रघुवीर सहाय ;सन् 1929 - 1990द्ध रघुवीर सहाय का जन्म लखनउफ ;उत्तर प्रदेशद्ध में हुआ था। उनकी संपूणर् श्िाक्षा लखनउफ में ही हुइर्। वहीं से उन्होंने 1951 में अंग्रेशी साहित्य में एम.ए किया। रघुवीर सहाय पेशे से पत्राकार थे। आरंभ में उन्होंने प्रतीक में सहायक संपादक के रूप में काम किया। पिफर वे आकाशवाणी के समाचार विभाग में रहे। वुफछ समय तक वे हैदराबाद से प्रकाश्िात होने वाली पत्रिाका कल्पना के संपादन से भी जुड़े रहे और कइर् वषो± तक उन्होंने दिनमान का संपादन किया। रघुवीर सहाय नयी कविता के कवि हैं। उनकी वुफछ कविताएँ अज्ञेय द्वारा संपादित दूसरा सप्तक में संकलित हैं। कविता के अलावा उन्होंने रचनात्मक और विवेचनात्मक गद्य भी लिखा है। उनके काव्य - संसार में आत्मपरक अनुभवों की जगह जनजीवन के अनुभवों की रचनात्मक अभ्िाव्यक्ित अिाक है। वे व्यापक सामाजिक संदभो± के निरीक्षण, अनुभव और बोध को कविता में व्यक्त करते हैं। रघुवीर सहाय ने काव्य - रचना में अपनी पत्राकार - दृष्िट का सजर्नात्मक उपयोग किया है। वे मानते हैं कि अखबार की खबर के भीतर दबी और छिपी हुइर् ऐसी अनेक खबरें होती हैं, जिनमें मानवीय पीड़ा छिपी रह जाती है। उस छिपी हुइर् मानवीय पीड़ा की अभ्िाव्यक्ित करना कविता का दायित्व है। इस काव्य - दृष्िट के अनुरूप हीे उन्होंने अपनी नयी काव्य - भाषा का विकास किया है। वे अनावश्यक शब्दों के प्रयोग से प्रयासपूवर्क बचते हैं। भयाव्रफांत अनुभव की आवेगरहित अभ्िाव्यक्ित उनकी कविता की प्रमुख विशेषता है। रघुवीर सहाय ने मुक्त छंद के साथ - साथ छंद में भीकाव्य - रचना की है। जीवनानुभवों की अभ्िाव्यक्ित के लिए वे कविता की संरचना में कथा या वृत्तांत का उपयोग करते हैं। उनकी प्रमुख काव्य - कृतियाँ हैंμसीढि़यों पर धूप में, आत्महत्या के विरु(, हँसो हँसो जल्दी हँसो और लोग भूल गए हैं। छह खंडों में रघुवीर सहाय रचनावली प्रकाश्िात हुइर् है, जिसमें उनकी लगभग सभी रचनाएँ संगृहीत हैं। लोग भूल गए हैं काव्य संग्रह पर उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। रघुवीर सहाय/35 वसंत आया जैसे बहन ‘दा’ कहती है ऐसे किसी बँगले के किसी तरफ;अशोक?द्ध पर कोइर् चिडि़या वुफउफकी चलती सड़क के किनारे लाल बजरी पर चुरमुराए पाँव तले उँफचे तरफवर से गिरेबड़े - बड़े पियराए पत्ते कोइर् छह बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहाइर् हो - ख्िाली हुइर् हवा आइर्, पिफरकी - सी आइर्, चली गइर्। ऐसे, पुफटपाथ पर चलते चलते चलते। कल मैंने जाना कि वसंत आया। और यह वैफलेंडर से मालूम था अमुक दिन अमुक बार मदनमहीने की होवेगी पंचमी़दफ्रतर में छु‘ी थीμयह था प्रमाण और कविताएँ पढ़ते रहने से यह पता था कि दहर - दहर दहवेंफगे कहीं ढाक के जंगल आम बौर आवेंगे रंग - रस - गंध से लदे - पँफदे दूर के विदेश के वे नंदन - वन होवेंगे यशस्वीमधुमस्त पिक भौंर आदि अपना - अपना कृतित्व अभ्यास करके दिखावेंगे यही नहीं जाना था कि आज के नगण्य दिन जानूँगा जैसे मैंने जाना, कि वसंत आया। रघुवीर सहाय/37 तोड़ो तोड़ो तोड़ो तोड़ो ये पत्थर ये च‘ानंे ये झूठे बंधन टूटें तो धरती को हम जानें सुनते हैं मि‘ी में रस है जिससे उगती दूब हैअपने मन के मैदानों पर व्यापी वैफसी ऊब है आधे आधे गाने तोड़ो तोड़ो तोड़ो ये ऊसर बंजर तोड़ो ये चरती परती तोड़ो सब खेत बनाकर छोड़ो मि‘ी में रस होगा ही जब वह पोसेगी बीज को हम इसको क्या कर डालें इस अपने मन की खीज को? गोड़ो गोड़ो गोड़ो प्रश्न - अभ्यास वंसत आया 1.वंसत आगमन की सूचना कवि को वैफसे मिली? 2.‘कोइर् छह बजे सुबह... पिफरकी सी आइर्, चली गइर्’μपंक्ित में निहित भाव स्पष्ट कीजिए। 3.वसंत पंचमी के अमुक दिन होने का प्रमाण कवि ने क्या बताया और क्यों? 4.‘और कविताएँ पढ़ते रहने से... आम बौर आवेंगे’μमें निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए। 38/अंतरा 5.अलंकार बताइए - ;कद्ध बड़े - बड़े पियराए पत्ते ;खद्ध कोइर् छह बजे सुबह जैसे गरम पानी से नहाइर् हो ;गद्ध ख्िाली हुइर् हवा आइर्, पिफरकी - सी आइर्, चली गइर् ;घद्ध कि दहर - दहर दहवेंफगे कहीं ढाक के जंगल 6.किन पंक्ितयों से ज्ञात होता है कि आज मनुष्य प्रकृति के नैसगिर्क सौंदयर् की अनुभूति से वंचित है? 7.‘प्रकृति मनुष्य की सहचरी है’ इस विषय पर विचार व्यक्त करते हुए आज के संदभर् में इस कथन की वास्तविकता पर प्रकाश डालिए। 8.‘वसंत आया’ कविता में कवि की ¯चता क्या है? उसका प्रतिपाद्य लिख्िाए? तोड़ो 1.‘पत्थर’ और ‘च‘ान’ शब्द किसके प्रतीक हैं? 2.कवि को धरती और मन की भूमि में क्या - क्या समानताएँ दिखाइर् पड़ती हैं? 3.भाव - सौंदयर् स्पष्ट कीजिए - मि‘ी में रस होगा ही जब वह पोसेगी बीज को हम इसको क्या कर डालें इस अपने मन की खीज को? गोड़ो गोड़ो गोड़ो 4.कविता का आरंभ ‘तोड़ो तोड़ो तोड़ो’ से हुआ है और अंत ‘गोड़ो गोड़ो गोड़ो’ से। विचार कीजिए कि कवि ने ऐसा क्यों किया? 5.ये झूठे बंधन टूटें तो धरती को हम जानें यहाँ पर झूठे बंधनों और धरती को जानने से क्या अभ्िाप्राय हैं? 6.‘आधे - आधे गाने’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है? योग्यता - विस्तार 1.वसंत )तु पर किन्हीं दो कवियों की कविताएँ खोजिए और इस कविता से उनका मिलान कीजिए? 2.भारत में )तुओं का चक्र बताइए और उनके लक्षण लिख्िाए। 3.मि‘ी और बीज से संबंिात और भी कविताएँ हैं, जैसे सुमित्रानंदन पंत की ‘बीज’। अन्य कवियों की ऐसी कविताओं का संकलन कीजिए और भ्िािा पत्रिाका में उनका उपयोग कीजिए। रघुवीर सहाय/39 शब्दाथर् और टिप्पणी वसंत आया वुफऊकना - चिडि़या की स्वाभाविक आवाश, वुफहुकना का तद्भव रूप चुरमुराए - चरमराने की आवाश तरुवर - छायादार वृक्ष पिफरकी - पिफरहरी, लकड़ी का ख्िालौना जो जमीन पर गोल - गोल घूमता है। मदनमहीने - कामदेव का महीना ;वसंतद्ध दहर - दहर - धधक - धधक कर दहकना - लपट के साथ जलना ढाक - पलाश नंदन वन - आनंददायी वन ;इंद्र का उद्यानद्ध मधुमस्त - पुष्पों का रस पीकर मस्त पिक - कोयल नगण्य - जो गिनती योग्य न हो, तुच्छ तोड़ो व्यापी - पैफली हुइर्, व्याप्तऊसर - बंजर - अनुपजाऊ शमीन चरती - परती - पशुओं के लिए चारागाह आदि के लिए छोड़ी गइर् शमीन 40/अंतरा