंतगर्त ग्राहक का व्यवसाय चलता है पर आधारित ग्राहक की प्राथमिकताओं को समझ सकता है, जिन प्रियाओं एवं प(तियों से ग्राहक परिचित है उनको समझ सकता है एवं उन्हें अपना सकता है। और अंत में इस कायर् में ग्राहक की अपेक्षाओं का प्रबंधन सम्िमलित है। इस प्रबंध में कायार्त्मक प्रबंधक को ग्राहक की प्राथमिकताओं के अनुरूप भारत एवं यू. एस. ए. /यूरोप में ियाओं में समन्वय करना होता है, यह बताना होता है कि क्या संभव है और क्या संभव नहीं है तथा इसी के अनुसार अपने कमर्चारियों की अपेक्षाओं एवं संतुष्िट के स्तरों का प्रबंध करना होता है। व्यवसाय के नेतृत्व के रूपों मेंμभूमंडलीय प्रबंधक को बदलती हुइर् व्यावसायिक परिस्िथतियों एवं ग्राहककी प्राथमिकताओं के प्रति सचेत रहना होता है। उसे बाह्य ड्डोतीकरण में प्रवृिायों की पहचान करनी होती है एवं उसमें मिलने वाले अवसरों संभावित जोख्िामों के पूवार्नुमान की क्षमता का होना आवश्यक है। उदाहरण केलिए एक बार बाह्य ड्डोतीकरण पर बदले कानूनों पर पकड़ मजबूत हो जाने पर एक व्यवसाय में प्रबंधक के लिए यह समझ लेना बहुत आवश्यक होगा कि क्या उसके वतर्मान ग्राहक उसके साथ व्यापार करते रहेंगे। वैश्िवक प्रबंधक को यह भी ध्यान रखना होगा कि ग्राहक भारत में प्रचालन वातावरण एवं उनके अपने देश में परिचालनवातावरण में जो खाइर् है उसे समझते हंै। उसे भारत में बाह्य ड्डोतीकरण की लागत कम एवं विस्तृत बौिक आधार के लाभों को प्रस्तुत करना होगा और साथ ही भारत में ढाँचागत जैसी कमियों के कारण उत्पन्न समस्याओं का समाधान भी ढूँढ़ना होगा। एक वैश्िवक प्रबंधक के लिए इन सबका क्या अथर् है? सारांश में कह सकते हैं कि एक वैश्िवक प्रबंधक वह है जिसके पास ‘हाडर्’ एवं ‘साॅफ्रट’ दोनों प्रकार का कौशल हंै। जो प्रबंधक विश्लेषण करना, व्यूहरचना करना, इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी का ज्ञान रखते हैं उनकी आज भी आवश्यकता है लेकिन विश्वव्यापी सपफलता के लिए व्यक्ितयों में टीम वैफसे कायर् करती है, संगठन वैफसे कायर् करते हैं एवं लोगों को किस प्रकार से अभ्िाप्रेरित कर सकता है, इस सबकी समझ का होना बहुत आवश्यक है। उदाहरण के लिए जो प्रबंधक विभ्िान्न संस्कृतियों में पैठ रखता है वह पश्िचमी यूरोप, गैर अंग्रेजी बोलने वाले देश में कायर् कर सकता है पिफर मलेश्िाया अथवा केन्या जैसे विकासशील देशों में जा सकता है और पिफर उसे न्यूयावर्फ, यू. एस. ए. के कायार्लय में हस्तांतरित किया जा सकता है। वह इन तीनों स्थानों पर तुरंत प्रभावी ढंग से कायर् कर सकेगा। अब यह समझ में आ गया होगा कि वैश्िवक प्रबंधक की भूमिका का विकास उसी प्रकार से हुआ है जिस प्रकार से वैश्िवक उद्योग एवं अथर्व्यवस्था का विकास हुआ है। यह एक परिभाष्िात व्यवसाय के संदभर् में एकआयामी भूमिका से बहुआयामी भूमिका में परिवतिर्त हो गया है जिसके लिए तकनीकी कौशल, साॅफ्रट प्रबंध एवंकौशल एवं विभ्िान्न संस्कृतियों को ग्रहण करना एवं सीखने के सम्िमश्रण की आवश्यकता होती है। ड्डोतμहारवडर् बिजनेस स्वूफल, ववि±फग नाॅलेश मुख्य शब्दावली प्रबंधन ❙ नियोजन ❙ प्रिया संगठन ❙ क्षमता ❙ कमर्चारी ❙ प्रभावयुक्त ❙ नियुक्ितकरण कला ❙ निदेशन ❙ विज्ञान ❙ नियंत्राण ❙ पेशा ❙ समन्वय सारांश अवधारणा प्रबंध संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ित हेतु उद्यम के संसाधनों का वुफशलता एवं प्रभावी ढंग से नियोजन संगठन, अभ्िाप्रेरण एवं नियंत्राण की प्रिया है। वैकल्िपक रूप में प्रबंध को प्रबंधकों की भूमिका प्रणालियों का पारस्परिक कायर् एवं इन सभी प(तियों के मिश्रण के दृष्िटकोण से समझा जा सकता है। विशेषताएँ प्रबंध की प्रमुख विशेषताएँμएक सवर्व्यापी निरंतर चलने वाली प्रिया, उद्देश्यमूलक सामूहिक ियाऋ गतिशील कायर्ऋ बहुआयामीऋ अदृश्य शक्ित। उद्देश्य प्रबंध के तीन प्रमुख उद्देश्य हैंμसंगठनात्मक, सामाजिक एवं व्यक्ितगत। महत्त्व प्रबंध महत्त्वपूणर् है क्योंकि, यह समूह के उद्देश्यों की प्राप्ित में सहायक होता है, कायर्क्षमता में वृि करता है, एक गतिशील संगठन की रचना करता है, व्यक्ितगत उद्देश्यों की प्राप्ित में सहायक होता है एवं समाज के विकास में इसका योगदान होता है। प्रकृति प्रबंध व्यवस्िथत ज्ञान ;विज्ञानद्ध एवं इसके वुफशल उपयोग ;कलाद्ध का समिश्रण है। यद्यपि यह पेशे की सभी आवश्यकताओं की पूतिर् नहीं करता है तथापि एक सीमा तक यह एक पेशा है। स्तर प्रबंध को तीन स्तरीय िया माना गया है। उच्च प्रबंध उद्देश्यों एवं नीतियों के निधार्रण पर ध्यान देता है, मध्य प्रबंध इन उद्देश्यों को निम्न स्तर के प्रबंधकों के कायो± के माध्यम से प्राप्त करता है। कायर् सभी प्रबंधक इन कायो± को करते हैं जो एक दूसरे से संबंिात हैंः नियोजन, संगठन, नियुक्ितकरण, निदेशन एवं नियंत्राण। समन्वय समन्वय प्रबंधक का सार है। यह संगठन के परस्पर निभर्र ियाओं एव विभागों में एकात्मकता लाने की प्रिया है। अभ्यास बहुविकल्पीय प्रश्न 1.कौन - सा कायर् प्रबंध का कायर् नहीं हैμ ;कद्ध नियोजन ;खद्ध नियुक्ितकरण ;गद्ध सहयोग ;घद्ध नियंत्राण। 2.प्रबंध एकμ ;कद्ध कला है ;खद्ध विज्ञान है ;गद्ध कला एवं विज्ञान दोनों है ;घद्ध कला एवं विज्ञान कोइर् नहीं है। 3.निम्न में से कौन - सा प्रबंध का उद्देश्य नहीं हैμ ;कद्ध लाभ अजिर्त करना ;खद्ध संगठन का विकास ;गद्ध रोशगार उपलब्ध कराना ;घद्ध नीति निधार्रण करना। 4.नीति निधार्रण कायर् हैμ ;कद्ध उच्चस्तरीय प्रबंधकों का ;खद्ध मध्य स्तरीय प्रबंधकों का ;गद्ध परिचालन प्रबंध का ;घद्ध उपरोक्त सभी का। 5.समन्वयμ ;कद्ध प्रबंध का कायर् है ;खद्ध प्रबंध का सार है ;गद्ध प्रबंध का उद्देश्य है ;घद्ध इनमें से कोइर् भी नहीं है। लघु उत्तरीय प्रश्न ;कद्ध प्रबंध की परिभाषा दीजिए। ;खद्ध प्रबंध की विंफहीं दो विशेषताओं के नाम दीजिए। ;गद्ध रीतू एक बड़ी निगमित इकाइर् की उत्तरी खंड की प्रबंधक है। वह संगठन के किस स्तर पर कायर्रत है? उसके मूल कायर् क्या हैं? ;घद्ध प्रबंध को बहु - रूपीय अवधारणा क्यों माना गया है? ;घद्ध एक पेशे के रूप में प्रबंध की मूल विशेषताओं का वणर्न कीजिए। दीघर् उत्तरीय प्रश्न ;कद्ध प्रबंध विज्ञान भी है एवं कला भी, समझाइए। ;खद्ध क्या आप सोे है कि प्रबंध मं एक संूणर् पेशे की विशेषत चतंेपा ए ँ ह ैं? ;गद्ध समन्वय प्रबंध का सार है। क्या आप इससे सहमत हैं? कारण बताइए। ;घद्ध ‘एक सपफल उद्यमी अपने उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से एवं वुफशलता से प्राप्त करता है’। समझाइए। ;घद्ध प्रबंध निरंतर कायर्रत एवं पारस्परिक कायो± की शृंखला है। विवेचना कीजिए। 30 व्यवसाय अध्ययन समस्या समस्या - 1 वंफपनी आजकल अनेक समस्याओं से घ्िारी हुइर् है। यह माल का विनिमार्ण करती है जैसे कपड़े धोने की मशीन, माइक्रोवेव, चूल्हे, रैप्रफीजरेटसर् एवं एयरवंफडीशनसर्। वंफपनी की लाभ सीमा पर दवाब है लाभ एवं वुफल बिक्री में हिस्सेदारी में गिरावट आ रही है। उत्पादन विभाग इसका दोष विपणन विभाग को दे रहा है कि वह बिक्री के लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पा रहा है। विपणन विभाग उत्पादन विभाग पर दोषारोपण कर रहा है कि ग्राहकों की अपेक्षाओं के अनुरूप अच्छीगुणवत्ता की वस्तुओं का उत्पादन नहीं हो रहा है, वित्त विभाग उत्पादन एवं विपणन दोनों को निवेश पर आय एवं दोषपूणर् विपणन के लिए दोषी मान रहा है।आप वंफपनी के प्रबंध में कौन - सी गुणवत्ता की कमी देख रहे हैं? संक्षेप में समझाइए। वंफपनी को सही रास्ते पर लाने के लिए प्रबंध को क्या कदम उठाने चाहिए? समस्या - 2 बिक्री में कमी के कारण वंफपनी अपने वतर्मान उत्पाद में सुधार करना चाहती है। क्या आप किसी ऐसे उत्पाद की कल्पना कर सकते हैं जिससे आप परिचित हैं। इस निणर्य के ियान्वयन के लिए प्रत्येक स्तर के प्रबंधकों को क्या कदम उठाने चाहिए? कक्षा 12 के व्यवसाय अध्ययन में खेल खेलने एवं भूमिका निभाने हेतु सुझावμ यह ियाएँ अवधारणा की पुष्िट एवं अध्ययन को आनंददायक बनाने के लिए है। इनका उद्देश्यविद्याथ्िार्यों को उनकी अपनी समझ के स्तर के लिए उचित प्रबंध ियाओं का उत्तेजक अनुभव कराना है। वि्रफया 1 कक्षा में विद्याथ्िार्यों की संख्या के अनुसार 5 - 6 विद्याथ्िार्यों के समूह बनाइए। उनको एक सिले - सिलाए वस्त्रों के विनिमार्ण की वंफपनी चलाने को दीजिए। प्रत्येक समूह को निम्न कायर् सौंपिएμ 1.समूह ‘क’ वंफपनी की गतिवििायों की पहचान करेगा। 2.समूह ‘ख’ इन गतिवििायों को प्रबंधकीय एवं गैर प्रबंधकीय ियाओं में विभक्त करेगा। 3.समूह ‘ग’ नियोजन ियाओं की पहचान करेगा। 4.समूह ‘घ’ संगठन ियाओं की पहचान करेगा। 5.समूह ‘घ’ नियुक्ितकरण ियाओं की पहचान करेगा। 6.समूह ‘च’ निदेशन ियाओं की पहचान करेगा। 7.समूह ‘छ’ नियंत्राण ियाओं की पहचान करेगा। 8.समूह ‘ज’ समन्वय ियाओं की पहचान करेगा। इसके पश्चात् अध्यापक इन ियाओं का निष्कषर् निकाल कर उचित परिणाम निकालेगें। उपरोक्त िया विशेष इकाइर् एक आॅटो वंफपनी को लेकर क्षेत्रा चुनाव करके उससे जुड़ी वास्तविक ियाओं को इंटरनेट एवं छपी हुइर् सूचना से पता करने के लिए आवश्यक तैयारी करेंगे। इस खोज कायर् में अध्यापक विद्याथ्िार्यों को भी सम्िमलित कर सकते हैं। वि्रफया 2 इस िया में िया - 1 में पहचान की गइर् ियाओं को उच्च प्रबंध स्तर, मध्य प्रबंध स्तर एवंनिम्न प्रबंध स्तर में वगीर्कृत किया जाता है। इसके अनुसार तीन स्तर के लिए ‘क’, ‘ख’ और ‘ग’ समूह बनाए जा सकते हैं। यदि अध्यापक ठीक समझते हैं तो वह तीन से अिाक समूह भी बना सकते हैं। इसके पश्चात् इन समूहों की खोज से अध्यापक स्वयं सारांश निकालेंगे और अपने विद्याथ्िार्यों को उससे अवगत कराएँगें। नोटμअध्यापक इन दोनों ियाओं के लिए वातार् की व्यवस्था कर सकते हैं जिनमें समूह कानेता अपनी - अपनी खोज का वणर्न करेगा तथा प्रश्न पूछेंगे जिनका उत्तर अध्यापक की सहायता से पैनल के सदस्य देंगे। यह ध्यान रहे कि विद्याथ्िार्यों से किसी विश्िाष्टता की आशा नहीं की जानी चाहिए। यह कायर् विद्याथ्िार्यों को वास्तविक जीवन के कायर् के वातावरण से परिचित कराना है तथा इससे उन्होंने जो सीखा है उससे इसे जोड़ना है। अभ्यास 1.एक पफमर् ने पहले से ही एक सुदृढ़ संगठन ढाँचे की योजना बनाइर् जिसमें वुफशल पयर्वेक्षण कमर्चारियों एव नियंत्राण प्रणाली की व्यवस्था की। यह पाया गया कि कइर् बार योजना केअनुरूप कायर् नहीं हुआ। इससे संशय की स्िथति बनी तथा कायर् की पुनरावृिा हुइर्। समाधान सुझाएँ ;समन्वय की उचित प्रणालीद्ध।