Samaj ka Bodh

अध्याय 3 पयार्वरण और समाज अपने चारों ओर देख्िाए। आपको क्या दिखाइर् देता है? अगर आप कक्षा में हैं तो आप देखेंगे कि विद्याथीर् स्वूफल की वदीर् में वुफसिर्यों पर बैठे हैं और सामने उनकी मेश पर पुस्तवेंफ खुली हुइर् हैं। उनके बैग में खाने का डिब्बा और पेंसिल - बाॅक्स होता है। कमरे की छत पर पंखा चलता रहता है। क्या आपने कभी सोचा है कि ये सभी वस्तुएँ - स्वूफल की वदीर्, पफनीर्चर, बैग, बिजली इत्यादि कहाँ से आती हैं? अगर आप इन वस्तुओं के ड्डोत को ढूँढें़ तो पाएँगे कि ये सारी वस्तुएँ हमें प्रवृफति से प्राप्त होती हैं। प्रतिदिन हम उन वस्तुओं का उपयोग करते हैं जिनके उत्पादन में दुनिया भर के प्रावृफतिक संसाधनों का उपयोग किया जाता है। आपकी कक्षा की कुसिर्यों के निमार्ण में शायद लकड़ी, कीलें, गोंद और वानिर्श का उपयोग किया गया हो। इस वुफसीर् को आपकी कक्षा तक पहुँचाने की यात्रा जंगल के किसी पेड़ से शुरू होती है जो अन्य कइर् चीशों पर निभर्र करती हैऋ जैसे - बिजली, डीजल तथा व्यापार और संचार की सुविधाएँ। इसके अतिरिक्त रास्ते में कइर् अन्य व्यक्ितयों तथा संस्थाओं की सहायता से यह आप तक पहुँचता हैऋ जैसे - लकड़ी काटने वाले, कारीगर, सुपरवाइजर, प्रबंधक, वाहन चालक, व्यापारी तथा वे लोग जिन पर स्वूफल के पफनीर्चर को खरीदने की िाम्मेदारी होती है। ये उत्पादक तथा वितरक वुफसीर् के निमार्ण से संबंिात तथ्यों को ध्यान में रखते हुए विभ्िान्न प्रकार की वस्तुओं का प्रयोग करते हैं जो प्रवृफति से प्राप्त की जाती हैं। इन संसाधन चक्रों को समझने की कोश्िाश कीजिए और आप पाएँगे कि इनके संबंध परस्पर कितने जटिल हैं! इस अध्याय में हम पयार्वरण के परिप्रेक्ष्य में सामाजिक संबंधों का अध्ययन करेंगे जिनमें समय के साथ कापफी परिवतर्न आया है क्योंकि स्थान - स्थान पर इनमें भ्िान्नता पाइर् जाती है। यह अत्यंत आवश्यक है कि ऐसे परिवतर्नों को एक क्रमब( रूप में समझा तथा देखा जाए। आज हमारे समक्ष कइर् पयार्वरण संबंधी समस्याएँ हैं जिन पर हमें ध्यान देने की आवश्यकता है। इस संकट की स्िथति से उबरने के लिए, हमें समाजशास्त्राीय रूपरेखा के अंतगर्त ये समझने की आवश्यकता है कि ये क्यों घटित होते हैं तथा इन्हें कैसे रोका जा सकता है अथवा इसका क्या हल हो सकता है। पारिस्िथतिकी ;म्बवसवहलद्ध प्रत्येेक समाज का आधार होती है। ‘पारिस्िथतिकी’ शब्द से अभ्िाप्राय एक ऐसे जाल से है जहाँ भौतिक और जैविक व्यवस्थाएँ तथा प्रियाएँ घटित होती हैं और मनुष्य भी इसका एक अंग होता है। पवर्त तथा नदियाँ, मैदान तथा सागर और जीव - जंतु ये सब पारिस्िथतिकी के अंग हैं। किसी स्थान की पारिस्िथतिकी पर वहाँ के भूगोल तथा जलमंडल की अंतःियाओं का भी प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, मरुस्थलीय प्रदेशों में रहने वाले जीव - जंतु अपने आपको वहाँ की परिस्िथतियों के अनुरूपऋ जैसे - कम वषार्, पथरीली अथवा रेतीली मिट्टी तथा अत्यिाक तापमान में अपने आपको ढाल लेते हैं। इसी प्रकार पारिस्िथतिकीय कारक इस बात का निधार्रण करते हैं कि किसी स्थान विशेष पर लोग वैफसे रहेंगे। विंफतु समय के साथ - साथ मनुष्य की वि्रफयाओं द्वारा पारिस्िथतिकी में परिवतर्न आया है। अगर ध्यानपूवर्क देखें तो हम पाएँगे कि पयार्वरण के प्रावृफतिक कारक जैसे - अकाल या बाढ़ की स्िथति आदि की उत्पिा भी मानवीय हस्तक्षेप के कारण होती है। नदियों के ऊपरी क्षेत्रा में जंगलों की अंधाधुंध कटाइर् नदियों में बाढ़ की स्िथति को और बढ़ा देती है। पयार्वरण में मनुष्य के हस्तक्षेप का एक अन्य उदाहरण विश्वव्यापी तापमान वृि के कारण जलवायु में आनेवाला परिवतर्न भी है। समय के साथ पारिस्िथतिकीय परिवतर्न के लिए, कइर् बार प्रावृफतिक तथा मानवीय कारणों में अंतर करना कापफी कठिन होता है। समाज का बोध ियाकलाप 1 क्या आप जानते हैं कि रिश इलाके के जंगल ;त्पकहम थ्वतमेजद्ध में पाइर् जाने वाली वनस्पति ;टमहमजंजपवदद्ध क्षेत्राीय नहीं है बल्िक अंग्रेजों द्वारा लगभग सन् 1915 में लगाइर् गइर् थी? यहाँ मुख्य रूप से विलायती कीकर अथवा विलायती बबूल के वृक्ष पाए जाते हैं जो दक्ष्िाणी अमेरिका से लाकर यहाँ लगाए गए थे और अब संपूणर् उत्तरी भारत में प्रावृफतिक रूप से पाए जाते हैं। क्या आप जानते हैं कि ‘चोरस’ - जहाँ उत्तराखंड स्िथत काॅरबेट नैशनल पावर्फ के वन्य जीवन की अद्भुत छटा को देखा जा सकता है, कभी वहाँ किसान खेती किया करते थे। इस क्षेत्रा के गाँवों को पुनस्थार्पित किया गया है ताकि यहाँ वन्य जीवन को अपने प्राकृतिक रूप में देखा जा सके। क्या आप वुफछ ऐसे उदाहरण बता सकते हैं जहाँ ‘प्रावृफतिक’ रूप से देखी जाने वाली चीज वास्तव में मनुष्य के संास्वृफतिक हस्तक्षेप का उदाहरण हो? साथ ही जैवभौतिक संपदा और प्रिया में जहाँ मनुष्य के हस्तक्षेप के कारण परिवतर्न देखा गया - उदाहरण के तौर पर नदी का बहाव तथा वनों में जीव - जन्तुओं का संयोजन, वहीं दूसरी ओर हमारे चारों ओर वुफछ ऐसे तत्व भी हैं जो पूरी तरह से मनुष्य द्वारा निमिर्त हैं। वृफष्िा भूमि जहाँ मिट्टðी तथा पानी के बचाव के कायर् चल रहे हों, खेती और पालतू पशु, वृफत्रिाम खाद तथा कीटनाशक का प्रयोग - यह सब स्पष्ट रूप से मनुष्य द्वारा प्रवृफति में किया गया परिवतर्न है। शहर के निमार्ण में प्रयुक्त सीमेंट, ईंट, वंफक्रीट, पत्थर, शीशा और बाँध् छोटा बाँध या साधारण बाँध तार हालाँंतु पिफर भी अन्तःिया के द्वारा होता है। यह दो - तरपफा कि प्रावृफतिक संसाधन हैं पर ये मनुष्य वफी कलावृफति के उदाहरण हैं। प्रिया है। जिस प्रकार से प्रवृफति समाज को सामाजिक पयार्वरण का उद्भव जैवभौतिक आकार देती है ठीक उसी प्रकार से समाज भी पारिस्िथतिकी तथा मनुष्य के हस्तक्षेप की प्रवृफति को आकार देता है। उदाहरण के तौर पर, सिंधु - गंगा के बाढ़ के मैदान की उपजाऊ भूमि गहन वृफष्िा के लिए उपयुक्त है। इसकी उच्च उत्पादक क्षमता के कारण यह घनी आबादी का क्षेत्रा बन जाता है तथा अतिरिक्त उत्पादन और गैर वृफष्िा ियाकलाप आगे चलकर जटिल अिाक्रमिक समाज तथा राज्य को जन्म देते हैंै। ठीक इसके विपरीत, राजस्थान के मरुस्थल केवल पशुपालकों को ही सहारा देते हैं जो अपने पशुओं के चारे की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान तक भटकते रहते हैं। यह एक उदाहरण है कि किस प्रकार पारिस्िथतिकी मनुष्य के जीवन तथा उसकी संस्वृफति को आकार देती है। वहीं दूसरी तरपफ पूँजीवादी सामाजिक संगठनों ने विश्वभर वफी प्रवृफति को आकार दिया है। निजी परिवहन पूँजीवादी वस्तु का एक ऐसा उदाहरण है जिसने जीवन तथा भू - दृश्य को बदला है। शहरों में वायु प्रदूषण तथा भीड़भाड़, प्रादेश्िाक झगडे़, तेल के लिए यु( तथा विश्वव्यापी तापमान वृि आदि पयार्वरण पर होने वाले प्रभावों के वुफछ एक उदाहरण हैं। बढ़ता हुआ मानवीय हस्तक्षेप पयार्वरण को पूरी तरह से बदलने में सक्षम है। सामाजिक संगठन के द्वारा पयार्वरण तथा समाज की अन्तःिया को आकार प्रदान किया जाता है। संपिा के संबंध यह निधार्रित करते हैं कि कैसे तथा किसके द्वारा प्रावृफतिक संसाधनों का उपयोग किया जाएगा। उदाहरण के लिए, यदि वनों पर सरकार का आिापत्य है तो यह अिाकार भी उसे ही होगा कि वह यह निणर्य ले कि क्या वह इसे प‘े पर किसी लकड़ी के कारोबार करने वाली कंपनी को देना चाहेगी अथवा ग्रामीणों को जंगलों से प्राप्त होने वाले वन्य उत्पादों को समाज का बोध बि्रटेन में औद्योगिक क्रांति के पफलस्वरूप होने वाले पारिस्िथतिकी परिणामों को पूरी दूनिया में महसूस किया गया। उत्तरी अमेरिका तथा वैफरिबियन के बृहत दक्ष्िाणी भागों को बडे़ - बडे़ बागान क्षेत्रों में परिवतिर्त कर दिया गया ताकि लंकाशायर की सूती मिलों की माँग की पूतिर् होती रहे। पश्िचमी अप्रफीका के युवा व्यक्ितयों को शबरदस्ती अमेरिका भेजा जाता था ताकि वे दास के रूप में इन बागानों में काम कर सवेंफ। इस तरह से अप्रफीका में जनसंख्या की कमी से वहाँ की वृफष्िा अथर्व्यवस्था का पतन प्रारंभ हुआ और चरागाह बंजर भूमि में बदल गए। बि्रटेन में कारखानों से निकलने वाले धुएँ के कारण वहाँ की वायु प्रदूष्िात हो गइर्। काम की तलाश में गाँव से शहरों की ओर आने वाले किसान तथा मजदूर अत्यंत दीन अवस्था में अपना निवार्ह करते थे। सूती कपड़ा मिलों के पारिस्िथतिकी के प्रभावों को संपूणर् नगर तथा ग्रामीण परिवेश में आसानी से देखा जा सकता है। संग्रहित करने का अिाकार देगी। भूमि तथा जल संसाधन का व्यक्ितगत स्वामित्व इस बात का निधार्रण करेंगे कि क्या अन्य लोगों को इन संसाधनों के उपयोग का अिाकार होगा और यदि हाँ, तो किन नियमों तथा शतो± के अंतगर्त? संसाधनों पर नियंत्राण तथा स्वामित्व, श्रम विभाजन और उत्पादन प्रिया से संबंिात है। कृष्िाहीन मजदूरों एवं स्ित्रायों का प्राकृतिक संसाधनों से संबंध पुरुषों की तुलना में भ्िान्न होता है। ग्रामीण भारत में स्ित्रायाँं संसाधनों की कमी से श्यादा प्रभावित होती हैं क्यांेकि ईंधन तथा पानी लाने का काम स्ित्रायों का ही होता है लेकिन, पिफर भी इन संसाधनों पर इनका कोइर् नियंत्राण नहीं होता है। विभ्िान्न सामाजिक समूह किस प्रकार अपने आपको पयार्वरण से जोड़ते हैंऋ सामाजिक संगठन इसे किस हद तक प्रभावित करते हैं। पयार्वरण तथा समाज के संबंध उसके समाजिक मूल्यों तथा प्रतिमानों के अतिरिक्त उनके ज्ञान की व्यवस्था में भी प्रतिबिंबित होते हैं। पूूँजीवादी मूल्यों ने प्रवृफति के उपयोगी वस्तु होने की विचारधारा को पोष्िात किया है जहाँ प्रवृफति को एक वस्तु के रूप मे परिवतिर्त कर दिया गया है जिसे लाभ के लिए खरीदा या बेचा जा सकता है। उदाहरणाथर्, नदी के बहुविकल्पीय सांस्वृफतिक अथो±ऋ जैसे - पारिस्िथतिकीय, उपयोगितावादी, धामिर्क तथा सौंदयर्परकता के महत्व को समाप्त कर इसे मात्रा एक उद्यमकतार् के लिए पानी को हानि या लाभ की दृष्िट से बेचने का कारोबार बना दिया है। समानता तथा न्याय के समाजवादी मूल्यों ने कइर् देशों में बडे़ - बड़े शमींदारों से उनवफी शमीनों को छीन उन्हें पुनः भूमिहीन किसानों में बाँट दिया है। धामिर्क मूल्य धामिर्क हितों तथा विभ्िान्न किस्मों को संरक्षण दे सकें तथा अन्य वगर् यह मान सवेंफ कि उन्हें अपने हितों के लिए पयार्वरण में परिवतर्न करने का दैवीय अिाकार प्राप्त है। पयार्वरण तथा समाज के संबंधों को कइर् परिप्रेक्ष्यों में देखा जा सकता है। इन भ्िान्नताओं के अंतगर्त ‘प्रवृफति - पोषण’ विवाद तथा व्यक्ितगत विशेषताएँ होती हैं जो पारिवेश्िाक कारकों से प्रभावित होती हैं या आती हैं। उदाहरणाथर्, क्या व्यक्ित गरीब इसलिए होते हैं क्योंकि वे सहज रूप से कम गुणी या कम मेहनती होते हैं अथवा उनका जन्म अच्छी भोपाल औद्योगिक दुघर्टना: जिम्मेदार कौन? 3 दिसंबर 1984 की रात, भोपाल में जानलेवा गैस से 4,000 लोगों की मृत्यु तथा 200,000 व्यक्ित हमेशा के लिए अपंग हो गए। बाद में पता चला कि यह गैस मिथाइल आइर्सोसाइनेट ;डप्ब्द्ध थी जो गलती से यूनियन काबार्इड कीटनाशक पैफक्ट्री से शहर मंे पैफली थी। विज्ञान तथा पयार्वरण वेेंफद्र ने अपने स्टेट आॅपफ इंडियाज ऐनवायरनमेंटः द सेकेन्ड सीटीजन्स रिपोटर् ;ैजंजम व िप्दकपंश्े म्दअपतवदउमदजरू ज्ीम ेमबवदक बपजप्रमदश्े तमचवतजद्ध में इस दुघर्टना के कारणों की जाँच की। यूनियन काबार्इड वंफपनी का भोपाल में सन् 1977 में शोरदार स्वागत किया गया क्योंकि इसका सीधा अथर् था भोपाल वासियों के लिए नौकरी तथा देश के लिए विदेशी मुद्रा की बचत, हरित क्रांति के कारण कीटनाशक की माँग में आइर् वृि। एम.आइर्.सी. प्लांट प्रारंभ से ही कठिनाइयों से भरा हुआ था और कइर् बार वहाँ से गैस रिस चुकी थी तथा जिसमें इस भीषण विनाश के पहले एक गैस आॅपरेटर की मृत्यु भी हो चुकी थी। लेकिन दूसरी तरपफ सरकार ने तत्परतापूवर्क इन चेतावनियों को नशरअंदाज कर दिया जिनमें प्रमुख था भोपाल म्युनिसिपल काॅरपोरेशन द्वारा यूनियन काबार्इड को 1975 में भोपाल से बाहर निकल जाने का दिया जाने वाला नोटिस। इसके बाद उस अिाकारी का स्थानान्तरण हो गया तथा वंफपनी ने काॅरपोरेशन को 25,000 रुपए की राश्िा पावर्फ के निमार्ण हेेतु दान में दी। समाज का बोध परिस्िथतियों में न हुआ हो या पिफर उन्हें उचित से प्रभावित होते हैं जिनसे उनका प्रादुभार्व होता है मौका न मिला हो? पयार्वरण तथा समाज के बारे अतः इस मान्यता को कि स्ित्रायाँ पुरुषों की तुलना में सि(ांत तथा आँकडे़ उन समाजिक परिस्िथतियों में कम योग्य होती हैं और काले लोग श्वेतों की चेतावनियाँ आती रहीं। मइर् 1982 में यूनियन काबार्इड काॅरपोरेशन, अमेरिका के तीन कमर्चारियों ने यहाँ आकर इस कारखाने की सुरक्षा व्यवस्था का सवेर्क्षण कर उससे संबंिात कइर् महत्त्वपूणर् कमियों को उजागर किया। स्थानीय साप्ताहिक पत्रिाका रपट में इन तथ्यों को प्रकाश्िात किया गया जिसे 1982 तक भविष्यबोधक या पैगम्बरी लेखमाला समझा गया। इसी दौरान कारखाने वफी कमर्चारी यूनियन ने वेंफद्रीय मंत्रिायों तथा मुख्यमंत्राी को इन परिस्िथतियों से आगाह करते हुए पत्रा लिखे। राज्य श्रममंत्राी ने विधायकों को कइर् बार आश्वासन दिया कि कारखाना पूरी तरह सुरक्ष्िात है। इस दुघर्टना के केवल कुछ सप्ताह पूवर् पैफक्ट्री को राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोडर् से पयार्वरण निकासी प्रपत्रा प्रदान किया गया था। वेंफद्र सरकार ने राज्य सरकार को इस विषय पर उनके ढुलमुल रवैये के लिए आडे़ हाथों लिया। राज्य ने इसे अनुमति देकर न केवल प्लंाट वफी सुरक्षा के अभ्िालेखों का उल्लंघन किया बल्िक दूसरी ओर पयार्वरण विभाग के नियमों की भी अनदेखी की। इन नियमों तथा चेतावनियों की अनदेखी क्यों की गइर् यह सापफ है। इस कंपनी ने शक्ितशाली नेताओं तथा नौकरशाहों के रिश्तेदारों को अपने यहाँ नौकरी दी थी। इसका कानूनी सलाहकार एक महत्त्वपूणर् नेता था और इसका जनसंपवर्फ अिाकारी एक भूतपूवर् नेता का भतीजा था। वंफपनी का भव्य अतिथ्िाग्रह हमेशा नेताओं के लिए खुला रहता था। ऐसा कहा जाता है कि मुख्यमंत्राी की पत्नी ने अपने अमेरिका प्रवास के दौरान वंफपनी के भव्यतम स्वागत - सत्कार का लाभ उठाया था। इतना ही नहीं वंफपनी ने डेढ़ लाख की राश्िा मुख्यमंत्राी के शहर में होने वाले कल्याणकारी कायो± के लिए प्रदान की। यूनियन काबार्इड काॅरपोरेशन ने भी इस विनाश में महत्त्वपूणर् भूमिका निभाइर्। भोपाल प्लां ट की रूपरेखा ठीक नहीं थी तथा सुरक्षा के स्तर पर इसमें कापफी कमियाँ थीं। इनमें वंफप्यूटरीकृत अगि्रम चेतावनी व्यवस्था नहीं थी, जो कि अमेरिका में स्िथत वंफपनी के प्रत्येक प्लां ट का एक अनिवायर् हिस्सा थी। वंफपनी ने वहाँ के निवासियों के साथ मिलकर आपातकालीन स्िथति में पैफक्ट्री से लोगों को किस प्रकार निकाला जाएगा, इस पर कोइर् कायर् नहीं किया था। न तो प्लां ट की उचित देखभाल की गइर् थी और न ही उसे दक्षतापूवर्क चलाया जा रहा था। कमर्चारियों का मनोबल घट गया था क्योंकि प्लां ट घाटे में चल रहा था और विक्रय कापफी गिर गया था। यह अपनी क्षमता के तीसरे स्तर पर कायर् कर रही थी। कमर्चारियों की संख्या में कटौती की गइर् और कइर् अभ्िायंता तथा आॅपरेटरों ने काम छोड़ दिया। इससे बचे हुए लोगों द्वारा सभी कायर् करना असंभव था। कइर् मशीनें कायर् न करने की स्िथति में पड़ी थीं। विचार - विमशर् - वे कौन सी सामाजिक संस्थाएँ तथा संगठन हैं जो कारखानों में होने वाली दुघर्टनाओें ;जैसी भोपाल में हुइर् थीद्ध में महत्त्वपूणर् भूमिका अदा करते हैं? इस तरह की दुघर्टनाओं को भविष्य में रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं? ड्डोतः स्टेट आपफ इंडियन एनवायरनमैंटऋ द सैविंफड सिटिजन्स रिपोटर्, द सेंटर पफाॅर साइंस एंड एनवायरनमैंट एनालाइश्ड द रीजंस बिहाइंड द डिशास्टर। तुलना में कम योग्य होते हैं - सामाजिक तथा राजनीतिक परिवतर्नों के कारण 18वीं शताब्दी में चुनौती मिली क्योंकि ‘समानता’ की विचारधारा का चारों ओर प्रचार - प्रसार हुआ। साम्राज्यवाद ने पयार्वरण तथा समाज से संबिात ज्ञान का प्रसार किया और अिाकांशतः इसे क्रमब( तरीके से संकलित किया ताकि ये संसाधन साम्राज्यवादी ताकतों को उपलब्ध होते रहें। साम्राज्यवादी शरूरतों को ध्यान में रखते हुए कइर् नए विषय तैयार किए गए यथा - भूगोल, जीव विज्ञान, वनस्पति, वानिकी, भूगभर् विज्ञान तथा द्रवचालित अभ्िायांत्रिाकी। इतना ही नहीं इन विषयों को मात्रा तैयार ही नहीं किया गया बल्िक इन्हें संस्थागत रूप में तैयार किया गया ताकि ये साम्राज्यवादी आवश्यकताओं के लिए प्रावृफतिक संसाधनों के प्रबंधन को आसान बना सकें। पयार्वरण प्रबंधन हालाँकि एक कठिन कायर् है। हमारे पास इन जैव भौतिक प्रियाओं के पूवार्नुमान तथा उसे रोकने के बारे में अिाक जानकारी नहीं है। इसके साथ ही साथ पयार्वरण के साथ मनुष्य के संबंध और अिाक जटिल हो गए हैं। बढ़ते औद्योगीकरण के कारण संसाधनों का दोहन बडे़ पैमाने पर अत्यंत तीव्र गति से हो रहा है। जिसने पारिस्िथतिकी तंत्रा को कइर् तरह से प्रभावित किया है। जटिल औद्योगिक तकनीक तथा संगठन की व्यवस्थाओं के लिए बेहतरीन प्रबंधन व्यवस्था की जरूरत होती है जो अिाकांशतः गलतियों के प्रति कमजोर तथा सुभेद्य होते हैं। आज हम जोख्िाम भरे समाज में रहते हैं जहाँ ऐसी तकनीकों तथा वस्तुओं का हम प्रयोग करते हैं जिसके बारे में हमें पूरी समझ नहीं है। नाभ्िाकीय विपदाऋ जैसे - चेरनोबिल, भोपाल की औद्योगिक दुघर्टना, योरोप में पैफली ‘मैड काऊ’ बीमारी, औद्योगिक पयार्वरण में होने वाले खतरों को दिखाते हैं। पयार्वरण की प्रमुख समस्याएँ और जोख्िाम वैसे तो पयार्वरण से संबंिात समस्याएँ प्रत्येक देश तथा परिप्रेक्ष्य में बदलती रहती हैं लेकिन निम्नलिख्िात समस्याएँ ऐसी हैं जिन्हें सावर्भौमिक रूप से स्वीकार किया गया है। ये हैं - ;अद्ध संसाधनों की क्षीणता ;कमीद्ध अस्वीकृत प्रावृफतिक संसाधनों का प्रयोग करना पयार्वरण की एक गंभीर समस्या है। वैसे तो आए दिन जैव ऊजार् मुख्यतः पेट्रोलियम की कमी ही समाचार पत्रों में दिखाइर् देती है लेकिन ध्यानपूवर्क देखा जाए तो पानी तथा भूमि में क्षीणता बहुत तेश गति से आ रही है या यूँ कहें कि वे समाप्ित के कगार की तरपफ तीव्र गति से बढ़ रहे हैं। भूजल के स्तर में लगातार कमी वैसे तो पूरे भारत में है परन्तु मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में स्पष्ट देखी जा सकती है। जहाँ पानी हशारों लाखों साल से लगातार जमा होता रहा है, वुफछ ही दशकों में वृफष्िा, उद्योग तथा शहरी वेंफद्रों की बढ़ती माँगों के कारण खत्म होता जा रहा है। नदियों के बहाव को मोड़े जाने के कारण जल बेसिन को जो क्षति पहुँची है उसकी भरपाइर् नहीं हो सकती। शहरों के जलाशय भर दिए गए हैं और वहाँ निमार्ण कायर् होने के कारण प्रावृफतिक निकासी के साधनों को नष्ट किया जा रहा है। भूजल की ही तरह मृदा की ऊपरी परत का निमार्ण भी हशारों समाज का बोध वनोन्मूलन सालों में होता है। यह महत्त्वपूणर् वृफष्िा संसाधन भी पयार्वरण के वुफप्रबंधनऋ जैसे - भू कटाव, पानी का जमाव तथा खारेपन के कारण नष्ट होते जा रहे हैं। भवन - निमार्ण के लिए ईंटों का उत्पादन भी मृदा की ऊपरी सतह के नाश के लिए िाम्मेदार है। जैविक विविध आवासोंऋ जैसे - जंगल, घास के मैदान और आद्रर्भूमि आदि अन्य मुख्य संसाधन हैं जो बढ़ती वृफष्िा भूमि के कारण समाप्ित के कगार पर खडे़ हैं। हालाँकि विश्व के विभ्िान्न हिस्सों में, भारत सहित, वुफछ वनरोपण किए गए हैं जिसके कारण हाल के वुफछ दशकों में वनस्पति के स्तर में बढ़ोत्तरी हुइर् है लेकिन पिफर भी रुझान नुकसान की ओर ही है। इन आवासों की बढ़ती कमी कइर् वन्यजीवों की किस्मों के लिए खतरा है। आपने हाल ही में सुना होगा कि इतने सख्त कानूनों तथा इतने बडे़ अभ्यारण्यों के बावजूद बाघों की जनसंख्या में गिरावट आइर् है। ;बद्ध प्रदूषण ग्राामीण तथा शहरी इलाकों में वायु प्रदूषण एक मुख्य समस्या मानी जा रही है जिससे श्वास तथा सेहत संबंधी दूसरी बीमारियाँ तथा मृत्यु भी हो सकती है। वायु प्रदूषण के मुख्य ड्डोत हैं - उद्योगों तथा वाहनों से निकलने वाली शहरीली गैसें तथा घरेलू उपयोग के लिए लकड़ी तथा कोयले का प्रयोग। हम सभी ने वाहनों तथा उद्योगों से होने वाले प्रदूषण के बारे में सुना है और चिमनियों तथा कार की पाइप से निकलते हुए धुएँ की तस्वीरें भी देखी हैं। औद्योगिक प्रदूषण लेकिन हम कभी यह महसूस नहीं कर पाते कि खाना बनाने वाला ईंधन भी आंतरिक प्रदूषण का ड्डोत है। यह विशेषकर ग्रामीण घरों के लिए सच साबित होता है जहाँ खाना बनाने के लिए हरी - भरी लकडि़यों का प्रयोग, अनुपयुक्त चूल्हे तथा हवा के निष्कासन की अव्यवस्था इत्यादि ग्रामीण महिलाओं की सेहत पर बुरा असर डालते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह अनुमान लगाया है कि तकरीबन 600,000 लोग भारत में 1998 के दौरान घरेलू प्रदूषण से मरे जबकि अकेले 500,000 के करीब मरने वालों की संख्या ग्रामीण क्षेत्रों से थी। ;जीडेंस 2004ः614 तालिका 19.1, मानव विकास रिपोटर् 1998, यूएन.डी.पी., जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की सांख्ियकी से लिया गया है।द्ध जल प्रदूषण भी एक शोचनीय विषय है जिसने न केवल भूमि बल्िक भूमि - जल को भी प्रभावित किया है। जल प्रदूषण के मुख्य ड्डोत न केवल घरेलू नालियाँ और पैफक्ट्री से निकलने वाले पदाथर् हैं बल्िक खेतों से निकलने वाला जल भी है जिसमें बड़ी मात्रा में वृफत्रिाम खाद तथा कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है। नदियों तथा जलाशयों का प्रदूषण विशेषकर मुख्य समस्या है। शहर ध्वनि प्रदूषण से भी ग्रसित हैं और कइर् शहरों में यह मामला न्यायालय के अधीन है। इसके ड्डोतों में धामिर्क तथा सामाजिक अवसरों पर उपयोग किए जाने वाले लाउडस्पीकर, राजनीतिक प्रचार, वाहनों के हाॅनर् और यातायात तथा निमार्ण उद्योग आदि हैं। समाज का बोध बैंगन के खेत में कीटनाशक का छिड़काव ;सद्ध वैश्िवक तापमान वृि ;ग्लोबल वामि±गद्ध पृथ्वी द्वारा छोड़ी गइर् वुफछ प्रमुख गैसंे ;काबर्न डाइआॅक्साइड, मीथेन तथा अन्य गैसेंद्ध सूयर् की रोशनी को रोक कर तथा उसे वापस वायुमंडल में न जाने देकर ‘ग्रीनहाउस’ प्रभाव का निमार्ण करती हैं। इससे विश्व के तापमान मंे परिवतर्न होने के कारण ध्रुवों के हिम की परतें पिघल रही हैं जिसके कारण समुद्र तल की ऊँचाइर् बढ़ती जा रही है। इससे समुद्रों के किनारों पर स्िथत प्रदेश जल में निमग्न हो जाएँगे तथा पारिस्िथतिक संतुलन पर भी असर पडेगा। ‘ग्लोबल वामि±ग’ के परिणामस्वरूप जलवायु में उतार - चढ़ाव तथा अनियमितता का प्रभाव पूरी दुनिया में देखा जा सकेगा। चीन तथा भारत पूरी दुनिया में सबसे अिाक काबर्न तथा ग्रीनहाऊस से निकलने वाली गैसों में योगदान देने वाले देश हैं। दद्ध जैनेटिकली मोडिपफाइड आगर्ेनिशम्स ;ळमदमजपबंससल उवकपपिमक व्तहंदपेउेद्ध वैज्ञानिक जीन - स्पेलिसिंग ;ळमदम.ेचसपबपदहद्ध की नयी तकनीकों के द्वारा एक किस्म के गुणों को दूसरी किस्म में डालते हैं ताकि बेहतरीन गुणों से भरपूर वस्तु का निमार्ण किया जा सके। उदाहरण के तौर पर, बैसिलस ;ठंबपससनेद्ध के जीन को कपास की प्रजातियों में डाला गया है ताकि एक मुख्य कीटाणु ‘बाॅलवमर्’ का उस पर कोइर् असर न हो। जैनेटिक मोडिपिफकेशन आगर्निशम्स ;ळमदमजपब उवकपपिबंजपवद वतहंदपेउेद्ध का उपयोग कम समय में पैदावार, पफसल का आकार तथा उनकी समय सीमा को बढ़ाने के लिए भी किया जा सकता है। हालाँकि हमें लम्बे समय में इससे होने वाले प्रभाव की बहुत ही कम जानकारी है कि ऐसा भोजन खाने वालोें, तथा पारिस्िथतिक तंत्रा पर इसका क्या असर पड़ सकता है। वृफष्िा उद्योग में जैनेटिक मोडिपिफकेशन के प्रयोग द्वारा किसान अनुवर्रक बीजों के निमार्ण एवं उनके पुनः उपयोग से बच सकते हैं और साथ ही साथ उन्हें इस बात की गारंटी भी मिल सकती है कि वे उनकी गुणवत्ता बनाए रखेंगे ताकि किसान उन बीशों पर निभर्र रह सवेंफ। ;यद्ध प्रावृफतिक तथा मानव - निमिर्त पयार्वरण विनाश यह अपने आप पूणर्रूपेण समझा जा सकने वाला कारण है। 1984 में भोपाल आपदा जिसमें यूनियन काबार्इड पैफक्ट्री से गैस रिसने के कारण 4000 व्यक्ितयों की मृत्यु, और 2004 का सुनामी मानव - निमिर्त पयार्वरण आपदा के उदाहरण हैं। पयार्वरण की समस्याएँ समाजिक समस्याएँ क्यों हैं? सामाजिक पयार्वरण की समस्याएँ सामाजिक असमानता के लिए कायर् करने वाले विभ्िान्न समूहों को किस प्रकार प्रभावित करती हैं। सामाजिक परिस्िथति तथा शक्ित बहुत वुफछ इस बात पर निभर्र करती है कि व्यक्ित अपने आपको पयार्वरण की आपदाओं से बचने या उस पर विजय प्राप्त करने के लिए किस हद तक जा सकता है। वुफछ स्िथतियोें में उनके ‘समाधान’ वास्तव में पयार्वरण की असमानताओं को बढ़ा देते हैं। गुजरात राज्य के वुफछ िालों में, जहाँ पानी की बहुत कमी है, संपन्न किसानों ने अपने खेतों में उपजी नकदी पफसलों की सिंचाइर् के लिए भू - जल प्राप्त करने हेतु कापफी धन नलवूफपों की गहरी खुदाइर् पर खचर् किया है। जब वषार् नहीं होती है तब गरीब ग्रामीणों के वुफएँ सूख जाते हैं तथा उनमें पीने तक के लिए पानी नहीं रहता है। ऐसे समय में संपन्न किसानों के लहलहाते खेत मानो गरीबों का मशाक उड़ा रहे होते हैं। वुफछ पयार्वरण चिंतन कभी - कभी सावर्भौमिक चिंतन बन जाते हैं जब इनके संबंध किसी विशेष सामाजिक वगर् से नहीं रह जाते। उदाहरणतः वायु प्रदूषण को कम करना अथवा जैव विविधता को संरक्षण देना सावर्जनिक हित का कायर् है। समाजशास्त्राीय समीक्षा यह दशार्ती है कि, किस प्रकार से सावर्जनिक प्राथमिकताएँ तय की जाती हैं तथा किस प्रकार इन्हें आगे बढ़ाया जाता है। सावर्भौमिक रूप से वे लाभदायक नहीं भी हो सकते हैं। कभी - कभी जनहित के कायो± की रक्षक नीतियाँ वास्तव में राजनीतिक तथा आथ्िार्क रूप से शक्ितशाली वगो± के लाभ की रक्षा करती हैं अथवा गरीब तथा राजनीतिक रूप से कमशोर वगो± वफो नुकसान पहुँचाती हैं। बडे़ - बडे़ बाँधों तथा उसके आस - पास के संरक्ष्िात प्रदेशों से संबिात वाद - विवादों से पता चलता है कि जनहित के रूप में पयार्वरण बहस का एक ज्वलंत मुद्दा है। सामाजिक पारिस्िथतिकी की विचारधारा यह बताती है कि सामाजिक संबंध, मुख्य रूप से संपिा तथा उत्पादन के संगठन पयार्वरण की सोच तथा प्रयास को एक आकार देते हैं। भ्िान्न सामाजिक वगर् भ्िान्न प्रकार से पयार्वरण संबंिात मामलों को देखते तथा समझते हैं। वन्य विभाग, जो श्यादा से श्यादा राजस्व प्राप्त करने हेतु अिाक मात्रा में बाँस का निमार्ण उद्योग के लिए करेगा। वह इसे बाँस के टोकरे बनाने वाले कारीगर के बाँस के उपयोग से भ्िान्न रूप में देखेगा। इस अथर् में उसका दृष्िटकोण कारीगर के दृष्िटकोण से अलग होगा हालांकि दोनों बाँस का प्रयोग कर रहे हैं। उनकी अपनी - अपनी रुचियाँ तथा विचारधाराएँ पयार्वरण संबंधी मतभेद उत्पन्न कर देती हैं। इस अथर् में पयार्वरण संकट की जडे़ं सामाजिक असमानताओं में देखी जा सकती हैं। इस प्रकार से पयार्वरण संबंिात समस्याओं को सुलझाने का एक तरीका पयार्वरण तथा समाज के आपसी संबंधों में परिवतर्न है और इसका अथर् है विभ्िान्न समूहों के बीच संबंधों में परिवतर्न - पुरुष तथा स्त्राी, ग्रामीण तथा शहरी लोग, शमींदार तथा मशदूर। सामाजिक संबंधों में परिवतर्न विभ्िान्न ज्ञान व्यवस्थाओं और भ्िान्न ज्ञानतंत्रा को जन्म देगा जो पयार्वरण का प्रबंधन सुचारू रूप से कर सकेगा। शाब्िदक रूप में सामाजिक पारिस्िथतिकी ‘सामाजिक’ वैफसे है - इस बात की समझ में हमने जिन तथ्यों को नशअंदाज कर दिया हैऋ वास्तव में आज की पारिस्िथतिकी से संबंिात सारी समस्याएँ वहीं कहीं न कहीं गहरी दबी सामाजिक समस्याओं से उत्पन्न हुइर् हैं। आज की पारिस्िथतिकी की समस्याएँ तब तक नहीं समझी जा सकती हैं, जब तक हम दृढ़तापूवर्क समाज का बोध इन समस्याओं को सामाजिक ढाँचे से दूर नहीं कर लेतेऋ तब तक सुलझाना तो दूर की बात है। इस बात को और बेहतर तरीके से समझने के लिए - आथ्िार्क, नृजातीय, सांस्वृफतिक और लैंगिक मतभेद तथा अन्य बहुत से कारणों के साथ, आज हम जितनी समस्याओं का सामना कर रहें हैं पयार्वरण की व्यवस्था उसके वेंफद्र में स्िथत है। इनके अतिरिक्त, उनसे भी जोकि प्रावृफतिक विपदाओं के कारण उत्पन्न होते हैं। मुरर्े बुकचिन, राजनीतिक दाशर्निक तथा सामाजिक पारिस्िथकी संस्थान के संस्थापक। वषार् नहीं, परंतु बपर्फ और पानी के क्रीड़ास्थल जलरहित विदभर् में जल के मनोरंजन एवं क्रीड़ास्थलों की बढ़ती संख्या जबकि इस प्रदेश में तापमान 47 डिग्री रहता है परन्तु अन्य स्थानों की तुलना में यह स्थान कापफी ठंडा रहता है। हमसे वुफछ ही दूरी पर भूमि का एक छोटा सा टुकड़ा है जहाँ तापमान हमेशा 13 डिग्री रहता है। यहाँ विदभर् की चिलचिलाती गमीर् में ‘भारत का पहला हिम गुम्बद’ स्िथत है। इसकी बपर्फ को यथास्िथति ठोस बनाए रखने के लिए मात्रा बिजली पर प्रतिदिन 4,000 रुपए खचर् होते हैं। ‘पफन एंड पूफड विलेज वाॅटर एंड एम्युजमैंट पावर्फ’ऋ बाशारगाँव ग्रामपंचायत, नागपुर ;देहातद्ध जिला आपका स्वागत करता है। इस दफ्रतर के बड़े क्षेत्रा में महात्मा गांधी की तसवीर दशर्कों का स्वागत करती है। चालीस एकड़ मंे बसा यह पावर्फ अठारह प्रकार के पानी के झूलों तथा खेल - वूफदों का आयोजन करता है। इसके अलावा प्रतिदिन के ियाकलापों में डिस्को, आइस स्केटिंग, आइस स्लाइडिंग तथा ‘काॅकटेल से भरे पूरे एक बार’ के प्रति भी आप आश्वस्त हो सकते हैं। साथ ही यहाँ विभ्िान्न आयोजनों जैसे - सम्मेलनों एवं कि‘ी पाटीर् की भी व्यवस्था है। बाशारगाँव, जहाँ की आबादी 3,000 के करीब है, वह स्वयं पानी की भीषण कमी से जूझ रहा है। वहाँ की सरपंच यमुनाबाइर् उकी का कहना है कि पानी की घरेलू आवश्यकताओं की पूतिर् के लिए यहाँ की महिलाओं को प्रतिदिन पंद्रह किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। इस पूरे गाँव में मात्रा एक सरकारी वुुफआँ है। कभी - कभी हमें पानी चार या पाँच दिन में एक बार या कभी - कभी तो दस दिन में एक बार मिलता था। इस संपूणर् प्रदेश को, जहाँ बाशारगाँव स्िथत है 2004 में पानी की कमी वाला प्रदेश घोष्िात किया गया है। ऐसे दिन इसने पहले कभी नहीं देखे थे। पहले यहाँ बिजली छह घंटे नहीं रहती थी परंतु बाद में यहाँ की स्िथति मइर् के महीने तक और खराब हो गइर्। इससे प्रतिदिन के काम - काज के साथ ही स्वास्थ्य पर कापफी़खराब असर पड़ा। यहाँ बोडर् की परीक्षाओं में बैठने वाले बच्चे भी थे। गमिर्यों का तापमान 47 डिग्री तक पहुँच गया जिसने स्िथति को और बिगाड़ा। ग्रामीण जीवन की इन विकट परिस्िथतियों का पफन एंड पूफड विलेज पर कोइर् प्रभाव नहीं पड़ता। इस निजी मरुद्वीप में इतना पानी है जिसकी बाशारगाँव स्वप्न में भी कल्पना नहीं कर सकता। कभी भी, एक क्षण के लिए भी यहाँ बिजली नहीं जाती है। इसके महाप्रबंधक मि. सिंह का कहना है कि ‘हम औसतन 4 लाख मासिक बिजली के बिल पर खचर् करते हैं’। पावर्फ का मासिक बिजली का बिल, यमुनाबाइर् के ग्रामपंचायत के वाष्िार्क राजस्व के तकरीबन बराबर है। भाग्य की विडंबना, गाँव की बिजली की समस्या थोडी - बहुत इसी पावर्फ के कारण ठीक हुइर् है। दोनों स्थानों पर बिजली एक ही सबस्टेशन से आती है। मइर् के महीने से पावर्फ में भीड़ बढ़ जाती है। इस प्रकार स्िथति में थोड़ा सुधार आया है। ग्रामपंचायत के राजस्व में पावर्फ का योगदान 50,000 रुपए सालाना है जिसकी लगभग आधी रकम मात्रा प्रवेश शुल्क, जिसमें 700 दशर्क रोजाना आते हैं, से जमा की गइर् थी। पावर्फ के 110 कायर्कतार्ओं में से तकरीबन एक दजर्न बाशारगाँव के स्थानीय लोग हैं। पानी की भीषण कमी से जूझते हुए विदभर् क्षेत्रा में इस प्रकार की मनोरंजन तथा क्रीड़ास्थली की संख्या दिन - प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। शेगँाव में बुलधाना ;धामिर्क ट्रस्टद्ध जो कि एक बहुत बड़ा मैडिटेशन सेंटर एंड एनटरटेनमेंट पावर्फ चला रहे हंै, ने एक अन्य पावर्फ में 30 एकड़ का ‘मानव - निमिर्त जलाशय’ बनाने की कोश्िाश की जो गमिर्यों में सूख गया। लेकिन इसके निमार्ण की कोश्िाश में कापफी मात्रा में पानी बेकार बह गया। यहाँ प्रवेश शुल्क को दान कहा जाता है। यवतमाल में एक निजी वंफपनी ने दशर्नीय स्थल के रूप में एक सावर्जनिक जलाशय का निमार्ण किया है। अमरावती में ऐसे एक या दो स्थल हैं जो अब सूख गए हैं और वुफछ अन्य नागपुर तथा उसके आस - पास स्िथत हैं। और यह सब उस क्षेत्रा में, जहाँ गाँवोें को पानी कभी - कभी पंद्रह दिन में एक बार मिलता है। इतना ही नहीं बल्िक महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में यह विपदा किसानों की आत्महत्या के रूप में सामने आइर् है। ‘दस सालों में भी पेयजल अथवा सिंचाइर् से संबंिात कोइर् भी बृहत स्तरीय कायर् इस क्षेत्रा में पूरा नहीं हुआ।’ यह कहना है नागपुर स्िथत एक पत्राकार जयदीप हारदीकर का जो इस क्षेत्रा में कापफी सालों से काम कर रहे हैं। वरुण पावर्फ के महाप्रबंधक मि. सिंह का कहना है कि वे पानी को संरक्ष्िात करते हैं। उनका कहना है, ‘हम पानी के दुबारा उपयोग के लिए बेहतरीन पिफल्टर प्लांट का इस्तेमाल करते हैं।’ लेकिन वाष्पीकरण का स्तर इस गमीर् में कापफी बढ़ जाता है और पानी का इस्तेमाल केवल जलक्रीड़ा के लिए ही नहीं किया जाता है। सभी पावर्फ पानी का एक बड़ा भाग अपने बाग - बगीचों के रख - रखाव, सपफाइर् तथा दशर्कों के लिए प्रयोग करते हैं। ‘यह पानी तथा धन की बबार्दी है’ - कहना है बुलधाना के विनायक गायकवाड़ का जो कि इस जिले की किसान सभा के नेता हैं। इस बात को लेकर वे क्रोिात हैं कि इस पूरी प्रिया में जनता के संसाधनों का प्रयोग निजी लाभ को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है। इसकी जगह इन्हें लोगों की पानी संबंिात बुनियादी जरूरतों को पूरा करना चाहिए। पफन एंड पूफड विलेज से बाशारगाँव की सरपंच यमुनाबाइर् उकी भी प्रभावित नही हैं। न तो जल क्रीड़ास्थलों ने और न ही अन्य उद्योगों ने, जिन्होंने यहाँ से लिया बहुत वुुफछ है परंतु बहुत कम दिया है। वे जानना चाहती हैं कि इस सब मंे हमारे गाँव के लिए क्या है। एक सामान्य सरकारी जल परियोजना के लिए उनकी पंचायत समाज का बोध को वुफल खचर् का दस पफीसदी, जो करीब 4.5 लाख रुपए होगा, का भार उन्हें स्वयं उठाना होगा। ‘हम 45,000 रुपए कहाँ से लाएँगे? हमारी हालत क्या है?’ अतः इसे केवल एक ठेकेदार को दे दिया गया है। इससे यह परियोजना तैयार हो सकती है। लेकिन इसका अथर् होगा समय के साथ इसकी लागत में वृि और गाँव का इस पर कम से कम नियंत्राण जहाँ अिाकतर गरीब तथा मशदूर रहते हैं। पावर्फ में दफ्रतर के बाहर स्िथत गाँधीजी की मूतिर् अब भी ‘हिमगुंबद’ को देख कर मुसवुफराती है। बदकिस्मती उस इनसान की जिसने कहा था, ‘‘सरल जीयो ताकि दूसरे जीएँ सरलता से।’’ ;लेखक - पी. साइर्नाथ, जून 22, 2005 हिंदू में प्रकाश्िात।द्ध भगवान भारत को पश्िचमी देशों के तरीके के औद्योगीकरण से बचाए। आज पूरे विश्व को बि्रटेन जैसे एक छोटे से द्वीपीय देश के आथ्िार्क साम्राज्यवाद ने जंजीरों में जकड़ दिया है। अगर 30 करोड़ जनसंख्या वाला देश वैसे ही आथ्िार्क शोषण को अपना ले तो यह पूरी दुनिया को टिंों की भांति खत्म कर देगा। - महात्मा गाँधी जलक्रीड़ास्थली के परिणामों के बारे में जैसा कि ऊपर बताया गया है, इन सूखाग्रस्त वृफष्िा इलाकों के किसान अपना जीवन अत्यिाक विपदाओं से घ्िारा पा रहे हैं। पिछले छह वषो± वफी रिपोटर् को देखने से पता चलता है कि आंध्र प्रदेश, कनार्टक तथा महाराष्ट्र के हशारों किसानों ने कीटनाशक पीकर आत्महत्या कर ली। आख्िार वेे क्या कारण हैं जिनकी वजह से किसानों, जो ऐसे व्यक्ित हैं जिन्हें वृफष्िा की अनियमितताएँ विरासत में मिलती हैं, ने इस तरह के उग्रतम कदम उठाए। पत्राकार पी. साइर्नाथ की खोजबीन यह दिखाती है कि किसानों की चिंताजनक स्िथति के लिए मुख्यतः दो कारण उत्तरदायी हंै, पहला - पयार्वरण का गलन तथा दूसरा आथ्िार्क कारण। वृफष्िा की दशाएँ अत्यिाक खराब हो गइर् हैं क्योंकि किसान दुनिया के बाशारों के उतार - चढ़ाव के सीधे चपेट में आ चुके हैं और सरकार द्वारा छोटे किसानों को दी जाने वाली सहायता मुक्त बाशार नीतियों के तहत कम होती जा रही है। कपास की खेती करने वाले किसानों के लिए यह पफसल श्यादा जोख्िाम, श्यादा - लाभ की स्िथति में आ गइर् है। कपास को सिंचाइर् की आवश्यकता होती है। लेकिन इसमें कीडे़े लगने की संभावना सवार्िाक होती है। अतः कपास की खेती करने वाले किसानों को सिंचाइर् तथा कीटनाशक में पूँजी लगाने की आवश्यकता होती है। ये दोनो ही वस्तुएँ आने ़ वाले समय में कापफी कीमती हो गईं। पानी के लिए की जाने वाली शमीन की गहरी खुदाइर् ने जल स्तर को कापफी कम कर दिया है अतः़किसानों को पानी के लिए और गहरी खुदाइर् करने की आवश्यकता होती है और किटाणुओं पर भी कीटनाशक दवाएँ बेअसर साबित हुइर् हैं। अतः किसानों को नित्य नए - नए कीटनाशकों की अिाक मात्रा में आवश्यकता पड़ती रहती है जिसके लिए वे साहूकार या व्यापारियों के पास जाते हैं जो उनको अत्यिाक ब्याज दर पर )ण देते हैं। अगर पैदावर नष्ट हो जाती है तो किसान )ण की रकम वापस नहीं कर पाते। इस कारण न तो वे अपने परिवार का पेेट भर पाते हैं और न ही पारिवारिक िाम्मेदारियोंऋ जैसे - बच्चों के शादी - विवाह को पूरा कर पाते हैं। सामाजिक तथा आथ्िार्क तबाही उन्हें कहीं का नहीं छोड़ती और अंत में आत्महत्या ही उनके पास एक मात्रा रास्ता बच जाता है। ियाकलाप 2 पता कीजिए कि आपके परिवार में रोजाना कितना पानी इस्तेमाल किया जाता है। यह जानने का प्रयास कीजिए कि विभ्िान्न आय समूह के परिवारों में तुलनात्मक रूप से कितना पानी इस्तेमाल होता है। विभ्िान्न परिवार पानी के लिए कितना समय और पैसा खचर् करते हैं? परिवार में पानी भरने का काम कौन करता है? सरकार विभ्िान्न वगर् के लोगों के लिए कितना पानी मुहैया करवाती है? विचार विमशर्ः पानी की कमी प्राकृतिक है या मानव - निमिर्त? किन सामाजिक कारकों से तय होता है कि उसे विभ्िान्न उपभोक्ताओं में वैफसे वितरित किया जाए? पानी को इस्तेमाल करने के विभ्िान्न तरीके वैफसे विभ्िान्न सामाजिक समूहों को प्रभावित करते हैं? शहरी पयार्वरण - दो शहरों की कहानी यहाँ शहरी पयार्वरण पर एक विश्िाष्ट ;ठेठद्ध मतभेद देखा जा सकता है - जनवरी 30, 1995 सदिर्यों की एक ठंडी सुबहऋ दिल्ली ने अपनी आँखें खोलीं। उत्तरी दिल्ली का अशोक विहार इलाकाऋ सदिर्यों की धंुध से घ्िारे भव्य मकानऋ सुबह सवेरे उठने वाले लोग अपने प्रातःकालीन सैर को अपने - अपने पाॅमेरियन तथा अल्सेश्िायन नस्ल के वुफत्तों के साथ घूमने जाने को तैयार। इस पूरे इलाके में सिपर्फ एकमात्रा पावर्फ ही ऐसी जगह है जहाँ लोग घूमने जा सकते हैं। एक सुबह ऐसे ही एक निवासी इस पावर्फ में घूमने आया तो उसने देखा कि एक गरीब आदमी हाथों में खाली बोतल लिए पावर्फ से जा रहा था। इसने उस आदमी को पकड़ लिया और अपने आस - पास के पड़ोसियों को इकऋा कर लिया। किसी ने पुलिस को पफोन कर दिया। गुस्से से भरे हुए वहाँ के वुफछ निवासियों तथा दो पुलिस कांस्टेबल ने वुफछ ही मिनटों मंे मारते - मारते उसकी जान ले ली। यह नौजवान व्यक्ित और कोइर् नहीं बल्िक दिलीप था जो दिल्ली गणतंत्रा दिवस की परेड देखने के लिए आया था। वह अपने चाचा के साथ पास ही की रेल की पटरियों के किनारे बसी झुग्गी में रह रहा था। उसके चाचा वशीरपुर औद्योगिक एस्टेट में मशदूरी करते थे। दिल्ली के अन्य औद्योगिक क्षेत्रों की तरह वशीरपुर में भी मशदूरों के रहने के लिए आवासीय व्यवस्था नहीं है। दस हशार से अिाक आवासों वाली झुग्िगयों के लोग तीन सावर्जनिक शौचालयों का सामूहिक रूप से प्रयोग करते हैं और प्रत्येक में आठ शौचालय हैं अथार्त प्रत्येक दो हशार व्यक्ितयों पर एक शौचालय। ऐसी स्िथति में अिाकतर निवासियों के लिए, अंधेरे के समय कोइर् भी खुला स्थान शौचालय का काम करता है। अतः इस इलाके के अमीर निवासियों ने अपने तथा समाज का बोध इन गंदी झुग्गी - झोंपडि़यों के बीच पड़ने वाले पावर्फ को जब चारों ओर दीवारों से घेर दिया तब इन मशदूरों ने इनका शोरदार विरोध किया क्योंकि ऐसी स्िथति में वे पावर्फ का उपयोग नहीं कर सकते थे। शीघ्र ही दीवार का वुफछ भाग तोड़ दिया गया ताकि घरों में काम करने वाले नौकर जो इन झुग्िगयों में रहते हैं, अमीरों के घरों तथा कारों की सपफाइर् का काम करते हैं तथा साथ ही शरारती लोगों के लिए शौचालय का काम भी कर सवेंफ। अतः दिलीप की मृत्यु वास्तव में इन दो वगो± के बीच कापफी दिनों से छिड़ी हुइर् लड़ाइर् का ही एक हिस्सा थी जहाँ एक ओर ऐसा वगर् था जिसके निवासी शहरी रहन - सहन की खूबसूरती को बनाए रखना चाहते थे यथा - हरी घास तथा छायादार वृक्ष से भरा पावर्फ जहाँ समय बिताने के लिए जाया जा सकेऋ वहीं दूसरी ओर ऐसा वगर् था जिसके पास यह पावर्फ ही एक ऐसा खुला स्थान था जिसका इस्तेमाल शौचालय के लिए किया जा सके। अगर दिलीप को इन मतभेदों से भरे इतिहास के बारे में पता रहता तो शायद वह पकडे़ जाने से पहले ही वहाँ से भाग निकलता और आज हो सकता था वह जिंदा होता। हिंसा यहीं खत्म नहीं हुइर्। जब झुग्गी के लोगों के समूह ने यहाँ जमा होकर दिलीप की मौत के ख्िालापफ आवाश उठाइर् तो पुलिस ने चार अन्य व्यक्ितयों को गोली से भून डाला। जैसे - जैसे नगरांें का विस्तार होता जा रहा है वैसे - वैसे स्थान के लिए मतभेद और बढ़ते जा रहे हैं। एक ओर जहाँ प्रवासी काम की तलाश में शहर आते हैं और कानूनी तौर पर रहने का सीमित स्थान उनके सामथ्यर् के बाहर होता है, वहीं दूसरी ओर वे सरकारी शमीन पर बसने के लिए मजबूर विचार विमशर् - शहर में बसा गरीब वगर् होते हैं। इस प्रकार वफी शमीन की माँग कापफी अकसर झुग्िगयों में क्यों रहता है? वे कौन से बढ़ गइर् है ताकि समृ( वगर् के लिए यहाँ सामाजिक समूह हैं जो शहरों में शमीन - शायदाद बड़ी - बड़ी बहुमंजिली दुकानें, होटल तथा दशर्नीय तथा आवास को नियंत्रिात करते हैं? वे कौन से स्थल बनाए जा सकें। परिणामस्वरूप गरीब मशदूर सामाजिक कारक हैं जो व्यक्ित वफी जल तथा तथा उनके परिवारों को शहरों से दूर निकाल स्वच्छता की आपूतिर् को प्रभावित करते हैं? पेंफका गया तथा उनके घरों को तोड़ दिया गया। ियाकलाप 3 शमीन के अतिरिक्त हवा तथा पानी भी इस शहरी पयार्वरण में महत्त्वपूणर् प्रतियोगी के रूप कल्पना कीजिए कि आप 14 - 15 साल के में उभर कर सामने आए हैं। झुग्गी - झोंपड़ी में रहने वाले लड़का / लड़की हैं। आपका परिवार क्या काम करता है और ;संदभर् - अमीता बावस्कर ‘बिटवीन वायलेंस आप वैफसे रहते हैं? अपनी दिनचयार् का एंड डिशायरः स्पेस, पाॅवर एंड आइडेंटिटी इन द वणर्न करते हुए उस पर एक छोटा निबंध मेविंफग आॅपफ मैट्रोपोलिटन दिल्ली’़इन इंटरनेशनल लिख्िाए। सोशल साइंस जनर्ल, 175ः 89 - 98, 2003द्ध शब्दावली आद्रर्ता विज्ञान - जल तथा इसके प्रवाह का विज्ञानऋ अथवा किसी देश अथवा क्षेत्रा के जल संसाधन का अध्ययन। वनोन्मूलन - पेड़ों के काटे जाने के कारण जंगली क्षेत्रा में कमी तथा अन्य कारणों के लिए भूमि अिाग्रहण, भूमि को कृष्िा के उपयोग में लेना। ग्रीनहाउस - पौधें को जलवायु की अति, मुख्यतः अत्यध्िक ठंड से बचाने हेतु ढँका हुआ ढाँचाऋ हरित गृह ;गमर् घर भी कहा जाता हैद्ध। बाहर के मुकाबले अंदर का तापमान अिाक होता है। उत्सजर्न: मनुष्य द्वारा प्रारंभ की गइर् प्रिया के कारण छोड़ी गइर् गैसेंऋ मुख्यतः उद्योगों तथा वाहनों के संदभर् में। बहिःप्रवाही धरा: औद्योगिक प्रिया के तहत अवशेष जो तरलीय रूप में होते हैं। एक्यूपफसर् - प्राकृतिक रूप से बनी भूमिगत संरचना जहाँ पानी जमा होता है। मोनोकल्चर - पौधें का जीवन एक क्षेत्रा विशेष में घटकर जब एक ही प्रकार का रह जाता है। समाज का बोध अभ्यास 1.पारिस्िथतिकी से आपका क्या अभ्िाप्राय है? अपने शब्दों में वणर्न कीजिए। 2.पारिस्िथतिकी सिपर्फ प्रावृफतिक शाक्ितयों तक ही सीमित क्यों नहीं है? 3.उस दोहरी प्रिया का वणर्न करें जिसके कारण सामाजिक पयार्वरण का उद्भव होता है? 4.सामाजिक संस्थाएँ वैफसे तथा किस प्रकार से पयार्वरण तथा समाज के आपसी रिश्तों को आकार देती हैं? 5.पयार्वरण व्यवस्था समाज के लिए एक महत्त्वपूणर् तथा जटिल कायर् क्यों है? 6.प्रदूषण संबंिात प्रावृफतिक विपदाओं के मुख्य रूप कौन - कौन से हैं? 7.संसाधनों की क्षीणता से संबंिात पयार्वरण के प्रमुख मुद्दे कौन - कौन से हैं? 8.पयार्वरण की समस्याएँ सामाजिक समस्याएँ भी हैं। वैफसे? स्पष्ट कीजिए। 9.समाजिक पारिस्िथतिकी से क्या अभ्िाप्राय है? 10.पयार्वरण संबंिात वुफछ विवादास्पद मुद्दे जिनके बारे में आपने पढ़ा या सुना हो उनका वणर्न कीजिए। ;अध्याय के अतिरिक्तद्ध संदभर् सेंटर पफाॅर साइंस एंड एनवायरनमेंट. 1982.द स्टेट आॅप़्ाफ इंडियाश एनवायरनमेंटः द सिटिशन्स रिपोटर् सी.एस.इर्., नयी दिल्ली। डेविस, माइक. 2004. ‘प्लैनेट आॅप़़् ाफ स्लम्स: अबर्न इनवाॅल्यूशन एंड द इनपफाॅरमल प्लोरिटेरियट’ इन न्यू लेफ्रट रिव्यू 26ः5 - 34। डेविस, माइक. 2004. ‘द पोलिटिकल इकोलाॅजी आॅप़़् ाफ पेफमाइन: द ओरिजंस आॅपफ द थडर् वल्डर्’ इन रिचडर् पीट एंड माइकेल वाट्स ;संपा.द्ध लिबरेशन इकोलाॅजीश: एनवायरनमेंट, डेवलपमेंट, सोशल मूवमेंट्स, रुलेज ;दूसरा संस्करणद्ध,लंदन। गाडगिल, माधव तथा रामचंद्र गुहा. 1995.इकोलाॅजी एंड इक्िवटी: द यूश एंड एब्यूश आॅपफ नेचर इऩकंटेम्पररी इंडिया.पेंगविन, नयी दिल्ली। गुहा, रामचंद्र. 1997. ‘द एनवायरनमेंटलिश्म आॅपफ द पूअर’ इन रामचंद्र गुहा तथा जे. माटिर्नेश - 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